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एक राजे का बेटा लेकर उड़ने वाला घोड़ा....सुनिए एक कहानी सहगल साहब की जुबानी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 671/2011/111 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक नई सप्ताह के साथ मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ आप सब की ख़िदमत में हाज़िर हूँ। दोस्तों, बचपन में हम सभी नें अपने दादा-दादी, नाना-नानी और माँ-बाप से बहुत सारी किस्से कहानियाँ सुनी हैं, है न? उस उम्र में ये कहानियाँ हमें कभी परियों के साम्राज्य में ले जाते थे तो कभी राजा-रानी की रूप-कथाओं में। कभी भूत-प्रेत की कहानियाँ सुन कर रात को बाथरूम जाने में डर भी लगा होगा आपको। और हम जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं, हमारी कहानियाँ भी उम्र और रुचि के साथ साथ बदलती चली जाती है। कहानी-वाचन भी एक तरह की कला है। एक अच्छा कहानी-वाचक सुनने वालों को बाकी सब कुछ भूला कर कहानी में मग्न कर देता है, और कहानी के साथ जैसे वो बहता चला जाता है। हमारी फ़िल्में भी कहानी कहने का एक ज़रिया है। और फ़िल्मों के गीत भी ज़्यादातर समय फ़िल्म की कहानी को ही आगे बढ़ाते हैं। लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ है कि कोई फ़िल्मी गीत भी अपने आप में कोई कहानी कहता है। कुछ ऐसे ही गीतों को लेकर, जिनमें छुपी है कोई कहानी, हम आज से एक नई शृंखला की शुरुआत कर

एक बंगला बने न्यारा...एक और आशावादी गीत के एल सहगल की आवाज़ में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 625/2010/325 १९३५ में पार्श्वगायन की नीव रखने वाली फ़िल्म 'धूप छाँव' के संगीतकार थे राय चंद बोराल और उनके सहायक थे पंकज मल्लिक साहब। इस फ़िल्म में के. सी. डे, पारुल घोष, सुप्रभा सरकार, उमा शशि और पहाड़ी सान्याल के साथ साथ कुंदन लाल सहगल नें भी गाया था "अंधे की लाठी तू ही है"। सन् '३५ में प्रदर्शित 'देवदास' का ज़िक्र तो हम कल ही कर चुके हैं। इसी साल संगीतकार मिहिरकिरण भट्टाचार्य के संगीत में 'कारवाँ-ए-हयात' में सहगल साहब नें कई ग़ज़लें गायीं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है सहगल साहब पर केन्द्रित लघु शृंखला 'मधुकर श्याम हमारे चोर'। १९३६ में एक बार फिर बोराल साहब और पंकज बाबू के संगीत से सजी मशहूर फ़िल्म आई 'करोड़पति', जिसका सहगल साहब का गाया "जगत में प्रेम ही प्रेम भरा है" गीत बहुत लोकप्रिय हुआ। इसी साल तिमिर बरन के संगीत में फ़िल्म 'पुजारिन' का ज़िक्र हम कल की कड़ी में कर चुके हैं। साल १९३७ सहगल साहब के करीयर का एक और महत्वपूर्ण पड़ाव बना, क्योंकि इसी साल आई फ़िल्म 'प्रेसिडेण्ट'

राधे रानी दे डारो ना....गीत उन दिनों का जब सहगल साहब केवल अपने गीतों के गायक के रूप में पर्दे पर आते थे

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 622/2010/322 फ़ि ल्म जगत के प्रथम सिंगिंग् सुपरस्टार कुंदन लाल सहगल को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला 'मधुकर श्याम हमारे चोर' की दूसरी कड़ी में आपका स्वागत है। कल पहली कड़ी में हमने आपको बताया सहगल साहब के शुरुआती दिनों का हाल और सुनवाया उनका गाया पहला ग़ैर फ़िल्मी गीत। आइए आज आपको बताएँ कि उनके करीयर के पहले दो सालों में, यानी १९३२-३३ में उन्होंने किन फ़िल्मों में कौन कौन से यादगार गीत गाये। १९३२ में न्यु थिएटर्स ने सहगल को तीन फ़िल्मों में कास्ट किया; ये फ़िल्में थीं - 'मोहब्बत के आँसू', 'सुबह का तारा' और 'ज़िंदा लाश'। इन तीनों फ़िल्मों में संगीत बोराल साहब का था। 'मोहब्बत के आँसू' में सहगल साहब और अख़्तरी मुरादाबादी के स्वर में कई गीत थे जैसे कि "नवाज़िश चाहिए इतनी ज़मीने कूवे जाना की" और "हम इज़तराबे कल्ब का ख़ुद इंतहा करते"। इन बोलों को पढ़ कर आप अनुमान लगा सकते हैं कि किस तरह की भाषा का इस्तमाल होता होगा उस ज़माने की ग़ज़लों में। ख़ैर, 'सुबह का तारा' फ़िल्म के "न सु

झुलना झुलाए आओ री...महान सहगल को समर्पित इस नयी शृंखला की शुरूआत आर सी बोराल के इस गैर फ़िल्मी गीत से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 621/2010/321 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को हमारा नमस्कार और स्वागत है इस नए सप्ताह में। हिंदी फ़िल्म-संगीत की नीव रखने वाले कलाकारों में एक नाम ऐसा है जिनकी आवाज़ की चमक ३० के दशक से लेकर आज तक वैसा ही कायम है, जो आज भी सुननेवाले को मंत्रमुग्ध कर देता है। इस बेमिसाल फ़नकार का जन्म आज से १०७ साल पहले हुआ और जिनके गुज़रे आज छह दशक बीत चुके हैं। केवल पंद्रह साल लम्बी अपने सांगीतिक जीवन में इस अज़ीम फ़नकार ने अपनी कला की ऐसी सुगंधी बिखेरी है कि आज भी वह महक बरक़रार है दुनिया की फ़िज़ाओं में। और ये अज़ीम फ़नकार और कोई नहीं, ये हैं फ़िल्म जगत के प्रथम 'सिंगिंग् सुपरस्टार' कुंदन लाल सहगल। आगामी ४ अप्रैल को सहगल साहब की १०८-वीं जयंती है; इसी अवसर को केन्द्र में रखते हुए प्रस्तुत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'मधुकर श्याम हमारे चोर'। सहगल साहब की आवाज़ और गायन शैली का लोगों पर ऐसा असर हुआ कि पूरा देश उनके दीवाने हो गए, और वो एक प्रेरणा स्तंभ बन गए अन्य उभरते गायकों के लिए। सज्जाद, रोशन और ओ.पी. नय्यर जैसे संगीतकार और तलत

सांवरिया मन भाये रे....कौन भूल सकता है पहली फीमेल सिंगिंग स्टार कानन देवी के योगदान को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 615/2010/315 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! हिंदी सिनेमा की कुछ सशक्त महिला कलाकारों, जिन्होंने सिनेमा में अपनी अमिट छाप छोड़ी और आनेवाली पीढ़ियों के लिए मार्ग-प्रशस्त किया, पर केन्द्रित लघु शृंखला में आज हम ज़िक्र करेंगे फ़िल्म जगत की पहली 'फ़ीमेल सिंगिंग् स्टार' कानन देवी की। कानन देवी शुरुआती दौर की उन अज़ीम फ़नकारों में से थीं जिन्होंने फ़िल्म संगीत के शैशव में उसकी उंगलियाँ पकड़ कर उसे चलना सिखाया। एक ग़रीब घर से ताल्लुख़ रखने वाली कानन बाला को फ़िल्म जगत में अपनी पहचान बनाने के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। बहुत छोटी सी उम्र में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया था और अपनी माँ के साथ अपना घर चलाने के लिए तरह तरह के काम करने लगीं। जब वो केवल १० वर्ष की थीं, उनके एक शुभचिंतक ने उन्हें 'ज्योति स्टुडिओज़' ले गये और 'जयदेव' नामक मूक फ़िल्म में अभिनय करने का मौका दिया। यह १९२६ की बात थी। उसके बाद वो ज्योतिष बनर्जी की 'राधा फ़िल्म्स कंपनी' में शामिल हो गईं और 'चार दरवेश', 'हरि-भक्ति', 'ख़ूनी कौन'

तुम बिन कल न आवे मोहे.....पियानो की स्वरलहरियों में कानन की मधुर आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 592/2010/292 आ धुनिक पियानो के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है इटली के बार्तोलोमियो क्रिस्तोफ़ोरी (Bartolomeo Chritofori) को, जो साज़ों के देखरेख के काम के लिए नियुक्त थे Ferdinando de' Medici, Grand Prince of Tuscany में। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, जैसा कि कल से हमने पियानो पर केन्द्रित शृंखला की शुरुआत की है, आइए पियानो के विकास संबंधित चर्चा को आगे बढ़ाते हैं। तो बार्तोलोमेओ को हार्प्सिकॊर्ड बनाने में महारथ हासिल थी और पहले की सभी स्ट्रिंग्ड इन्स्ट्रुमेण्ट्स संबंधित तमाम जानकारी उनके पास थी। इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी है कि बार्तोलोमियो ने अपना पहला पियानो किस साल निर्मित किया था, लेकिन उपलब्ध तथ्यों से यह सामने आया है कि सन् १७०० से पहले ही उन्होंने पियानो बना लिया था। बार्तोलोमियो का जन्म १६५५ में हुआ था और उनकी मृत्यु हुई थी साल १७३१ में। उनके द्वारा निर्मित पियानो की सब से महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि उन्होंने पियानो के डिज़ाइन की तब तक की मूल त्रुटि का समाधान कर दिया था। पहले के सभी पियानो में हैमर स्ट्रिंग् पर वार करने के बाद उसी से चिपकी