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राग पूर्वी : SWARGOSHTHI – 441 : RAG PURVI

स्वरगोष्ठी – 441 में आज पूर्वी थाट के राग – 1 : राग पूर्वी पण्डित अजय चक्रवर्ती से राग पूर्वी में शास्त्रीय रचना और वाणी जयराम से फिल्मी गीत सुनिए पण्डित अजय चक्रवर्ती वाणी जयराम “रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आरम्भ हमारी श्रृंखला “पूर्वी थाट के राग” की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट-व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट, रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने

पूर्वी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 218 : PURVI THAAT

स्वरगोष्ठी – 218 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 5 : पूर्वी थाट राग पूर्वी की मनोहारी रचना - 'कर कपाल लोचन त्रय...'   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ कि

सातवें प्रहर के कुछ आकर्षक राग

स्वरगोष्ठी – 109 में आज राग और प्रहर – 7 दरबारी, अड़ाना, शाहाना और बसन्त बहार : ढलती रात के ऊर्जावान राग आज एक बार फिर मैं कृष्णमोहन मिश्र ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ संगीत-प्रेमियों की महफिल में उपस्थित हूँ। आपको याद ही होगा कि इन दिनों हम ‘राग और प्रहर’ विषय पर आपसे चर्चा कर रहे हैं। इस श्रृंखला में अब तक सूर्योदय से लेकर छठें प्रहर तक के रागों की चर्चा हम कर चुके हैं। आज हम आपसे सातवें प्रहर के कुछ रागों पर चर्चा करेंगे। सातवाँ प्रहर अर्थात रात्रि का तीसरा प्रहर मध्यरात्रि से लेकर ढलती हुई रात्रि के लगभग 3 बजे तक के बीच की अवधि को माना जाता है। इस अवधि में गाने-बजाने वाले राग ढलती रात में ऊर्जा का संचार करने में समर्थ होते हैं। प्रायः कान्हड़ा अंग के राग इस प्रहर के लिए अधिक उपयुक्त माने जाते हैं। आज हम आपको कान्हड़ा अंग के रागों- दरबारी, अड़ाना और शाहाना के अतिरिक्त ऋतु-प्रधान राग बसन्त बहार की संक्षिप्त चर्चा करेंगे और इन रागों में कुछ चुनी हुई रचनाएँ भी प्रस्तुत करेंगे।  म ध्यरात्रि के परिवेश को संवेदनशील बनाने और विनय