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बाई दि वे, ऑन दे वे, "आयशा" से हीं कुछ सुनते-सुनाते चले जा रहे हैं जावेद साहब.. साथ में हैं अमित भी

ताज़ा सुर ताल २७/२०१० विश्व दीपक - नमस्कार दोस्तों! 'ताज़ा सुर ताल' में आज हम जिस फ़िल्म के गीतों को लेकर आए हैं, उसके बारे में तो हमने पिछली कड़ी में ही आपको बता दिया था, इसलिए बिना कोई भूमिका बाँधे आपको याद दिला दें कि आज की फ़िल्म है 'आयशा'। सुजॊय - अमित त्रिवेदी के संगीत से सजे फ़िल्म 'उड़ान' के गानें पिछले हफ़्ते हमने सुने थे, और आज की फ़िल्म 'आयशा' में भी फिर एक बार उन्ही का संगीत है। शायद अब तक हम 'उड़ान' के गीतों को सुनते नहीं थके थे कि एक और ज़बरदस्त ऐल्बम के साथ अमित हाज़िर हैं। मैं कल जब 'आयशा' के गीतों को सुन रहा था विश्व दीपक जी, मुझे ऐसा लगा कि 'देव-डी' और 'उड़ान' से ज़्यादा वरायटी 'आयशा' में अमित ने पैदा की है। इससे पहले कि वो ख़ुद को टाइप-कास्ट कर लेते और उनकी तरफ़ भी उंगलियाँ उठनी शुरु हो जाती, उससे पहले ही वे अपने स्टाइल में नयापन ले आए। विश्व दीपक - 'आयशा' के गानें लिखे हैं जावेद अख़्तर साहब ने। पार्श्वगायक की हैसियत से में इस ऐल्बम में नाम शामिल हैं अमित त्रिवेदी, अनुष्का मनचन्दा, नोमा

कहीं "मादनो" की मिठास से तो कहीं "मैं कौन हूँ" के मर्मभेदी सवालों से भरा है "मिथुन" के "लम्हा" का संगीत

ताज़ा सुर ताल २२/२०१० विश्व दीपक - ’ताज़ा सुर ताल' में हम सभी का स्वागत करते हैं। तो सुजॊय जी, पिछले हफ़्ते कोई फ़िल्म देखी आपने? सुजॊय - हाँ, 'राजनीति' देखी, लेकिन सच पूछिए तो निराशा ही हाथ लगी। कुछ लोगों को यह फ़िल्म पसंद आई, लेकिन मुझे तो फ़िल्म बहुत ही अवास्तविक लगी। सिर्फ़ बड़ी स्टारकास्ट के अलावा कुछ भी ख़ास बात नहीं थी। कहानी भी बेहद साधारण। ख़ैर, पसंद अपनी अपनी, ख़याल अपना अपना। विश्व दीपक - पसंद की अगर बात है तो आज हम 'टी.एस.टी' में जिस फ़िल्म के गानें लेकर हाज़िर हुए हैं, मुझे ऐसा लगता है कि इस फ़िल्म के गानें लोगों को पसंद आने वाले हैं। आज ज़िक्र फ़िल्म 'लम्हा' के गीतों का। सुजॊय - 'लम्हा' बण्टी वालिया व जसप्रीत सिंह वालिया की फ़िल्म है जिसमें मुख्य भूमिकाएँ निभाई हैं संजय दत्त, बिपाशा बासु, कुणाल कपूर, अनुपम खेर ने। निर्देशक हैं राहुल ढोलकिया। संगीत दिया है मिथुन ने, और यह फ़िल्म परदर्शित होने वाली है १६ जुलाई के दिन, यानी कि ठीक एक महीने बाद। जैसा समझ में आ रहा है कि कश्मीर के पार्श्व पर यह फ़िल्म आधारित है। इस फ़िल्म का म्युज़िक लौम्च

रब्बा लक़ बरसा.... अपनी फ़िल्म "कजरारे" के लिए इसी किस्मत की माँग कर रहे हैं हिमेश भाई

ताज़ा सुर ताल २१/२०१० सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' की एक और ताज़े अंक के साथ हम हाज़िर हैं। विश्व दीपक जी, इस शुक्रवार को 'राजनीति' प्रदर्शित हो चुकी हैं, और फ़िल्म की ओपनिंग अच्छी रही है ऐसा सुनने में आया है, हालाँकि मैंने यह फ़िल्म अभी तक देखी नहीं है। 'काइट्स' को आशानुरूप सफलता ना मिलने के बाद अब देखना है कि 'राजनीति' को दर्शक किस तरह से ग्रहण करते हैं। ख़ैर, यह बताइए आज हम किस फ़िल्म के संगीत की चर्चा करने जा रहे हैं। विश्व दीपक - आज हम सुनेंगे आने वाली फ़िल्म 'कजरारे' के गानें। सुजॊय - यानी कि हिमेश इज़ बैक! विश्व दीपक - बिल्कुल! पिछले साल 'रेडियो - लव ऑन एयर' के बाद इस साल का उनका यह पहला क़दम है। 'रेडियो' के गानें भले ही पसंद किए गए हों, लेकिन फ़िल्म को कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली थी। देखते हैं कि क्या हिमेश फिर एक बार कमर कस कर मैदान में उतरे हैं! सुजॊय - 'कजरारे' को पूजा भट्ट ने निर्देशित किया है, जिसके निर्माता हैं भूषण कुमार और जॉनी बक्शी। फ़िल्म के नायक हैं, जी हाँ, हिमेश रेशम्मिया, और उनके साथ हैं मोना लायज़ा, अमृ

प्रीतम लाए हैं बदमाश कम्पनी वाली अय्याशी तो शंकर एहसान लॊय के साथ है धन्नो की हाउसफुल महफ़िल

ताज़ा सुर ताल १८/२०१० सुजॊय - विश्व दीपक जी, साल २०१० के चार महीने बीत चुके हैं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि वह एक गीत अभी तक नहीं आ सका है जिसे इस साल का 'सॊंग ऒफ़ दि ईयर' कहा जा सकता हो। मेरे हिसाब से तो इस साल का संगीत कुछ ठंडा ठंडा सा चल रहा है। आपके क्या विचार हैं? विश्व दीपक - सुजॊय जी, मैं आपकी बात से एक हद तक सहमत हूँ। फिर भी मुझे न जाने क्यों "रावण" के "रांझा-रांझा" से ढेर सारी उम्मीदें हैं। अभी तक जितने भी गाने इस साल आए हैं, यह गाना मुझे सबसे ज्यादा पसंद है। आगे क्या होगा, यह कहा तो नहीं जा सकता, लेकिन बस चार महीने में 'सॊंग ऒफ़ दि ईयर' का निर्णय कर देना तो जल्दीबाजी हीं होगी। इसलिए धैर्य रखिए.... मुझे पूरा विश्वास है कि बाकी के आठ महीनों में कुछ न कुछ कमाल तो ज़रूर हीं होगा, नहीं तो रावण है हीं। खैर ये बताईये कि आज हम किस फिल्म या फिर किन फ़िल्मों के गानों की चर्चा करने जा रहे हैं। सुजॊय - आज हमने इस स्तंभ के लिए दो ऐसी फ़िल्मों के तीन-तीन गीत चुने हैं जो फ़िल्में हाल ही में प्रदर्शित हो चुकी हैं। ये दो फ़िल्में हैं 'बदमाश कंपनी' और

एक दिल से दोस्ती थी ये हुज़ूर भी कमीने...विशाल भारद्वाज का इकरारनामा

ताजा सुर ताल (12) आ त्मावलोकन यानी खुद के रूबरू होकर बीती जिंदगी का हिसाब किताब करना, हम सभी करते हैं ये कभी न कभी अपने जीवन में और जब हमारे फ़िल्मी किरदार भी किसी ऐसी अवस्था से दोचार होते हैं तो उनके ज़ज्बात बयां करते कुछ गीत भी बने हैं हमारी फिल्मों में, अक्सर नतीजा ये निकलता है कि कभी किस्मत को दगाबाज़ कहा जाता है तो कभी हालतों पर दोष मढ़ दिया जाता है कभी दूसरों को कटघरे में खडा किया जाता है तो कभी खुद को ही जिम्मेदार मान कर इमानदारी बरती जाती है. रेट्रोस्पेक्शन या कन्फेशन का ही एक ताजा उदाहरण है फिल्म "कमीने" का शीर्षक गीत. फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ जिंदगी को तो बा-इज्ज़त बरी कर दिया है और दोष सारा बेचारे दिल पर डाल दिया गया है, देखिये इन शब्दों को - क्या करें जिंदगी, इसको हम जो मिले, इसकी जाँ खा गए रात दिन के गिले.... रात दिन गिले.... मेरी आरजू कामिनी, मेरे ख्वाब भी कमीने, एक दिल से दोस्ती थी, ये हुज़ूर भी कमीने... शुरू में ये इजहार सुनकर लगता है कि नहीं ये हमारी दास्तान नहीं हो सकती, पर जैसे जैसे गीत आगे बढता है सच आइना लिए सामने आ खडा हो जाता है और कहीं न कहीं हम सब इ

चेरापूंजी की बारिश में भीगा कैलाश खेर का मन....

ताजा सुर ताल (6) सावन की आहट करीब सुनाई दे रही है, चिलचिलाती धुप और गर्मी के लम्बे महीनों के बाद कितना सुखद होता बारिश की पहली बूंदों में भीगना. अब मानसून को तो आदत है तड़पाने की जब आये तब आये, संगीत प्रेमियों के लिए कम से कम ये सुविधा है कि जब चाहें सुरों की रिमझिम फुहारों में नहा सकते हैं. नए सुर ताल में आज हम आपको ले चलेंगें पूर्वोत्तर भारत के उस छोटे से हिल स्टेशन पर जिसे वर्षा की राजधानी कहा जाता हैं, जहाँ मेघ खुल कर बरसते हैं, जहाँ हवाओं में हर पल घुली रहती है एक सौंधी महक और जहाँ फ़िज़ा भीगे भीगे ख़्वाबों को बारहों माह संवारती है. लेकिन उससे पहले जिक्र उस फनकार का जिसके सुरों के पंख लगा कर हम उस रमणीय स्थान तक पहुंचेंगें. मेरठ में जन्में कैलाश खेर का बचपन दिल्ली की गलियों में बीता. उस्ताद नुसरत फतह अली खान की आवाज़ ने नन्हीं उमर में ही उन्हें अपना दीवाना बना दिया था. पिता भी लोक गीतों के गायक थे, तो बचपन में ही उन्हें शास्त्रीय संगीत की तालीम लेनी शुरू कर दी थी और शुरू हो गया था सफ़र इस नए संगीत सितारे का. दिल्ली में ही वो अपने घर वालों से अलग रहे काफी लम्बे अरसे तक और अपने हुन

आधे सत्र के गीतों ने पार किया समीक्षा का पहला चरण

सितम्बर के सिकंदरों की पहले चरण की अन्तिम समीक्षा, और तीन महीनों में प्रकाशित १३ गीतों की पहले चरण की समीक्षा के बाद का स्कोरकार्ड समीक्षक की व्यस्तता के चलते हम सितम्बर के गीतों की पहले चरण की अन्तिम समीक्षा को प्रस्तुत करने में कुछ विलंब हुआ. तो लीजिये पहले इस समीक्षा का ही अवलोकन कर लें. खुशमिजाज़ मिटटी बढ़िया गीत होते हुए पर भी पता नहीं क्या कमी है, गीत दिल को छू नहीं पाता। ठीक संगीत, गीत बढ़िया और गायकी भी ठीकठाक। गायक को अभिजीत की शैली अपनाने की बजाय खुद की शैली विकसित करनी चाहिये। गीत: ३, संगीत 3, गायकी ३, प्रस्तुति ३, कुल १२/२०, पहले चरण में कुल अंक २५ / ३०. राहतें सारी एक बार सुन लेने लायक गीत, बोल सुंदर परन्तु संगीत ठीक है। वैसे संगीतकार की उम्र बहुत कम है उस हिसाब से बढ़िया कहा जायेगा, क्यों कि बड़े बड़े संगीतकार भी इस उम्र में इतने बढ़िया संगीत नहीं रच पाये हैं। गीत ३.५, संगीत ३.५ गायकी ३ प्रस्तुति 3 कुल १३/२०, पहले चरण में कुल अंक १८ / ३०. ओ मुनिया बढ़िया गीत को संगीत और प्रस्तुति के जरिये कैसे बिगाड़ा जाता है उसका बेहद शानदार नमूना, एक पंक्ति भी सुनने लायक नहीं, जबरन एक दो लाइनें

समीक्षा के अखाडे में दूसरा दंगल

सरताज गीत बनने की जंग शुरू हो चुकी है, जुलाई के जादूगर गीत, जनता की अदालत में हाज़री बजाने के बाद, पहले चरण की समीक्षा की कठिन परीक्षा से गुजर रहे हैं, जैसा की हम बता चुके हैं कि पहले चरण में ३ समीक्षक होंगे और दूसरे और अन्तिम चरण में दो समीक्षक होंगे, समीक्षा का दूसरा चरण सत्र के समापन के बाद यानी जनवरी के महीने शुरू होगा, फिलहाल देखते हैं कि पहले चरण के, दूसरे समीक्षक ने जुलाई के जादूगरों को कितने कितने अंक दिए हैं. इस समीक्षा के अंकों में पहली समीक्षा के अंक जोड़ दिए गए हैं जिसके आधार पर, हमारे श्रोता देख पाएंगे कि कौन सा गीत है, अब तक सबसे आगे. गीत समीक्षा संगीत दिलों का उत्सव है .... पहला गीत है “ संगीत दिलों का उत्सव है …” सभी गीतों में सबसे श्रेष्‍ठ.. गीत संगीत और गायकी सब कुछ एकदम परफेकक्ट ... गीत संगीत और गायकी तीनों पक्षों में ताजगी लगती है। बीच बीच में आलाप बहुत प्रभावित करता है। इस गीत को 8 नंबर दे रहा हूँ। संगीत दिलों का उत्सव है... को दूसरे निर्णायक द्वारा मिले 8/10 अंक, कुल अंक अब तक 14 /20 बढे चलो. दूसरा गीत है “ बढ़े चलो …”, आज के हिन्द का युवा...ठीक कह सकते हैं। बह