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भैरवी दादरा : SWARGOSHTHI – 335 : BHAIRAVI DADARA

स्वरगोष्ठी – 335 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी - 2 : भैरवी दादरा उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ का गाया दादरा जब मन्ना डे ने दुहराया- “बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...” उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ मन्ना डे ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस दूसरी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला की भाँति इस श्रृंखला में भी हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख हम अपने सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन की रिकार्ड किये आवाज़ में प्रस्तुत कर रहे हैं। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा। दरअसल यह श्रृंखला पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों / श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह किया है। सभी सम्मानित पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध का सम्मान करते हुए और पूर्वप

चित्रकथा - 36: हाल के फ़िल्मी गीतों में शास्त्रीय संगीत की छाया

अंक - 36 हाल के फ़िल्मी गीतों में शास्त्रीय संगीत की छाया "साजन आयो रे, सावन लायो रे..."  एक ज़माना था जब हिन्दी फ़िल्मी गीतों में शास्त्रीय रागों का समावेश होता था। राग आधारित रचनाओं ने उन फ़िल्मों के ऐल्बमों के स्तर को ही केवल उपर नहीं उठाया बल्कि सुनने वालों को भी मंत्रमुग्ध कर दिया। फिर धीरे धीरे बदलते समय के साथ-साथ फ़िल्मी गीतों का चदल बदला; पाश्चात्य संगीत उस पर हावी होने लगा और 80 के दशक के आते-आते जैसे शास्त्रीय संगीत फ़िल्मी गीतों से पूरी तरह से ग़ायब ही हो गया। फिर भी समय-समय पर फ़िल्म की कहानी, चरित्र और ज़रूरत के हिसाब से भारतीय शास्त्रीय संगीत आधारित रचनाएँ हमारी फ़िल्मों में आती रही हैं। आज के दौर की फ़िल्मों में भी कई गीत शास्त्रीय संगीत की छाया लिए होते हैं। भले इनमें रागों का शुद्ध रूप से प्रयोग ना हो, लेकिन एक छाया उनमें ज़रूर होती है। आज ’चित्रकथा’ के इस अंक में हम नज़र डालेंगे हाल के कुछ बरसों में बनने वाली फ़िल्मों के उन गीतों पर जिनमें भारतीय शास्त्रीय संगीत की छाया दिखाई देती है। इस लेख को तैयार करने में कृष्णमोहन मिश्र जी का विशेष योग

गीत अतीत 30 || हर गीत की एक कहानी होती है || बावली बूच || लाल रंग || दुष्यंत || रणदीप हूडा

Geet Ateet 30 Har Geet Kii Ek Kahaani Hoti Hai... Bawali Booch Laal Rang Dushyant Also featuring Mathias Duplessy & Vikas Kumar " जो पहला ड्राफ्ट मैंने लिखा था, उसमें बावली बूच  शब्द नहीं था  " -    दुष्यंत  रणदीप हूडा अभिनीत फिल्म लाल रंग पिछले साल प्रदर्शित हुई थी और अपने अलग विषय चयन के लिए काफी चर्चित हुई थी, फिल्म का एक गीत 'बावली बूच' श्रोताओं को खूब पसंद आया था, आज गीत अतीत पर इस गीत के गीतकार दुष्यंत हैं हमारे साथ इस गीत की कहानी लेकर. दोस्तों ये गीत अतीत के इस पहले सीसन का अंतिम एपिसोड है, उम्मीद है ३० गीतों की ३० दिलचस्प कहानियों का आपने भरपूर आनंद लिया होगा... लीजिये आज के अंतिम एपिसोड में सुनिए, कहानी बावली बूच की, गीतकार दुष्यंत की जुबानी....प्ले पर क्लिक करें और सुनें.... डाउनलोड कर के सुनें  यहाँ  से.... सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - ओ रे रंगरेज़ा (जॉली एल एल बी) मैनरलैस मजनूं (रंनिंग शादी डॉट कॉम) रंग (अरविन्द तिवारी, गैर फ़िल्मी सिंगल) हमसफ़र (बदरी की दुल्हनिया) सनशाईन (गैर फ़िल्मी सिंग