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राग खमाज : SWARGOSHTHI – 295 : RAG KHAMAJ

स्वरगोष्ठी – 295 में आज नौशाद के गीतों में राग-दर्शन – 8 : खमाज की छाया लिये गीत “चुनरिया कटती जाए रे, उमरिया घटती जाए...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज के अंक में हम आपसे राग खमाज पर चर्चा करेंगे। इस श्रृंखला में हम भारतीय फिल्म संगीत के शिखर पर विराजमान नौशाद अली के व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में हम आपको फिल्म संगीत के माध्यम से रागों की सुगन्ध बिखेरने वाले अप्रतिम संगीतकार नौशाद अली के कुछ राग-आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। इस श्रृंखला का समापन हम आगामी 25 दिसम्बर को नौशाद अली की 98वीं जयन्ती के अवसर पर करेंगे। 25 दिसम्बर, 1919 को सांगीतिक परम्परा से समृद्ध शहर लखनऊ के कन्धारी बाज़ार में एक साधारण परिवार में नौशाद का जन्म हुआ था। नौशाद जब कुछ बड़े हुए तो उनके पिता वाहिद अली घसियारी मण्डी स्थित अपने नए घर में आ गए। यहीं नि

वर्षान्त विशेष: 2016 का फ़िल्म-संगीत (भाग-1)

वर्षान्त विशेष लघु श्रृंखला 2016 का फ़िल्म-संगीत   भाग-1 रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, देखते ही देखते हम वर्ष 2016 के अन्तिम महीने पर आ गए हैं। कौन कौन सी फ़िल्में बनीं इस साल? उन सभी फ़िल्मों का गीत-संगीत कैसा रहा? ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में अगर आपने इस साल के गीतों को ठीक से सुन नहीं सके या उनके बारे में सोच-विचार करने का समय नहीं निकाल सके, तो कोई बात नहीं। अगले पाँच सप्ताह, हर शनिवार हम आपके लिए लेकर आएँगे वर्ष 2016 में प्रदर्शित फ़िल्मों के गीत-संगीत का लेखा-जोखा। आइए इस लघु श्रृंखला की पहली कड़ी में आज चर्चा करते हैं उन फ़िल्मों के गीतों की जो प्रदर्शित हुए जनवरी और फ़रवरी के महीनों में। व र्ष 2016 फ़िल्म-संगीत के इतिहास का 86-वाँ वर्ष है। एक लम्बी यात्रा तय करती हुई फ़िल्म-संगीत की धारा निरन्तर बहती चली आई है और आगे भी चलती रहेगी। केवल फ़िल्मकारों पर ही नहीं, यह दायित्व हम सबका है कि इस परम्परा को जारी रखें और इसका स्तर सदा ऊँचा बनाये रखें। 2016 में प

"विकलांगता पर हमारी फ़िल्में अधिक संवेदनशील और व्यावहारिक होनी चाहिए" - संजीवन लाल : एक मुलाकात ज़रूरी है

एक मुलाकात ज़रूरी है  एपिसोड - 39 किसी दिव्यांग व्यक्ति और उसके आस पास के सप्पोर्ट सिस्टम पर बनी फिल्मों में एक ख़ास स्थान रखती है फिल्म "बबल गम", जिसके निर्देशक संजीवन एस लाल हैं हमारे आज के मेहमान, जिनसे हमने विकलांगता के विषय पर बनी कुछ अन्य फिल्मों पर भी चर्चा की, ३ दिसंबर को विश्व विकलांगता दिवस के उपलक्ष्य पर हमारा ये विशेष एपिसोड, हमें उम्मीद है आपको पसंद आएगा....प्ले पर क्लिक कर सुनें और आनंद लें....   ये एपिसोड आपको कैसा लगा, अपने विचार आप 09811036346 पर व्हाट्सएप भी कर हम तक पहुंचा सकते हैं, आपकी टिप्पणियां हमें प्रेरित भी करेगीं और हमारा मार्गदर्शन भी....इंतज़ार रहेगा. एक मुलाकात ज़रूरी है के इस एपिसोड के प्रायोजक थे अमेजोन डॉट कॉम, अमोज़ोन पर अब आप खरीद सकते हैं, महान कथाकार प्रेमचंद की अनमोल कहानियों का ये संकलन, खरीदने के लिए क्लिक करें एक मुलाकात ज़रूरी है इस एपिसोड को आप  यहाँ  से डाउनलोड करके भी सुन सकते हैं, लिंक पर राईट क्लीक करें और सेव एस का विकल्प चुनें. मिलिए इन जबरदस्त कलाकारों से भी - मंजीरा गांगुली