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महफ़िल ए कहकशां - 3 - बम बम बम भोला..! रसन पिया अपनी रचना में गा कर सुनाते हैं शिव पार्वती विवाह वृत्तान्त के समय किस तरह नाग को देख पंडित तक काँप जाते हैं।

महफिले कहकशां (३) उस्ताद अब्दुल रशीद साहब  दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, महफिले कहकशां के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज सुनिए उस्ताद अब्दुल रशीद खान उर्फ़ रसन पिया को श्रद्धांजलि उन्ही की गाई एक बंदिश से।   मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

"मैं आसाम के एक छोटे शहर से मुंबई आया संगीतकार बनने का सपना लेकर" - बिस्वजीत भट्टाचार्जी

एक मुलाकात ज़रूरी है (7) उ भरते हुए युवा संगीतकार बिस्वजीत भट्टाचार्जी उर्फ़ बिबो हैं आज के हमारे ख़ास मेहमान कार्यक्रम "एक मुलाकात ज़रूरी है" में. अभी हाल ही में आपके संगीत से सजी फिल्म "मुरारी -द मैड जेंटलमैन" प्रदर्शित हुई है. आईये मिलते हैं इस बेहद प्रतिभावान गायक संगीतकार से आज सजीव सारथी के साथ,

उपशास्त्रीय मंच की चैती : SWARGOSHTHI – 266 : CHAITI SONGS

स्वरगोष्ठी – 266 में आज होली और चैती के रंग – 4 : चैती गीतों के वर्ण्य-विषय ‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा, पिया घर लइहें...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला – ‘होली और चैती के रंग’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम ऋतु के अनुकूल भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों और रचनाओं की चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें ग्रीष्मऋतु के शुरुआती परिवेश में गाने-बजाने की परम्परा है। भारतीय समाज में अधिकतर उत्सव और पर्वों का निर्धारण ऋतु परिवर्तन के साथ होता है। शीत और ग्रीष्म ऋतु की सन्धिबेला में मनाया जाने वाला पर्व- होलिकोत्सव और चैत्रोत्सव प्रकारान्तर से पूरे देश में आयोजित होता है। यह उल्लास और उमंग का, रस और रंगों का, गायन-वादन और नर्तन का पर्व है। भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक-शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले चैत्र से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में पूरे उत्तर भारत