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एक दर्द भरा नगमा हिमेश मार्का

ताज़ा सुर ताल - दर्द दिलों के  (एक्सपोस) जब से हिमेश रेशमिया संगीत निर्देशन में आये हैं, तब से हम उन्हें बहुत से मुक्तलिफ़ रूपों में देख चुके हैं, हिमेश केवल हिट गीत देने में विश्वास रखते हैं और बहुत अधिक अपने 'कम्फर्ट ज़ोन' से बाहर जाकर काम नहीं करते हैं, बावजूद इसके उनकी धुनों में एक ख़ास मिठास हमेशा से रही है ( ओढ़नी , क्यों किसी को वफ़ा के बदले, तेरी मेरी प्रेम कहानी  आदि), हिमेश इन दिनों अपने निर्माताओं को डबल बोनान्जा बाँट रहे हैं, यानी कि जो उनकी अपनी कहानी पर फिल्म बनायेगा उसके लिए वो अभिनय भी करेगें और जाहिर है जब अभिनय करेगें तो संगीत में भी अपनी पूरी ताकत झोंक देंगें. कुछ ऐसा ही है उनकी ताज़ा पेशकश एक्सपोस  का हाल. इस एल्बम में भी हर मूड के गीत हैं और सब के साब हिमेश की पक्की छाप वाले. कुछ बहुत नया न देते हुए भी हिमेश ऐसे गीत बनाने में कामियाब हुए हैं जिनका हिट होना लगभग तय है. खासकर ये गीत जो हम आपको सुना रहे हैं इसमें वही चिर परिचित हिमेशिया माधुर्य भी है और शास्त्रीयता की मिठास भी. मोहम्मद इरफ़ान ने बहुत दिल से गाया है इसे (शुक्र है हिमेश ने खुद नहीं गाया ये गीत)

तालवाद्य घटम् पर एक चर्चा

स्वरगोष्ठी – 169 में आज संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला – 7 एक सामान्य मिट्टी का घड़ा, जो लोक मंच के साथ ही शास्त्रीय मंच पर भी सुशोभित हुआ     ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी ‘संगीत वाद्य परिचय श्रृंखला’ की सातवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने साथी स्तम्भकार सुमित चक्रवर्ती के साथ सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ कम प्रचलित, लुप्तप्राय अथवा अनूठे संगीत वाद्यों की चर्चा कर रहे हैं। वर्तमान में शास्त्रीय या लोकमंचों पर प्रचलित अनेक वाद्य हैं जो प्राचीन वैदिक परम्परा से जुड़े हैं और समय के साथ क्रमशः विकसित होकर हमारे सम्मुख आज भी उपस्थित हैं। कुछ ऐसे भी वाद्य हैं जिनकी उपयोगिता तो है किन्तु धीरे-धीरे अब ये लुप्तप्राय हो रहे हैं। इस श्रृंखला में हम कुछ लुप्तप्राय और कुछ प्राचीन वाद्यों के परिवर्तित व संशोधित स्वरूप में प्रचलित वाद्यों का भी उल्लेख कर रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे एक ऐसे लोकवाद्य पर चर्चा करेंगे जो अवनद्ध व

"मेरी यादों में साहिर लुधियानवी" - हसन कमाल

स्मृतियों के स्वर - 02 "मेरी यादों में साहिर लुधियानवी" - हसन कमाल 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकीया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। आज से 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लायूंगा कुछ अनमोल मोतियाँ और आपके साथ बाँटूंगा हमारे इस नये स्तंभ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के स्वर। हम और आप साथ मिल कर गुज़रेंगे स्मृतियों के इन हस