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होली पर सुनिए एक कमचर्चित गीत

खरा सोना गीत - आओ रे आओ खेलो होली   प्रस्तोता - मीनू सिंह स्क्रिप्ट - सुजॉय चट्टर्जी  प्रस्तुति - संज्ञा टंडन 

होली पर्व पर सभी पाठकों / श्रोताओं को हार्दिक मंगलकामना

स्वरगोष्ठी – 159 में आज रंग-गुलाल के उड़ते बादलों के बीच धमार का धमाल ‘होली में लाज ना कर गोरी...’  अबीर-गुलाल के उड़ते सतरंगी बादलों के बीच सप्तस्वरों के माध्यम से सजाई गई ‘स्वरगोष्ठी’ की इस महफिल में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत प्रेमियों का होली के मदमाते परिवेश में हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय पर्वों में होली एक ऐसा पर्व है, जिसमें संगीत-नृत्य की प्रमुख भूमिका होती है। जनसामान्य अपने उल्लास की अभिव्यक्ति के लिए देशज संगीत से लेकर शास्त्रीय संगीत का सहारा लेता है। इस अवसर पर विविध संगीत शैलियों के माध्यम से होली की उमंग को प्रस्तुत करने की परम्परा है। इन सभी भारतीय संगीत शैलियों में होली की रचनाएँ प्रमुख रूप से उपलब्ध हैं। मित्रों, पिछली तीन कड़ियों में हमने संगीत की विविध शैलियों में राग काफी के प्रयोग पर चर्चा की है। राग काफी फाल्गुनी परिवेश का चित्रण करने में समर्थ होता है। श्रृंगार रस के दोनों पक्ष, संयोग और वियोग, की सहज अभिव्यक्ति राग काफी के स्वरों से की जा सकती है। आज के अंक में हम होली के उल्लास और उमंग की अभिव्य

होली के रंगों के साथ वापसी 'एक गीत सौ कहानियाँ' की...

एक गीत सौ कहानियाँ - 24   ‘मोहे पनघट पे नन्दलाल छेड़ गयो रे...’ हम रोज़ाना न जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और उन्हें गुनगुनाते हैं। पर ऐसे बहुत कम ही गीत होंगे जिनके बनने की कहानी से हम अवगत होंगे। फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का साप्ताहिक स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। एक लम्बे अन्तराल के बाद आज से इस स्तम्भ का पुन: शुभारम्भ हो रहा है। आज इसकी 24-वीं कड़ी में जानिये फ़िल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' के गीत "मोहे पनघट पे नन्दलाल छेड़ गयो रे..." के बारे में...  'मु ग़ल-ए-आज़म', 1960 की सर्वाधिक चर्चित फ़िल्म। के. आसिफ़ निर्देशित इस महत्वाकांक्षी फ़िल्म की नीव सन् 1944 में रखी गयी थी। दरअसल बात ऐसी थी कि आसिफ़ साहब ने एक नाटक पढ़ा। उस नाटक की कहानी शाहंशाह अकबर के राजकाल की पृष्ठभूमि में लिखी गयी थी। कहानी उन्हें अच्छी लगी और उन्होंने इस पर एक बड़ी फ़िल्म बनाने की सोची। लेकिन उन्हें उस वक़्त यह अन्दाज़ा भी नहीं हुआ होगा कि उनके इस