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बसन्त ऋतु की दस्तक और वाणी वन्दना

    स्वरगोष्ठी – 153 में आज पण्डित भीमसेन जोशी के स्वरों में ऋतुराज बसन्त का अभिनन्दन  ‘फगवा ब्रज देखन को चलो री...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों आज संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में चर्चा के लिए दो उल्लेखनीय अवसर हैं। आज से ठीक दो दिन बाद अर्थात 4 फरवरी को बसन्त पंचमी का पर्व है। यह दिन कला, साहित्य और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की आराधना का दिन है। इसी दिन प्रकृति में ऋतुराज बसन्त अपने आगमन की दस्तक देते हैं। इस ऋतु में मुख्य रूप से राग बसन्त का गायन-वादन अनूठा परिवेश रचता है। आज के अंक में हम आपके लिए राग बसन्त की एक बन्दिश- ‘फगवा ब्रज देखन को चलो री...’ लेकर उपस्थित हुए हैं। यह रचना आज इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि इसे पण्डित भीमसेन जोशी ने अपना स्वर दिया है। यह तथ्य भी रेखांकन योग्य है कि 4 फरवरी को इस महान संगीतज्ञ की 93वीं जयन्ती भी है। चूँकि इस दिन बसन्त पंचमी का पर्व भी है, अतः आज हम आपको वर्ष 1977 की फिल्म ‘आलाप’ से लत

'सिने पहेली' में आज संवादों के स्वर...

सिने पहेली –99 'सिने पहेली' के सभी प्रतियोगियों व पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, आज 'सिने पहेली' का 99-वाँ अंक है और हम अपनी मंज़िल के बहुत ही करीब आ गये हैं। आज और अगली कड़ी के साथ दस सेगमेण्ट्स का यह सुहाना सफ़र समाप्त हो जायेगा और हमें मिल जायेंगे 'महाविजेता' बनने के महामुक़ाबले के पाँच महारथी। दोस्तों, इस महासफ़र में हमने आप से न जाने कितनी तरह की पहेलियाँ पूछीं हैं, और आप सब ने हर पहेली का समाधान ढूंढ ही निकाला, और यह साबित किया कि मेहनत, लगन और सूझ-बूझ से काम लें तो किसी भी पहेली को सुलझाया जा सकता है। इससे हमें अपनी ज़िन्दगी के लिए भी यही शिक्षा मिलती है कि मुश्किल की घड़ी में समझदारी, मेहनत और धैर्य से काम लेने पर हर उलझन, हर मुश्किल पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। चलिए अब शुरू करते हैं आज की पहेली। आज की पहेली : सुरीले संवाद आज की पहेली में हम आप के सामने रखेंगे कुछ संवाद जिन्हें कलाकारों ने या तो गीतों के बीच कहे हैं, या फिर इन संवादों को कविता या महज़ संवादों के रूप में ह

रेखा भारद्वाज का स्नेह निमंत्रण ओर अरिजीत की रुमानियत भरी नई गुहार

ताज़ा सुर ताल - 2014 -04  हमें फिल्म संगीत का आभार मानना चाहिए कि समय समय पर हमारे संगीतकार हमारी भूली हुई विरासत ओर नई पीढ़ी के बीच की दूरी को कुछ इस तरह पाट देते हैं कि समय का लंबा अंतराल भी जैसे सिमट गया सा लगता है. मेरी उम्र के बहुत से श्रोताओं ने इस ठुमरी को बेगम अख्तर की आवाज़ में अवश्य सुना होगा, पर यक़ीनन उनसे पहले भी लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के दरबार से निकली इस अवधी ठुमरी को बहुत से गुणी कलाकारों ने अपनी आवाज़ में ढाला होगा. लीजिए २०१४ में स्वागत कीजिये इसके एक ओर नए संस्करण का जिसे तराशा संवारा है विशाल -गुलज़ार के अनुभवी हाथों ने ओर आवाज़ के सुरमे से महकाया है रेखा भारद्वाज की सुरमई आवाज़ ने. मशहूर अभिनेत्री ओर कत्थक में निपुण माधुरी दीक्षित नेने एक बार फिर इस फिल्म से वापसी कर रही हैं रुपहले परदे पर. जी हाँ आपने सही पहचाना, देढ इश्किया  का ये गीत फिर एक बार ठुमरी को सिने संगीत में लौटा लाया है, हिंदी फिल्मों के ठुमरी गीतों पर कृष्णमोहन जी रचित पूरी सीरीस का आनंद हमारे श्रोता उठा चुके हैं. आईये सुनते हैं रेखा का ये खास अंदाज़....शब्द देखिये आजा गिलौरी खिलाय दूँ खिमामी, लाल