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‘मन तड़पत हरिदर्शन को आज...’

      स्वरगोष्ठी – 139 में आज रागों में भक्तिरस – 7 राग मालकौंस का रंग : पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के संग ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-रसिकों का स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। आज माह का पाँचवाँ रविवार है और इस दिन ‘स्वरगोष्ठी’ का अंक हमारे अतिथि संगीतज्ञ द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। आज का यह अंक प्रस्तुत कर रहे हैं, मयूर वीणा और इसराज के सुप्रसिद्ध वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र। श्रृंखला के आज के अंक में श्रीकुमार जी आपसे अत्यन्त लोकप्रिय राग मालकौंस पर चर्चा करेंगे। आज हम आपको राग मालकौंस के भक्तिरस के पक्ष को स्पष्ट करने के लिए तीन रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। सबसे पहले हम आपको सुनवाएँगे, 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘बैजू बावरा’ का भक्तिरस से

आज की 'सिने पहेली' लता जी के नाम...

सिने पहेली – 82     "मुझसे चलता है सर-ए-बज़्म सुखन का जादू चाँद ज़ुल्फ़ों के निकलते है मेरे सीने से, मैं दिखाता हूँ ख़यालात के चेहरे सब को सूरतें आती हैं बाहर मेरे आईने से। हाँ मगर आज मेरे तर्ज़-ए-बयां का यह हाल अजनबी कोई किसी बज़्म-ए-सुखन में जैसे, वो ख़यालों के सनम और वो अल्फ़ाज़ के चाँद बेवतन हो गए हों अपने ही वतन में जैसे। फिर भी क्या कम है, जहाँ रंग न ख़ुशबू है कोई तेरे होंठों से महक जाते हैं अफ़कार मेरे, मेरे लफ़्ज़ों को जो छू लेती है आवाज़ तेरी सरहदें तोड़ के उड़ जाते हैं अशार मेरे। तुझको मालूम नहीं, या तुझे मालूम भी हो वो सियाह बख़्त जिन्हें ग़म ने सताया बरसों, एक लम्हे को जो सुन लेते हैं तेरा नग़मा फिर उन्हें रहती है जीने की तमन्ना बरसों। जिस घड़ी डूब के आहंग में तू गाती है आयतें पढ़ती है साज़ों की सदा तेरे लिए, दम बदम ख़ैर मनाते हैं तेरी चंग-ओ-रबाब सीने नये से निकलती है दुआ तेरे लिए। नग़मा-ओ-साज़ के ज़ेवर से रहे तेरा सिंगार हो तेरी माँग में तेरी ही सुरों की अफ़शां, तेरी तानों से तेरी आँख में काजल की लकीर हाथ म

पूरी रात पार्टी का इंतजाम लेकर आया है 'बॉस'

अ क्षय कुमार अपने खिलाड़ी रूप में फिर से लौट रहे हैं फिल्म बॉस के साथ. लगता है उन्हें हनी सिंह का साथ खूब रास आ रहा है. तभी तो पूरी एल्बम का जिम्मा उन्होंने हनी सिंह के साथ मीत ब्रोस अनजान को सौंपा है. फिल्म हिट मलयालम फिल्म पोखिरी राजा का रिमेक है, यहाँ अक्षय हरियाणा के पोखिरी यानी टपोरी बने हैं. आईये देखें इस बॉस को कैसे कैसे गीत दिए हैं हनी सिंह ने. शीर्षक गीत बॉस को बखूबी परिभाषित करता है. हनी सिंह का हरियाणवी तडका अच्छा जमा है. गीत में पर्याप्त ऊर्जा और जोश है. शब्द एवें ही है पर शायद जानकार ऐसा रखा गया है. दक्षिण के जाने माने संगीतकार पी ए दीपक के मूल गीत अपदी पोडे पोडे का हिंदी संस्करण है अगला गीत हम न छोड़े तोड़े , जिसे पूरे दम ख़म से गाया है विशाल ददलानी ने. शब्द अच्छे बिठाए गए है, पर मूल गीत इतनी बार सुना जा चुका है कि गीत कुछ नया सुनने का एहसास नहीं देता. दूसरे अंतरे से पहले अक्षय से बुलवाए गए संवाद बढ़िया लगते हैं. सोनू निगम इन दिनों बेहद कम गीत गा रहे हैं ऐसे में किसी अच्छे गीत में उन्हें सुनना वाकई सुखद लगता है. एल्बम के तीसरे गीत पिता से है नाम तेरा