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छठें प्रहर के कुछ आकर्षक राग

स्वरगोष्ठी-108 में आज   राग और प्रहर – 6 ‘तेरे सुर और मेरे गीत...’ : रात्रि के अन्धकार को प्रकाशित करते राग   ‘स्वरगोष्ठी’ के 108वें अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का इस मंच पर हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इन दिनों ‘स्वरगोष्ठी’ में विभिन्न आठ प्रहरों के रागों पर चर्चा जारी है। पिछ ले अंक में हमने पाँचवें प्रहर के कुछ राग प्रस्तुत किये थे। आज हम आपके सम्मुख छठें प्रहर के कुछ आकर्षक राग लेकर उपस्थित हुए हैं। छठाँ प्रहर अर्थात रात्रि का दूसरा प्रहर, रात्रि 9 बजे से लेकर मध्यरात्रि तक की अवधि को माना जाता है। हमारे देश में अधिकतर संगीत सभाएँ पाँचवें और छठें प्रहर में आयोजित होती हैं, इसलिए इस प्रहर के राग संगीत-प्रेमियों के बीच अधिक लोकप्रिय हैं। छठें प्रहर के रागों में आज हम आपके लिए राग बिहाग, गोरख कल्याण, बागेश्री और मालकौंस की कुछ चुनी हुई रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। छ ठाँ प्रहर अर्थात रात्रि के दूसरे प्रहर में निखरने वाला एक राग है, गोरख कल्याण। इस राग के गायन-वादन से कुछ ऐसी अनुभूति होने लगती है मानो श्रृंगार र

'सिने पहेली' में आज स्वागत बसन्त का

16 फ़रवरी, 2013 सिने-पहेली - 59  में आज   सुलझाइये कुछ फूलों भरी पहेलियाँ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, कल बसन्त पंचमी का पावन पर्व था। इस दिन से वसन्त ॠतु की शुरुआत मानी जाती है। बंगाल में इस दिन देवी सरस्वती की पूजा होती है। शीत काल समाप्त हुआ चाहता है और मौसम सुहाना होने लगता है। मन्द-मन्द बयार, चारों ओर फूलों की छटा, पंछियों का कलरव; कुल मिला कर एक सुन्दर वातावरण का अहसास होता है। आज की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में शायद प्रकृति की इन शोभाओं का अनुभव बहुत कम लोग कर पाते हों, पर सच पूछिये तो इन प्राकृतिक सुन्दरताओं से ही हमारा जीवन सुन्दर बनता है, कृत्रिम वस्तुओं से नहीं। आइये आज की 'सिने पहेली' को महकाया जाये दस अलग-अलग फूलों की ख़ुशबूओं से, उनकी सुनदरता से।  आज की पहेली :  पहचानो फूल, बिना किए भूल  नीचे दी हुई तसवीर में आपको दस फूल दिखाये गये हैं। आपको इन फूलों के नाम बताने हैं और हर फूल के लिए एक ऐसा हिन्दी फ़िल्मी गीत सुझाना है जिसमें उस फूल का शाब्दिक उल्लेख आया हो। दस फू

गायिका नूरजहाँ के गाये अनमोल गीत

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 35 कारवाँ सिने-संगीत का ‘आजा तुझे अफ़साना जुदाई का सुनाएँ...’ : नूरजहाँ   भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और माह के दूसरे और चौथे गुरुवार को हम ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ के अन्तर्गत हम ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल के सदस्य और हिन्दी फिल्मों के इतिहासकार सुजॉय चटर्जी की प्रकाशित पुस्तक ‘कारवाँ सिने-संगीत का’ से किसी रोचक प्रसंग का उल्लेख करते हैं। सुजॉय चटर्जी ने अपनी इस पुस्तक में भारतीय सिनेमा में आवाज़ के आगमन से लेकर देश की आज़ादी तक के फिल्म-संगीत की यात्रा को रेखांकित किया है। आज के अंक में हम विभाजन से पूर्व अपनी गायकी से पूरे भारत में धाक जमाने वाली गायिका और अभिनेत्री नूरजहाँ का ज़िक्र करेंगे। ज हाँ एक तरफ़ ए.आर. कारदार और महबूब ख़ान देश-विभाजन के बाद यहीं रह गए, वहीं बहुत से ऐसे कलाकार भी थे जिन्हें पाक़िस्तान चले जाना पड़ा। इनमें एक थीं नूरजहाँ। भार