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उस्ताद विलायत खाँ : ८५वें जन्मदिवस पर एक स्वरांजलि

स्वरगोष्ठी – ८५ में आज जिनके सितार-तंत्र बजते ही नहीं गा ते भी थे ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक के साथ, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, दो दिन बाद अर्थात २८अगस्त को भारतीय संगीत-जगत के विश्वविख्यात सितार-वादक उस्ताद विलायत खाँ का ८५वाँ जन्म-दिवस है। इस अवसर पर आज हम इस महान कलासाधक के व्यक्तित्व और कृतित्व का स्मरण करने के साथ उनकी कुछ विशिष्ट रचनाओं का रसास्वादन भी करेंगे। अ न्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सितारनवाज उस्ताद विलायत खाँ का जन्म २८अगस्त, १९२८ को तत्कालीन पूर्वी बंगाल के गौरीपुर नामक स्थान पर एक संगीतकार परिवार में हुआ था। उनके पिता उस्ताद इनायत खाँ अपने समय के न केवल सुरबहार और सितार के विख्यात वादक थे, बल्कि सितार वाद्य को विकसित रूप देने में भी उनका अनूठा योगदान था। उस्ताद विलायत खाँ के अनुसार सितार वाद्य प्राचीन वीणा का ही परिवर्तित रूप है। इनके पितामह (दादा) उस्ताद इमदाद खाँ अपने समय के रुद्रवीणा-वादक थे। उन्हीं के मन में सबसे पहले सितार में तरब के तारों को जोड़ने का विचार आया था, किन्तु इसे पूरा किया, विलायत

अमरीका और यू.ए.ई के बाद अब 'सिने पहेली' के प्रतियोगी रूस से भी...

सिने-पहेली # 34 (25 अगस्त, 2012)  'रे डियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'सिने पहेली' स्तंभ में। दोस्तों, इस सप्ताह 'सिने पहेली' परिवार के साथ जुड़े हैं दो नए खिलाड़ी - आप हैं मॉस्को, रूस से शुभदीप चौधरी और कोल्हापुर, महाराष्ट्र से मंदार नारायण । आप दोनों का हार्दिक स्वागत है इस प्रतियोगिता में और निवेदन है कि आगे भी नियमित रूप से 'सिने पहेली' में भाग लें और अन्य खिलाड़ियों को अच्छी टक्कर देकर प्रतियोगिता को और रोचक बनाएँ।  दोस्तों, 'सिने पहेली' से मनोरंजन तो होता ही है, साथ में ज्ञान भी बढ़ता है। पर आप यह न समझिए कि सिर्फ़ पाठकों या फिर प्रतियोगियों का ज्ञान बढ़ता है, बल्कि 'सिने पहेली' के संचालक दल का, और ख़ास तौर से मेरा ज्ञान भी बढ़ता है, और कई बार तो प्रतियोगियों के माध्यम से भी। अब देखिए न, पिछले अंक में मैंने एक सवाल पूछा था कि किस गायक के साथ किशोर कुमार ने गीत गाया है। यह सवाल मैंने अभिजीत को ध्यान में रख कर किया था; विकल्पों में अभिजीत के अलावा कुमार

मैंने देखी पहली फिल्म - रंजना भाटिया का संस्मरण

रंजना भाटिया ने देखी 'अमर अकबर एंथनी'   मैंने देखी पहली फिल्म : वो यादें जो दिल में कस्तूरी-गन्ध सी बसी हैं  भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का चौथा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में आप श्री प्रेमचंद सहजवाला की देखी पहली फिल्म के संस्मरण के साझीदार रहे। आज अपनी देखी पहली फिल्म ‘अमर अकबर एंथनी’ का संस्मरण सुश्री रंजना भाटिया प्रस्तुत कर रही हैं। यह प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्टि है। जी वन में पहली बार घटने वाला हर प्रसंग रोमांचकारी होता है। पहला पत्र, पहला दोस्त, पहली कविता, पहला प्रेम आदि कुछ ऐसे प्रसंग हैं, जो जीवन भर याद रहते हैं। ऐसे में एक सवाल उठा- पहली देखी पिक्चर का संस्मरण......। सोचने वाली बात है की इनमें किसको पहली पिक्चर कहें...। बचपन में जब बहुत छोटे हों तो माता-पिता के साथ और उन्हीं के शौक पर निर्भर करता है कि आपने कौन सी पिक्चर देखी होगी। मेरे माता-पिता दो