Skip to main content

Posts

हारमोनियम बनाया अंग्रेजों ने, पर बजाया भैया गणपत राव ने

स्वरगोष्ठी – ७५ में आज ठुमरी गायन और हारमोनियम वादन के एक अप्रतिम साधक : भैया गणपत राव  हारमोनियम एक ऐसा सुषिर वाद्य है जिसका प्रयोग आज देश में प्रचलित हर संगीत शैलियों में किया जा रहा है, किन्तु एक समय ऐसा भी था जब शास्त्रीय संगीत के मंचों पर यह वाद्य प्रतिबन्धित रहा। उन्नीसवीं शताब्दी के ऐसे ही सांगीतिक परिवेश में एक संगीत-पुरुष अवतरित हुआ जिसने हारमोनियम वाद्य को इतनी ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया कि आज इसे विदेशी वाद्य मानने में अविश्वास होता है। हारमोनियम वादन और ठुमरी गायन में सिद्ध इस संगीत-पुरुष का नाम है- भैया गणपत राव। भैया गणपत राव  ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नए अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज के अंक में हम आपसे एक ऐसे संगीत-साधक की चर्चा करेंगे, जिसके कृतित्व को जानबूझ कर उपेक्षित किया गया। ग्वालियर राज-परिवार से जुड़े भैया गणपत राव एक ऐसे ही साधक थे जिन्होने हारमोनियम वादन और ठुमरी-दादरा गायन को उन ऊँचाइयों पर पहुँचाया जिसे स्पर्श करना हर संगीतकार का स्वप्न होता है। उन्नीसवीं शताब्दी के लगभग मध्य-काल में तत्कालीन ग

प्लेबैक वाणी (3) -शंघाई, टोला और आपकी बात

संगीत समीक्षा - शंघाई खोंसला का घोंसला हो या ओए लकी लकी ओए हो, दिबाकर की फिल्मों में संगीत हटकर अवश्य होता है. उनका अधिक रुझान लोक संगीत और कम लोकप्रिय देसिया गीतों को प्रमुख धारा में लाने का होता है. इस मामले में ओए लकी का संगीत शानदार था,  “ तू राजा की राजदुलारी ’  और  “ जुगनी ”  संगीत प्रेमियों के जेहन में हमेशा ताज़े रहेंगें जाहिर है उनकी नयी फिल्म शंघाई से भी श्रोताओं को उम्मीद अवश्य रहेगी. अल्बम की शुरुआत ही बेहद विवादस्पद मगर दिलचस्प गीत से होती है जिसे खुद दिबाकर ने लिखा है.  “ भारत माता की जय ”  एक सटायर है जिसमें भारत के आज के सन्दर्भों पर तीखी टिपण्णी की गयी है. सोने की चिड़िया कब और कैसे डेंगू मलेरिया में तब्दील हो गयी ये एक सवाल है जिसका जवाब कहीं न कहीं फिल्म की कहानी में छुपा हो सकता है, विशाल शेखर का संगीत और पार्श्व संयोजन काफी लाउड है जो टपोरी किस्म के डांस को सप्पोर्ट करती है. विशाल ददलानी ने मायिक के पीछे जम कर अपनी कुंठा निकाली है. अल्बम का दूसरा गीत एक आइटम नंबर है मगर जरा हटके. यहाँ इशारों इशारों में एक बार फिर व्यंगात्मक टिप्पणियाँ की गयी है, जिसे समझ कर

कहानी पॉडकास्ट - सुशीला - हरिशंकर परसाई - अर्चना चावजी

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में कामेश्वर की मार्मिक कथा " चप्पल " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य " सुशीला ", जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 3 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शनिवार को "बोलती कहानियाँ" पर सुनें एक नयी कहानी "आम बाज़ार भाव से तो लड़के की क़ीमत मांगते ही थे, इनके अशुद्ध होने का दण्ड पाँच छह हज़ार और मांगते थे।" ( हरिशंकर परसाई की "सुशीला&q