Skip to main content

Posts

२७ अप्रैल- आज का गाना

गाना:  पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ चित्रपट:  शिकार संगीतकार: शंकर - जयकिशन गीतकार: हसरत स्वर:  आशा भोसले पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ पर्दा जो उठ गया तो भेद खुल जायेगा अल्लाह मेरी तौबा, अल्लाह मेरी तौबा   ... मेरे  पर्दे   में लाख जलवे हैं कैसे मुझसे नज़र मिलाओगे जब ज़रा भी नक़ाब उठाऊँगी याद रखना की, जल ही जाओगे पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ   ... हुस्न जब बेनक़ाब होता है वो समाँ लाजवाब होता है खुद को खुद की खबर नहीं रहती होश वाला भी, होश खोता है पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ   ... हाय जिसने मुझे बनाया है, वो भी मुझको समझ न पाया है मुझको सजदे किये हैं इन्साँ ने इन फ़रिश्तों ने, सर झुकाया है पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ   ...

२६ अप्रैल- आज का गाना

गाना:  नज़रों में समाने से क़रार चित्रपट:  हैदराबाद की नाजनीन संगीतकार: वसंत देसाई गीतकार: नूर लखनवी स्वर:  राजकुमारी आ आ आ~~~~~~~~ नज़रों में समाने से क़रार आ न सकेगा तुम पास नहीं दिल को ये बहला न सकेगा तस्वीर निगाहों में ख़्हामोश तुम्हारी जो सुन नहीं सकती कभी फ़रियाद हमारी ये खाली तसव्वुर किसी काम आ न सकेगा तुम पास नहीं दिल को ये बहला न सकेगा आ आ~~~ नज़रों में समाने... आयेगा ख़्हयाल आके ओह ओह ओह आयेगा ख़्हयाल आके गुज़रता ही रहेगा आहें कोई दिल थाम के भरता ही रहेगा तस्कीन की सूरत कोई बतला न सकेगा तुम पास नहीं दिल को ये बहला न सकेगा आ आ~~~ नज़रों में समाने... टकरायेंगे हम सर कभी दीवार से दर से हर साँस में उबलेगा लहू ज़ख़्ह्म-ए-जिगर से दिल ढूँधेगा आ आ आ दिल ढूँधेगा तड़पेगा तुम्हें पा न सकेगा तुम पास नहीं दिल को ये बहला न सकेगा आ आ~~~ नज़रों में समाने...

"डफ़ली वाले डफ़ली बजा..." - शुरू-शुरू में नकार दिया गया यह गीत ही बना फ़िल्म का सफ़लतम गीत

कभी-कभी ऐसे गीत भी कमाल दिखा जाते हैं जिनसे निर्माण के समय किसी को कोई उम्मीद ही नहीं होती। शुरू-शुरू में नकार दिया गया गीत भी बन सकता है फ़िल्म का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत। एक ऐसा ही गीत है फ़िल्म 'सरगम' का "डफ़ली वाले डफ़ली बजा"। यही है आज के 'एक गीत सौ कहानियाँ' के चर्चा का विषय। प्रस्तुत है इस शृंखला की १७-वीं कड़ी सुजॉय चटर्जी के साथ... एक गीत सौ कहानियाँ # 17 फ़िल्म इंडस्ट्री एक ऐसी जगह है जहाँ किसी फ़िल्म के प्रदर्शित होने तक कोई १००% भरोसे के साथ यह नहीं कह सकता कि फ़िल्म चलेगी या नहीं, यहाँ तक कि फ़िल्म के गीतों की सफ़लता का भी पूर्व-अंदाज़ा लगाना कई बार मुश्किल हो जाता है। बहुत कम बजट पर बनी फ़िल्म और उसके गीत भी कई बार बहुत लोकप्रिय हो जाते हैं और कभी बहुत बड़ी बजट की फ़िल्म और उसके गीत-संगीत को जनता नकार देती है। मेहनत और लगन के साथ-साथ क़िस्मत भी बहुत मायने रखती है फ़िल्म उद्योग में। संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल के संगीत सफ़र का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था फ़िल्म 'सरगम' का संगीत। १९७९ में प्रदर्शित इस फ़िल्म का "ड