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"छलिया मेरा नाम..." - इस गीत पर भी चली थी सेन्सर बोर्ड की कैंची

सेन्सर बोर्ड की कैंची की धार आज कम ज़रूर हो गई है पर एक ज़माना था जब केवल फ़िल्मी दृश्यों पर ही नहीं बल्कि फ़िल्मी गीतों पर भी कैंची चलती थी। किसी गीत के ज़रिये समाज को कोई ग़लत संदेश न चला जाए, इस तरफ़ पूरा ध्यान रखा जाता था। चोरी, छल-कपट जैसे अनैतिक कार्यों को बढ़ावा देने वाले बोलों पर प्रतिबंध लगता था। फ़िल्म 'छलिया' के शीर्षक गीत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। गायक मुकेश के अनन्य भक्त पंकज मुकेश के सहयोग से आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' की १६-वीं कड़ी में इसी गीत की चर्चा... एक गीत सौ कहानियाँ # 16 सम्प्रति "कैरेक्टर ढीला है", "भाग डी के बोस" और "बिट्टू सबकी लेगा" जैसे गीतों को सुन कर ऐसा लग रहा है जैसे सेन्सर बोर्ड ने अपनी आँखों के साथ-साथ अपने कानों पर भी ताला लगा लिया है। यह सच है कि समाज बदल चुका है, ५० साल पहले जिस बात को बुरा माना जाता था, आज वह ग्रहणयोग्य है, फिर भी सेन्सर बोर्ड के नरम रुख़ की वजह से आज न केवल हम अपने परिवार जनों के साथ बैठकर कोई फ़िल्म नहीं देख सकते, बल्कि अब तो आलम ऐसा है कि रेडियो पर फ़िल्मी गानें सुनने में भी शर्म महसू

१८ अप्रेल- आज का गाना

गाना:  तेरी बिंदिया रे आय हाय, तेरी बिंदिया रे चित्रपट: अभिमान संगीतकार: सचिन देव बर्मन गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी स्वर: रफ़ी, लता रफ़ी: हूँ ..., ओ... तेरी बिंदिया रे रे आय हाय तेरी बिंदिया रे \- २ रे आय हाय लता: सजन बिंदिया ले लेगी तेरी निंदिया रफ़ी: रे आय हाय तेरी बिंदिया रे रफ़ी: तेरे माथे लगे हैं यूँ, जैसे चंदा तारा जिया में चमके कभी कभी तो, जैसे कोई अन्गारा तेरे माथे लगे हैं यूँ लता: सजन निंदिया... सजन निंदिया ले लेगी ले लेगी ले लेगी मेरी बिंदिया रफ़ी: रे आय हाय तेरा झुमका रे रे आय हाय तेरा झुमका रे लता: चैन लेने ना देगा सजन तुमका रे आय हाय मेरा झुमका रे लता: मेरा गहना बलम तू, तोसे सजके डोलूं भटकते हैं तेरे ही नैना, मैं तो कुछ ना बोलूं मेरा गहना बलम तू रफ़ी: तो फिर ये क्या बोले है बोले है बोले है तेरा कंगना लता: रे आय हाय मेरा कंगना रे बोले रे अब तो छूटे न तेरा अंगना रफ़ी: रे आय हाय तेरा कंगना रे रफ़ी: तू आयी है सजनिया, जब से मेरी बनके ठुमक ठुमक चले है जब तू, मेरी नस नस खनके तू आयी है सजनिया लता: सजन अब तो सजन अब तो छ

मोहब्बत में खुद को तलाशती वंदना लायी हैं अपनी पसंद के गीत, रश्मि जी की महफ़िल में

" एक प्रयास " और वंदना जी . ब्लॉग तो उनके और भी हैं, पर यह ब्लॉग उनके कृष्णमय जीवन का आईना है. तो आज के गीतों संग वंदना जी - अपने लफ़्ज़ों में - रश्मि जी, अपनी पसंद के गीत भेज रही हूँ.बहुत मुश्किल काम था मगर किसी तरह पूरा कर दिया है.......ये गीत मुझे इसलिए पसंद हैं क्यूँकि इनमे प्रेम हैं, कसक है, वेदना है, विरह है, मोहब्बत की पराकाष्ठा है जहाँ मोहब्बत लफ़्ज़ों से परे अहसास में जीवंत होती है जहाँ मोहब्बत को किसी नाम की जरूरत नहीं है तो दूसरी तरफ मोहब्बत करने वाला हो तो ऐसा कि सब कुछ भुलाकर चाहे सिर्फ रूह को चाहे जिस्म से परे होकर उसकी आँखों के आँसू भी खुद पी ले मगर उसे दो पल की मुस्कान दे दे. एक तरफ इंतज़ार हो तो ऐसा कि जहाँ मोहब्बत यकीन करती हो हाँ वो आज भी जहाँ होगा मेरे इंतज़ार में ही होगा और मोहब्बत में कशिश होगी या मोहब्बत इतनी बुलंद होगी कि वो जहाँ भी होगा वहीँ से खींचा चला आएगा ...इंतज़ार हो तो ऐसा जिसमे यकीन की चाशनी मिली हो और दूसरी तरफ समर्पण हो तो ऐसा कि खुद से ज्यादा खुशनसीब इन्सान किसी को ना समझे मोहब्बत समर्पण भी तो चाहती है ना...मोहब्बत के हर पहलू को छू