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रेडियो प्लेबैक आर्टिस्ट ऑफ द मंथ - गीतकार और संगीतकार नितिन दुबे

बैंगलोर में कार्यरत और मूल रूप से उत्तर भारतीय नितिन दुबे हैं हमारे इस माह के आर्टिस्ट ऑफ द मंथ, जो कि एक गीतकार भी और संगीतकार भी. नितिन कुछ भी ऐसा नहीं करना चाहते जो पहले हो चुका हो. इसी कोशिश का नतीजा है कि आपको उनकी हर रचना में एक नयापन दिखेगा, फिर वो चाहे उनकी कलम से निकला कोई गीत हो या फिर उनकी बनायीं हुई कोई धुन. एक लंबे अरसे से नितिन अपने ओरिजिनल गीतों से श्रोताओं का मनोरंजन कर रहे हैं, आईये सुनते हैं उन्हीं उनके अब तक के सफर की दास्ताँ, उन्हीं की जुबानी और जानते हैं कि उनकी संगीत यात्रा अब तक किन किन मोडों से होकर गुजरी है. लीजिए दोस्तों, ओवर टू नितिन

२४ मार्च- आज का गाना

गाना: बादलों का नाम न हो, अम्बर के गाँवों में.... चित्रपट: थोड़ा सा रूमानी हो जाएँ संगीतकार: भास्कर चंदावरकर गीतकार: कमलेश पाण्डेय स्वर: छाया गांगुली   बादलों का नाम न हो, अम्बर के गाँवों में जलता हो जँगल खुद अपनी छाँव में यही तो है मौसम - २ तुम और हम बादलों के नग़में गुनगुनाएं थोड़ा सा रूमानी हो जाएं। मुश्किल है जीना - २ उम्मीद के बिना थोड़े से सपने सजाएं थोड़ा सा रूमानी हो जाएं थोड़ा सा रूमानी हो जाएं। 

बोलती कहानियाँ - क्या वे उन्हें भूल सकती हैं? - निर्मल वर्मा

 'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने प्राख्यात ब्लॉगर अर्चना चावजी की आवाज़ में महादेवी वर्मा की मार्मिक कहानी " घीसा का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं मूर्धन्य कथाकार और पत्रकार निर्मल वर्मा की प्रसिद्ध डायरी ' धुंध से उठती धुंध ' का अंश " क्या वे उन्हें भूल सकती हैं? , जिसको स्वर दिया है रीतेश खरे "सब्र जबलपुरी" ने।  कहानी का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 41 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। जो पराजित हो जाते हैं , पीछे हट जाते हैं , इसलिए नहीं कि वे कम पोटेंट हैं, कम मर्द हैं, कम प्रेम करना जानते हैं ...  ~  निर्मल वर्मा (3 अप्रैल 1929 - 25 अक्तूबर 2005) हर शुक्रवार को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी वे सो जाती

२३ मार्च - आज का गाना

गाना: देस मेरे देस मेरे चित्रपट: द लीजेंड ऑफ भगत सिंह संगीतकार: ए. आर. रहमान गीतकार: समीर स्वर: सुखविंदर सिंह (श्रधान्जली - शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ) देस मेरे देस मेरे मेरी जान है तू -२ देस मेरे देस मेरे मेरी शान है तू -२ मिटाने से नहीं मिटते डराने से नहीं डरते वतन के नाम पे हम सर कटाने से नहीं डरते हज़ारों ख़्वाब रोशन हैं सुलगती सी निगाहों में क़फ़न हम बाँध के निकले हैं आज़ादी की राहों में निशाने पे जो रहते हैं निशाने से नहीं डरते हमारी एक मन्ज़िल है हमारा एक नारा है धरम से जात से ज्यादा हमें ये मुल्क़ प्यारा है हम इस पे ज़िन्दगी अपनी लुटाने से नहीं डरते देस मेरे देस मेरे मेरी जान है तू -२ देस मेरे देस मेरे मेरी शान है तू -२

२२ मार्च- आज का गाना

गाना: कौन दिसा में लेके चला रे बटुहिया चित्रपट: नदिया के पार संगीतकार: रवीन्द्र जैन गीतकार: रवीन्द्र जैन स्वर: हेमलता, जसपाल सिंह कौन दिसा में लेके चला रे बटुहिया \- (३) ठहर ठहर, ये सुहानी सी डगर ज़रा देखन दे, देखन दे मन भरमाये नयना बाँधे ये डगरिया \- (२) कहीं गए जो ठहर, दिन जायेगा गुज़र गाडी हाँकन दे, हाँकन दे, कौन दिसा... पहली बार हम निकले हैं घर से, किसी अंजाने के संग हो अंजाना से पहचान बढ़ेगी तो महक उठेगा तोरा अंग हो महक से तू कहीं बहक न जाना \- (२) न करना मोहे तंग हो, तंग करने का तोसे नाता है गुज़रिया \- (२) हे, ठहर ठहर, ये सुहानी सी डगर ज़रा देखन दे, देखन दे,  कौन दिसा... कितनी दूर अभी कितनी दूर है, ऐ चंदन तोरा गाँव हो कितना अपना लगने लगे जब कोई बुलाये नाम हो नाम न लेतो क्या कहके बुलायें \- (२) कैसे करायें काम हो, साथी मितवा या अनाड़ी कहो गोरिया \- (२) कहीं गये जो ठहर, दिन जायेगा गुज़र गाड़ी हाँकन दे, हाँकन दे,  कौन दिसा... ऐ गुंजा, उस दिन तेरी सखियाँ, करती थीं क्या बात हो? कहतीं थीं तोरे साथ चलन को तो, आगे हम तोरे साथ हो साथ अधूरा तब तक जब

"दिल आने के ढंग निराले हैं" - वाक़ई निराला था ख़ुर्शीद अनवर का संगीत जिनकी आज १०१-वीं जयन्ती है!

पूरे पंजाब विश्वविद्यालय में एम.ए दर्शनशास्त्र में प्रथम आने के बाद प्रतिष्ठित ICS परीक्षा के लिखित चरण में सफल होने के बावजूद साक्षात्कार चरण में शामिल न होकर संगीत के क्षेत्र को चुना था ख़ुर्शीद अनवर ने। अपनी मेधा को संगीत क्षेत्र में ला कर अत्यन्त कर्णप्रिय धुनें उन्होंने बनाई। २१ मार्च १९१२ को जन्मे ख़ुर्शीद अनवर की आज १०१-वीं जयन्ती है। इस उपलक्ष्य पर उनके द्वारा रचे एक गीत से जुड़ी बातें सुजॉय चटर्जी के साथ 'एक गीत सौ कहानियाँ' की १२-वीं कड़ी में... एक गीत सौ कहानियाँ # 12 1947 में देश के विभाजन के बाद बहुत से कलाकार भारत से पाक़िस्तान जा बसे और बहुत से कलाकार सरहद के इस पार आ गए। उस पार जाने वालों में एक नाम संगीतकार ख़ुर्शीद अनवर का भी है। ख्वाजा ख़ुर्शीद अनवर का जन्म २१ मार्च १९१२ को मियाँवाली, पंजाब (अब पाक़िस्ता न) में हुआ था। उनके नाना ख़ान बहादुर डॉ. शेख़ अट्टा मोहम्मद सिविल सर्जन थे और उनके पिता ख्वाजा फ़िरोज़ुद्दीन अहमद लाहौर के एक जानेमाने बैरिस्टर। पिता को संगीत का इतना ज़्यादा शौक था कि उनके पास ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड्स का एक बहुत बड़ा संग्रह था। इस तरह से बे

२१ मार्च- आज का गाना

गाना: तुझे जीवन की डोर से, बाँध लिया है, तेरी ज़ुल्म-ओ-सितम चित्रपट: असली नकली संगीतकार: शंकर - जयकिशन गीतकार: हसरत स्वर: रफ़ी , लता रफ़ी: तुझे जीवन की डोर से, बाँध लिया है, बाँध लिया है तेरे ज़ुल्म\-ओ\-सितम, सर आँखों पर लता: मैने बदले में प्यार के, प्यार दिया है, प्यार दिया है तेरी खुशियाँ और गम, सर आँखों पर रफ़ी: तुझे जीवन की ... (अप्सरा कोई आए तो देखूँ नहीं कोई बहकाये हंसके तो बहकूँ नहीं   ) \- २ तोरे मतवारे नैनों ने, जादू किया ओ ... तोरे मतवारे नैनों ने, जादू किया तेरी उल्फ़त सनम सर आँखों पर ... (मेरे जीवन की अनमिट कहानी है तू मेरी तक़दीर और ज़िंदगानी है तू  ) \- २ लिये फ़िरते हैं सबसे छुपाये हुए ओ ... लिये फ़िरते हैं सबसे छुपाये हुए तेरी तसवीर हम सर आँखों पर ... चाँड सूरज भी हैं तेरी परछाइयाँ तुझ से रोशन हुई दिल की गहराइयाँ तेरे चेहरे की झिलमिल से मंज़िल मिली ओ तेरे चेहरे की झिलमिल से मंज़िल मिली ऐसी प्यारी पूनम सर आँखों पर ... (दोनो): तुझे जीवन की डोर से, बाँध लिया है, बाँध लिया है तेरे ज़ुल्मो\-सितम, सर आँखों पर