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काहे मेरे राजा तुझे निन्दिया न आए...शृंखला की अंतिम लोरी कुमार सानु की आवाज़ में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 790/2011/230 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज इस स्तंभ में प्रस्तुत है लघु शृंखला 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी' का अन्तिम अंक। अब तक इस शृंखला में आपने जिन गायकों की गाई लोरियाँ सुनी, वो थे चितलकर, तलत महमूद, हेमन्त कुमार, मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, किशोर कुमार, येसुदास और तलत अज़ीज़। आज इस शृंखला का समापन हम करने जा रहे हैं गायक कुमार सानू की आवाज़ से, और साथ मे हैं अनुराधा पौडवाल। १९९१ की फ़िल्म 'जान की कसम' की यह लोरी है "सो जा चुप हो जा...काहे मेरे राजा तुझे निन्दिया न आए, डैडी तेरा जागे तुझे लोरियाँ सुनाये"। जावेद रियाज़ निर्मित व सुशील मलिक निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे कृष्णा, साथी गांगुली, सुरेश ओबेरोय प्रमुख। फ़िल्म में संगीत था नदीम श्रवण का और गीत लिखे समीर नें। दोस्तों, यह वह दौर था कि जब टी-सीरीज़, नदीम श्रवण, समीर, अनुराधा पौडवाल की टीम पूरी तरह से फ़िल्म-संगीत के मैदान में छायी हुई थी, और एक के बाद एक म्युज़िकल फ़िल्में बनती चली जा रही थीं। गुलशन कुमार की हत्या के बाद ही जाकर यह दौर ख़त्म हुई औ

घर के उजियारे सो जा रे....याद है "डैडी" की ये लोरी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 789/2011/229 'चं दन का पलना, रेशम की डोरी' - पुरुष गायकों की गाई फ़िल्मी लोरियों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की नवी कड़ी में आप सभी का मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ फिर एक बार स्वागत करता हूँ। आज की कड़ी के लिए हमनें जिस गीत को चुना है वह है १९८९ की फ़िल्म 'डैडी' का। फ़िल्म की कहानी पिता-पुत्री के रिश्ते की कहानी है। यह कहानी है पूजा की जिसे जवान होने पर पता चलता है कि उसका पिता ज़िन्दा है, जो एक शराबी है। पूजा किस तरह से उनकी ज़िन्दगी को बदलती है, कैसे शराब से उसे मुक्त करवाती है, यही है इस फ़िल्म की कहानी। बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी है इस फ़िल्म की। पूजा को उसके नाना-नानी पाल-पोस कर बड़ा करते हैं और उसे अपनी मम्मी-डैडी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं। उसके नाना, कान्ताप्रसाद के अनुसार उसके डैडी की मृत्यु हो चुकी है। पर जब पूजा बड़ी होती है तब उसे टेलीफ़ोन कॉल्स आने लगते हैं जो केवल 'आइ लव यू' कह कर कॉल काट देता है। कान्ताप्रसाद को जब आनन्द नामक कॉलर का पता चलता है तो उसे पिटवा देते हैं और पूजा से न मिलने

ज़िन्दगी महक जाती है....जब सुरीली आवाज़ को येसुदास की और हो लोरी का वात्सल्य

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 788/2011/228 न मस्कार दोस्तों! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आजकल आप आनन्द ले रहे हैं पुरुष गायकों द्वारा गाई हुई फ़िल्मी लोरियों की, और शृंखला है 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी'। किसी भी बच्चे के सर से माँ और बाप में से किसी का भी अगर साया उठ जाये, तो वह बच्चा बड़ा ही अभागा होता है। माँ का प्यार एक तरह का होता है, और पिता का प्यार दूसरी तरह का। दोनों की समान अहमियत होती है बच्चे के विकास में। लेकिन हर बच्चा तो किस्मतवाला नहीं होता न! किसी को माँ नसीब नहीं होता तो किसी को पिता। माँ के अभाव में पिता को पिता और माँ, दोनों की भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं। ऐसी सिचुएशन कई बार हमारी फ़िल्मों में भी देखी गई है। आज हम जिस गीत को सुनने जा रहे हैं उसकी कहानी भी इसी तरह की है। गोविंदा पर फ़िल्माई यह लोरी है 'हत्या' फ़िल्म की - "ज़िन्दगी महक जाती है, हर नज़र बहक जाती है, न जाने किस बगिया का फूल है तू मेरे प्यारे, आ रा रो आ रा रो"। गायक हैं येसुदास और साथ में आवाज़ लता जी की है जो उस मातृहीन बच्चे के सपने में उसकी माँ की भूमिका में गाती हैं। दोस्तों, येसुद