ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 783/2011/223 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! इन दिनों इस स्तंभ में आप आनन्द ले रहे हैं पुरुष गायकों द्वारा गाई फ़िल्मी लोरियों से सजी इस लघु शृंखला 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी' का। आज के अंक की लोरी भी यही है जिससे इस शृंखला का नाम रखा गया है। हेमन्त कुमार की गाई हुई १९५४ की फ़िल्म 'शबाब' की लोरी "चंदन का पलना, रेशम की डोरी, झुलना झुलाऊँ निन्दिया को तोरी"। शक़ील बदायूनी के बोल, नौशाद का संगीत। लोरी फ़िल्माई गई है भारत भूषण पर। वैसे इस लोरी के दो संस्करण हैं, पहला हेमन्त दा की एकल आवाज़ में और दूसरे में लता जी भी उनके साथ हैं। एकल संस्करण में महल का दृश्य है जिसमें गायक बने भारत भूषण इस लोरी को गाते हैं और पर्दे के उस पार कक्ष में नूतन बिस्तर में बैठी हैं। राजा और दासियाँ/ सहेलियाँ छुप-छुप कर यह दृश्य देख रहे हैं। मैंने फ़िल्म तो नहीं देखी पर इस गीत के विडियो को देख कर ऐसा लगता है जैसे नूतन को नींद न आने की बिमारी है और उन्हें सुलाने के लिए राजमहल में गायक को बुलाया गया है लोरी गाने के लिए। नूतन