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चाँद सो गया, तारे सो गए....मधुर लोरी में पुरवैया की महक लाये अनिल दा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 761/2011/201 ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीले सफ़र में। और इस सुरीले सफ़र के हमसफ़र, मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ और आप सभी को साथ लेकर फिर से चल पड़ा हूँ एक और नई शृंखला के साथ। दोस्तों, किसी भी देश में जितने भी प्रकार के संगीत पाये जाते हैं, उनमें से सबसे ज़्यादा लोकप्रिय संगीत होता है वहाँ का लोक-संगीत। जैसा कि नाम में ही "लोक" शब्द का प्रयोग है, यह है ही आम लोगों का संगीत, सर्वसाधारण का संगीत। लोक-संगीत एक ऐसी धारा है संगीत की जिसे गाने के लिए न तो किसी संगीत शिक्षा की ज़रूरत पड़ती है और न ही इसमें सुरों या तकनीकी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। यह तो दिल से निकलने वाला संगीत है जो सदियों से लोगों की ज़ुबाँ से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती चली आई है। हमारे देश में पाये जाने वाला लोक-संगीत यहाँ की अन्य सब चीज़ों की तरह ही विविध है, विस्तृत है, विशाल है। यहाँ न केवल हर राज्य का अपना अलग लोक-संगीत है, बल्कि एक राज्य के अन्दर भी कई कई अलग तरह के लोक-संगीत पाये जाते हैं। आज

सुर संगम में आज - सरोद के पर्याय हैं- उस्ताद अमजद अली खाँ

सुर संगम- 38 – उस्ताद अमजद अली खान साहब को जन्मदिवस (9 अक्तूबर) की हार्दिक शुभकामनाएँ आज ‘सुर संगम’ के इस नये अंक में, आप सब संगीत-रसिकों का, कृष्णमोहन मिश्र की ओर से हार्दिक स्वागत है। आज देश के जाने-माने संगीतज्ञ और सरोद-वादक उस्ताद अमजद अली खाँ का जन्मदिन है। इस अवसर पर हम 'सुर-संगम' परिवार और देश-विदेश के करोड़ों संगीत-प्रेमियों की ओर से उस्ताद का हार्दिक अभिनन्दन करते हैं। वर्तमान में उस्ताद अमजद अली खाँ सरोद-वादकों में शिखर पर हैं और ‘सरोद-सम्राट’ की उपाधि से विभूषित हैं। ९ अक्तूबर, १९४५ को ग्वालियर में संगीत के सेनिया बंगश घराने की छठी पीढ़ी में जन्म लेने वाले अमजद अली खाँ को संगीत विरासत में प्राप्त हुआ था। इनके पिता उस्ताद हाफ़िज़ अली खाँ ग्वालियर राज-दरबार में प्रतिष्ठित संगीतज्ञ थे। इस घराने के संगीतज्ञों ने ही ईरान के लोकवाद्य ‘रबाब’ को भारतीय संगीत के अनुकूल परिवर्द्धित कर ‘सरोद’ नामकरण किया। अमजद अली अपने पिता हाफ़िज़ अली के सबसे छोटे पुत्र हैं। उस्ताद हाफ़िज़ अली खाँ ने परिवार के सबसे छोटे और सर्वप्रिय सन्तान को बहुत छोटी उम्र में ही संगीत-शिक्षा देना आरम्भ कर दि

मैं अकेला अपनी धुन में मगन - बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अमित खन्ना से एक खास मुलाक़ात

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 62 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! आज के इस शनिवार विशेषांक में हम आपकी भेंट करवाने जा रहे हैं एक ऐसे शख़्स से जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। एक गीतकार, फ़िल्म-निर्माता, निर्देशक, टी.वी प्रोग्राम प्रोड्युसर होने के साथ साथ इन दिनों वो रिलायन्स एन्टरटेनमेण्ट के चेयरमैन भी हैं। तो आइए मिलते हैं श्री अमित खन्ना से, दो अंकों की इस शृंखला में, जिसका नाम है 'मैं अकेला अपनी धुन में मगन'। आज प्रस्तुत है इसका पहला भाग। सुजॉय - अमित जी, बहुत बहुत स्वागत है आपका 'हिंद-युग्म' में। और बहुत बहुत शुक्रिया हमारे मंच पर पधारने के लिये, हमें अपना मूल्यवान समय देने के लिए। अमित जी - नमस्कार और धन्यवाद जो मुझे आपने याद किया! सुजॉय - सच पूछिये अमित जी तो मैं थोड़ा सा संशय में था कि आप मुझे कॉल करेंगे या नहीं, आपको याद रहेगा या नहीं। अमित जी - मैं कभी कुछ भूलता नहीं। सुजॉय - मैं अपने पाठकों को यह बताना चाहूँगा कि मेरी अमित जी से फ़ेसबूक पर मुलाकात होने पर जब मैंने उनसे साक्षात्कार के लिए आग्रह किया तो वो न