Skip to main content

Posts

उड़ के पवन के रंग चलूंगी....उन्मुक्त भावनाओं की उड़ान और लता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 752/2011/192 "मे री आवाज ही पहचान है...." की दूसरी कड़ी में मैं अमित तिवारी आप सब लोगों का तहेदिल से स्वागत करता हूँ. लता जी एक ऐसा नाम है जिसे किसी पहचान की जरूरत नहीं है. लता नाम लेते ही आँखों में जो सूरत आती है वो लता दीदी की होती है. आज कुछ और बातें उनके बारे में. लता जी अपने छोटे भाई और बहनों को छोड़ कर किसी को कभी भी 'तुम' नहीं कहतीं - चाहे वो उम्र में कितना ही छोटा क्यों न हो. सबको सम्मान देना आता है. बात है भी सही, अगर आप दूसरों को सम्मान दोगे तो आपको भी मिलेगा. लता जी की एक और खासियत थी कि वो अपनी रिकॉर्डिंग केवल तभी कैंसिल करती थीं जब उन्हें लगता था कि उनका गला गाने के साथ न्याय नहीं कर पायेगा. सुबह उठ कर, रियाज़ करते वक्त,जहाँ उनको अपनी आवाज उन्नीस-बीस लगी, वहीं उनका फोन आ जाता था कि 'आज तो माफ ही करें'. देवानन्द ने एक बार कहा था कि 'ऐसा आज तक नहीं सुना गया कि लता जी किसी बड़े म्यूजिक डायरेक्टर या बैनर के लिए, किसी नए प्रोड्यूसर या कम्पोजर की रिकॉर्डिंग केंसिल करी हो." यानी अपनी गुणवत्ता पर रत्ती-भर भी संदेह हो तो रि

ये रातें ये मौसम, ये हँसना हँसाना...जब लता ने दी श्रद्धाजन्ली पंकज मालिक को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 751/2011/191 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड’ के सभी श्रोता-पाठकों का मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ हार्दिक स्वागत करता हूँ। श्री कृष्णमोहन मिश्र द्वारा प्रस्तुत पिछली शृंखला के बाद आज से हम अपनी १०००-वें अंक की यात्रा का अंतिम चौथाई भाग शुरु कर रहे हैं, यानी अंक-७५१। आज से शुरु होनेवाली नई शृंखला को प्रस्तुत करने के लिए हमने आमन्त्रित किया है ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के नियमित श्रोता-पाठक व पहेली प्रतियोगिता के सबसे तेज़ खिलाड़ी श्री अमित तिवारी को। आगे का हाल अमित जी से सुनिए… ------------------------------------------------------------------------------- नमस्कार! "ओल्ड इज गोल्ड" पर आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला कुछ विशेष है.बिलकुल सही पढ़ा आपने. यह श्रृंखला दुनिया की सबसे मधुर आवाज को समर्पित है. एक ऐसी आवाज जो न केवल भारत बल्कि दुनिया के कोने कोने में छाई हुई है. जिस आवाज को सुनकर आदमी एक अलग ही दुनिया में चला जाता है. ये श्रृंखला लता दीदी पर आधारित है.२८ सितम्बर लता जी का जन्मदिवस है ओर इससे बेहतर तरीका क्या हो सकता है उनका जन्मदिन मनाने का कि पूरी श्रृंखल

मयूरी वीणा के उद्धारक और वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र

सुर संगम- 36 – दो तंत्रवाद्यों का समागम है, मयूरी वीणा, दिलरुबा अथवा इसराज में (पहला भाग) सु र संगम के एक नये अंक में आप सब संगीतनुरागियों का, मैं कृष्णमोहन मिश्र हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज के अंक में हम आपसे एक ऐसे पारम्परिक तंत्रवाद्य पर चर्चा करेंगे, जिसमें दो वाद्यों के गुण उपस्थित होते हैं। वैदिक काल से ही तंत्रवाद्य के अनेक प्रकार प्रचलन में रहे हैं। प्राचीन काल में गज (Bow) से बजने वाले तंत्रवाद्यों में ‘पिनाकी वीणा’, ‘निःशंक वीणा’, ‘रावणहस्त वीणा’ आदि प्रमुख रूप से प्रचलित थे। आधुनिक समय में इन्हीं वाद्यों का विकसित और परिमार्जित रूप ‘सारंगी’ और ‘वायलिन’ सर्वाधिक लोकप्रिय है। तंत्रवाद्य का एक दूसरा प्रकार है, जिसे गज (Bow) के बजाय तारों पर आघात (Stroke) कर स्वरों की उत्पत्ति की जाती है। प्राचीन काल में इस श्रेणी में ‘रुद्र वीणा’, ‘सरस्वती वीणा’, ‘शततंत्री वीणा’ आदि प्रचलित थे, तो आधुनिक काल में ‘सितार’, ‘सरोद’, ‘संतूर’ आदि आज लोकप्रिय हैं। इन दोनों प्रकार के प्राचीन वाद्यों की अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं। प्राचीन गजवाद्यों में नाद पक्ष का गाम्भीर्य उपस्थित रहता है, जबकि आघात स

"हर इन्सान को अपनी ज़िंदगी जीने का पूरा हक़ है..."- युवा अभिनेता युवराज पराशर

अभिनेता युवराज पराशर के पसन्द के ५ लता नम्बर्स ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 60 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'शनिवार विशेषांक' में। मैं, सुजॉय चटर्जी, हाज़िर हूँ फिर एक बार फिर एक साक्षात्कार के साथ। आज हम आपको मिलवा रहे हैं हाल में बनी फ़िल्म 'डोन्नो व्हाई न जाने क्यों' के नायक श्री युवराज पराशर से, जो बनाएंगे अपनी इस फ़िल्म के बारे में और साथ ही साथ हमें सुनवाएंगे लता जी के गाए हुए उनके पसन्दीदा पाँच गीत। आइए मिलते हैं युवा अभिनेता युवराज पराशर से। सुजॉय - नमस्कार युवराज, स्वागत है आपका 'हिन्द-युग्म' के 'आवाज़' मंच पर और यह है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का साप्ताहिक विशेषांक। युवराज - नमस्कार, और बहुत बहुत धन्यवाद आपका! सुजॉय - युवराज, क्योंकि लता जी के जनमदिवस के उपलक्ष्य पर इस सप्ताह का यह विशेषांक प्रस्तुत हो रहा है, और आपका भी लता जी से एक तरह का सम्बंध हुआ है आपकी फ़िल्म के ज़रिए, इसलिए बातचीत का सिलसिला भी मैं लता जी से ही शुरु करना चाहूँगा। सबसे पहले तो अपने पाठकों को वह तस्वीर दिखा दें जिसमें आप और कपिल

सुनो कहानी - बदचलन - हरिशंकर परसाई - अर्चना चावजी

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में अनुराग शर्मा की कहानी " टुन्न परेड " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य " बदचलन ", जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 4 मिनट 44 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "बहू-बेटियां सबके घर में हैं। यहां ऐसा दुराचारी आदमी रहने आ रहा है। भला शरीफ आदमी यहां कैसे रहेंगे।" ( हरिशंकर परसाई की "बदचलन" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुने

चली गोरी पी के मिलन को चली...राग भैरवी में पी को ढूंढती हेमन्त दा की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 750/2011/190 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड’ पर चल रही श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की समापन कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के आरम्भ में हमने आपसे स्पष्ट किया था कि शास्त्रीय संगीत से सम्बन्धित इस प्रकार की लघु श्रृंखलाओं का उद्देश्य पाठकों को कलाकार बनाना नहीं है, बल्कि संगीत का अच्छा श्रोता बनाना है। प्रायः लोग कहते मिल जाते हैं कि शास्त्रीय संगीत बहुत जटिल है और सिर के ऊपर से गुज़र जाता है। परन्तु यह जटिलता और क्लिष्टता तो प्रस्तुतकर्त्ता यानी कलाकार के लिए है, साधारण श्रोता के लिए नहीं। संगीत की थोड़ी प्रारम्भिक जानकारी पाकर भी आप अच्छे श्रोता बन सकते हैं। ऐसी श्रृंखलाएँ प्रस्तुत करने के पीछे हमारा यही उद्देश्य है। श्रृंखला की कल की कड़ी तक हमने संगीत के नौ थाटों और उनके आश्रय रागों का परिचय प्राप्त किया। आज हम ‘भैरवी’ थाट और राग के बारे में चर्चा करेंगे। परन्तु इससे पहले आइए, थाट और राग के अन्तर को समझने का प्रयास किया जाए। दरअसल थाट केवल ढाँचा है और राग एक व्यक्तित्व है। थाट-निर्माण के लिए सप्तक के

जागो रे जागो प्रभात आया...मन और जीवन के अंधेरों को प्रकाशित करता एक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 749/2011/189 रा गदारी संगीत में प्रचलित थाट प्रणाली पर परिचयात्मक श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की नौवीं कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आपका स्वागत करता हूँ। आज बारी है थाट ‘तोड़ी’ से परिचय प्राप्त करने की। श्रृंखला की अभी तक की कड़ियों में हमने उत्तर भारतीय संगीत में प्रचलित थाट प्रणाली को रेखांकित करने का प्रयास किया है। आज की कड़ी में हम दक्षिण भारतीय संगीत में प्रचलित प्राचीन थाट व्यवस्था पर चर्चा करेंगे। दक्षिण भारतीय संगीत पद्यति के विद्वान पण्डित व्यंकटमखी ने थाटों की संख्या निश्चित करने के लिए गणित को आधार बनाया और पूर्णरूप से गणना कर थाटों की कुल संख्या ७२ निर्धारित की। इनमें से उन्होने १९ व्यावहारिक थाटों का चयन किया। व्यंकटमखी की थाट संख्या को दक्षिण भारतीय संगीतज्ञों ने तो अपनाया, किन्तु उत्तर भारत के संगीत पर इसका विशेष प्रभाव नहीं हुआ। उत्तर भारतीय संगीत के विद्वान पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने रागों के वर्गीकरण के लिए १० थाट प्रणाली को अपनाया और रागों का वर्गीकरण किया, जो आज तक प्रचलित है। थाट का उद्देश्य मात्र राग के शुद्ध और