Skip to main content

Posts

करलो जितना सितम कर सको तुम...शमशाद जी का गाया अंतिम फ़िल्मी गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 740/2011/180 पा र्श्वगायिका शमशाद बेगम पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे' की अंतिम कड़ी लेकर हम हाज़िर हैं। आज शमशाद बेगम मुंबई के पवई में हीरानंदानी कॉम्प्लेक्स में अपनी बेटी उषा रात्रा और उषा की पति के साथ रहती हैं, मीडिया से दूर, अपने चाहने वालों से दूर। शमशाद जी अपने पति गणपत लाल बट्टो के १९५५ में मृत्यु के बाद से ही अपनी बेटी के साथ रहती हैं। अपने रूढ़ीवादी पिता को दिये वादे के मुताबिक उन्होंने पहले के तीन दशकों में किसी को अपनी तसवीर खींचने नहीं दी। रेकॉर्डिंग् स्टुडिओ भी वो बुर्खे में जाया करती थीं। भले ही उनके लाखों फ़ैन थे, लेकिन इंडस्ट्री के चंद लोगों को ही मालूम था कि वो दिखती कैसी हैं। कभी उन्होंने प्रेस या मीडिआ को इंटरव्यू नहीं दिया। बस उनकी आवाज़ और उनके गाये हुए गीत ही उनकी पहचान बनी रही। और हम भी यही समझते हैं कि यही सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। शमशाद जी नें अपना पहला स्टेज शो पचास साल की उम्र में पेश किया। अपना पहला फ़ोटो भी 'टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' को इसी दौरान खींचने दिया। अभी कुछ समय पहले मीडिआ

भीगा भीगा प्यार का समां....भीगे भीगे मौसम में सुनिए ये युगल गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 740/2011/180 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में इन दिनों जारी है सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका शमशाद बेगम पर केन्द्रित लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे'। आज इस शृंखला की नवी कड़ी में प्रस्तुत है शमशाद जी का गाया एक युगल गीत। अब तक आपनें उनके गाये हुए एकल गीत सुनें, पर आज वो आवाज़ मिला रही हैं रफ़ी साहब के साथ। यूं तो तलत महमूद और मुकेश के साथ भी शमशाद जी गा चुकी हैं, पर किशोर कुमार के साथ उन्होंने बहुत से मज़ाइया गीत गाये हैं, और उनके सब से ज़्यादा युगल गीत रफ़ी साहब के साथ हैं। आज की कड़ी के लिए हमने जिस रफ़ी-शमशाद डुएट को चुना है, वह है साल १९६० की फ़िल्म 'सावन' का रिमझिम सावन बरसाता हुआ "भीगा भीगा प्यार का समा, बता दे तुझे जाना है कहाँ"। संगीतकार हैं हंसराज बहल। नय्यर साहब के संगीत की थोड़ी बहुत झलक मिलती है इस गीत में, शायद घोड़ा-गाड़ी रीदम की वजह से। और यह भी सच है कि नय्यर साहब से पहले पंकज मल्लिक और नौशाद साहब इस तरह के रीदम का प्रयोग अपने गीतों में कर चुके थे। क्योंकि नय्यर साहब नें इस रीदम पर सब से ज़्यादा गानें कम्पोज़ किये, इसलिये यह र

कहाँ चले हो जी प्यार में दीवाना करके...अपनी आवाज़ से दीवाना करती शमशाद बेगम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 739/2011/179 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! शमशाद बेगम के गाये गीतों पर केन्द्रित इस लघु शृंखला में आइए आज एक बार फिर से रुख़ करते हैं कमल शर्मा द्वारा ली गई साक्षात्कार की तरफ़ और पढ़ा जाये उसी साक्षात्कार से कुछ और अंश। कमल जी - मुंबई में आने के बाद यहाँ आपकी पहली फ़िल्म कौन सी थी? शमशाद जी - पहली फ़िल्म महबूब साहब का किया, 'तक़दीर', वो लाहौर गये थे। 'तक़दीर' पिक्चर के लिए मुझे बूक किया था। वहाँ उनकी हीरोइन थी, उनका ससुराल भी वहीं था। वो तो नहीं आईं, महबूब साहब मेरे घर आए और कहा कि तुम मेरे साथ चलो। मेरे बाबा आने नहीं देते थे। वो कहते थे इधर ही ठीक है, तुम क्या इतनी दूर बम्बई जाओगी? दो दो साल शक्ल देखने को नहीं मिलेंगे। महबूब साहब नें कहा कि अरे समुंदर में जाने दो उसको। उन्होंने बाबा से कहा कि मिया, आप ग़लत समझ रहे हैं, इसको जाने दीजिए। अब इसका नाम इतना है कि जाने दो इसे, आप नें सोचा भी नहीं होगा कितनी बड़ी इंडस्ट्री है। उनके कहने पर बाबा नें कहा कि अच्छा जाने देते हैं। फिर 'तक़दीर' पिक्चर बन