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सुर संगम में आज - सगीत शिरोमणि कुमार गन्धर्व

सुर संगम - 30 - पंडित कुमार गंधर्व वे अपने गायन में छोटे-छोटे व सशक्त टुकड़ों व तानों के प्रयोग के लिए जाने जाते थे परंतु कैंसर से जूझने के कारण उनकी गायकी में काफ़ी प्रभाव पड़ा "मो तिया गुलाबे मरवो... आँगना में आछो सोहायो गेरा गेराई चमेली... फुलाई सुगंधा मोहायो..." उपरोक्त पंक्तियाँ हैं एक महान शास्त्रीय गायक की रचना के| एक ऐसा नाम जिसे शास्त्रीय भजन गायन में सर्वोत्तम माना गया है, कुछ लोगों का मानना है कि वे लोक संगीत व भजन के सर्वोत्तम गायक थे तो कुछ का मानना है कि उनकी सबसे बहतरीन रचनाएँ हैं उनके द्वारा रचित राग जिन्हें वे ६ से भी अधिक प्रकार के ले व तानों को मिश्रित कर प्रस्तुत करते थे| मैं बात करा रहा हूँ महान शास्त्रीय संगीतज्ञ पंडित कुमार गंधर्व की जिन्हें इस अंक के माध्यम से सुर-संगम दे रहा है श्रद्धांजलि| कुमार गंधर्व का जन्म बेलगाम, कर्नाटक के पास 'सुलेभवि' नामक स्थान में ८ अप्रैल १९२४ को हुआ, माता-पिता ने नाम रखा ' शिवपुत्र सिद्दरामय्या कोमकलीमठ'| उन्होंने संगीत की शिक्षा उन दिनों जाने-माने संगीताचार्य प्रो. बी. आर. देवधर से ली| बाल्यकाल से ही सं

OIG - शनिवार विशेष - 51 - "किशोर दा के कई गीतों में पिताजी का बड़ा योगदान था"

पार्श्वगायिका पूर्णिमा (सुषमा श्रेष्ठ) अपने पिता व विस्मृत संगीतकार भोला श्रेष्ठ को याद करते हुए... Bhola Shreshtha (PC: Minal Rajendra Misra) ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। दोस्तों, १९३१ से लेकर अब तक फ़िल्म-संगीत संसार में न जाने कितने संगीतकार हुए हैं, जिनमें से बहुत से संगीतकारों को अपार सफलता और शोहरत हासिल हुई, और बहुत से संगीतकार ऐसे भी हुए जिन्हें वो मंज़िल नसीब नहीं हुई जिसकी वो हक़दार थे। कभी छोटी बजट की फ़िल्मों में मौका पाने की वजह से तो कभी स्टण्ट या धार्मिक फ़िल्मों का ठप्पा लगने की वजह से, कभी व्यक्तिगत कारणों से और कभी कभी सिर्फ़ क़िस्मत के खेल की वजह से ये प्रतिभाशाली संगीतकार गुमनामी में रह कर चले गए। पर फ़िल्म-संगीत के धरोहर को अपनी सुरीली धुनों से समृद्ध कर गए। ऐसे ही एक कमचर्चित पर गुणी संगीतकार हुए भोला श्रेष्ठ। आज की पीढ़ी के अधिकतर नौजवानों को शायद यह नाम कभी न सुना हुआ लगे, पर गुज़रे ज़माने के सुरीले संगीत में दिलचस्पी रखने वालों को भोला जी का नाम ज़रूर याद होगा।

अनुराग शर्मा की कहानी "गुरुर्ब्रह्मा"

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी " टोड " का पॉडकास्ट उन्हीं की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा का एक व्यंग्य " गुरुर्ब्रह्मा ... ", उन्हीं की आवाज़ में। कहानी "टोड" का कुल प्रसारण समय 2 मिनट 13 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पतझड़ में पत्ते गिरैं, मन आकुल हो जाय। गिरा हुआ पत्ता कभी, फ़िर वापस ना आय।। ~ अनुराग शर्मा हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "उन्होंने भैंस-सेवा का काम अपने गुर्गों को सौंपकर सरस्वती-सेवा में फ़िर से हाथ आज़माना शुरू किया।" ( अनुराग शर्मा की "गुरुर्ब्रह्मा" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर