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अनुराग शर्मा की कहानी "टोड"

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी " लागले बोलबेन " का पॉडकास्ट उन्हीं की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक कहानी " टोड ", उन्हीं की आवाज़ में। कहानी "टोड" का कुल प्रसारण समय 8 मिनट 4 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पतझड़ में पत्ते गिरैं, मन आकुल हो जाय। गिरा हुआ पत्ता कभी, फ़िर वापस ना आय।। ~ अनुराग शर्मा हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "देखो, देखो, वह टोड मास्टर और उसकी क्लास!" ( अनुराग शर्मा की "टोड" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ल

रस के भरे तोरे नैन....हिंदी फ़िल्मी गीतों में ठुमरी परंपरा पर आधारित इस शृंखला को देते हैं विराम इस गीत के साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 700/2011/140 भा रतीय फिल्मों में ठुमरियों के प्रयोग पर केन्द्रित श्रृंखला "रस के भरे तोरे नैन" के समापन अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| पिछली 19 कड़ियों में हमने आपको फिल्मों में 40 के दशक से लेकर 80 के दशक तक शामिल की गईं ठुमरियों से न केवल आपका परिचय कराने का प्रयत्न किया, बल्कि ठुमरी शैली की विकास-यात्रा के कुछ पड़ावों को रेखांकित करने का प्रयत्न भी किया| आज के इस समापन अंक में हम आपको 1978 में प्रदर्शित फिल्म "गमन" की एक मनमोहक ठुमरी का रसास्वादन कराएँगे; परन्तु इससे पहले वर्तमान में ठुमरी गायन के सशक्त हस्ताक्षर पण्डित छन्नूलाल मिश्र से आपका परिचय भी कराना चाहते हैं| एक संगीतकार परिवार में 3 अगस्त,1936 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद में जन्में छन्नूलाल मिश्र की प्रारम्भिक संगीत-शिक्षा अपने पिता बद्रीप्रसाद मिश्र से प्राप्त हुई| बाद में उन्होंने किराना घराने के उस्ताद अब्दुल गनी खान से घरानेदार गायकी की बारीकियाँ सीखीं| जाने-माने संगीतविद ठाकुर जयदेव सिंह का मार्गदर्शन भी श्री मिश्र को मिला| निरन्तर शोधपूर्ण प्रवृत्ति के कारण उनकी ख्याल ग

"सैयाँ रूठ गए, मैं मनाती रही..." रूठने और मनाने के बीच विरहिणी नायिका का अन्तर्द्वन्द्व

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 699/2011/139 उ पशास्त्रीय संगीत की अत्यन्त लोकप्रिय शैली -ठुमरी के फिल्मों में प्रयोग विषयक श्रृंखला "रस के भरे तोते नैन" की उन्नीसवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ| दोस्तों; आज का अंक आरम्भ करने से पहले आपसे दो बातें करने की इच्छा हो रही है| इस श्रृंखला को प्रस्तुत करने की योजना जब सुजॉय जी ने बनाई तब से सैकड़ों फ़िल्मी ठुमरियाँ मैंने सुनी, किन्तु इनमे से भक्तिरस का प्रतिनिधित्व करने वाली एक भी ठुमरी नहीं मिली| जबकि आज मुख्यतः श्रृंगार, भक्ति, आध्यात्म और श्रृंगार मिश्रित भक्ति रस की ठुमरियाँ प्रचलन में है| पिछली कड़ियों में हमने -कुँवरश्याम, ललनपिया, बिन्दादीन महाराज आदि रचनाकारों का उल्लेख किया था, जिन्होंने भक्तिरस की पर्याप्त ठुमरियाँ रची हैं| परन्तु फिल्मों में सम्भवतः ऐसी ठुमरियों का अभाव है| पिछले अंकों में हम यह भी चर्चा कर चुके हैं कि उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों से तवायफों के कोठे से हट कर जनसामान्य के बीच ठुमरी का प्रचलन आरम्भ हो चुका था| देश के स्वतंत्र होने तक ठुमरी अनेक राष्ट्रीय और प्रादेशिक महत्त्व के