Skip to main content

Posts

जाओ ना सताओ रसिया...छेड़-छाड़ से परिपूर्ण ठुमरी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 691/2011/131 'ओ ल्ड इज गोल्ड' पर जारी 'फिल्मों में ठुमरी' विषयक श्रृंखला "रस के भरे तोरे नैन..." का नया अंक लेकर मैं कृष्णमोहन मिश्र पुनः उपस्थित हूँ| इन दिनों हम ठुमरी की विकास-यात्रा के विविध पड़ाव और ठुमरी के विकास में जिनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है, ऐसे संगीतज्ञों और रचनाकारों के कृतित्व पर आपसे चर्चा कर रहे हैं| श्रृंखला की पहली पाँच कड़ियों में हमने 30 और 40 के दशक की फिल्मों तथा छठीं से दसवीं कड़ी तक 50 के दशक की फिल्मों में प्रयुक्त ठुमरियों का रसास्वादन कराया था| श्रृंखला के इस तीसरे सप्ताह में हमने आपको सुनवाने के लिए 60 के दशक की फिल्मों में प्रयोग की गई ठुमरियाँ चुनी हैं| पिछली कड़ी में हमने आपसे "पछाहीं ठुमरी" शैली और दिल्ली के भक्त गायक-रचनाकार कुँवरश्याम के व्यक्तित्व-कृतित्व पर चर्चा की थी| "पछाहीं ठुमरी" के एक और अप्रतिम वाग्गेयकार (रचनाकार) फर्रुखाबाद के पण्डित ललन सारस्वत "ललनपिया" हुए हैं, जिन्होंने ठुमरी शैली के खजाने को खूब समृद्ध किया| फर्रुखाबाद निवासी "ललनपिया" का जन्म 185

परदेस में जब घर-परिवार और सजनी की याद आई तब उपजा लोक संगीत "बिरहा"

सुर संगम - 27 - लोक गीत शैली -बिरहा बिरहा गायन के मंचीय रूप में वाद्यों की संगति होती है| प्रमुख रूप से ढोलक, हारमोनियम और करताल की संगति होती है| शा स्त्रीय और लोक संगीत के साप्ताहिक स्तम्भ "सुर संगम" के इस नए अंक में आप सभी संगीत-प्रेमियों का, मैं कृष्णमोहन मिश्र हार्दिक स्वागत करता हूँ| दोस्तों; भारतीय लोक संगीत में अनेक ऐसी शैलियाँ प्रचलित हैं जिनमें नायक से बिछड़ जाने या नायक से लम्बे समय तक दूर होने की स्थिति में विरह-व्यथा से व्याकुल नायिका लोकगीतों के माध्यम से स्वयं को अभिव्यक्त करती है| देश के प्रायः प्रत्येक क्षेत्र में नायिका की विरह-व्यथा का प्रकटीकरण करते गीत बहुतेरे हैं, परन्तु विरह-पीड़ित नायक की अभिव्यक्ति देने वाले लोकगीत बहुत कम मिलते हैं| उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में लोक-संगीत की एक ऐसी विधा अत्यन्त लोकप्रिय है, जिसे "बिरहा" नाम से पहचाना जाता है| चित्र परिचय बिरहा गुरुओं का यह 1920 का दुर्लभ चित्र है; जिसके मध्य में बैठे हैं, बिरहा को एक प्रदर्शनकारी कला के रूप में प्रतिष्ठित करने वाले गुरु बिहारी यादव, बाईं ओर है- रम्मन यादव तथा

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 48 - "मेरे पास मेरा प्रेम है"

पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री लावण्या शाह से लम्बी बातचीत पहले पढ़ें ये पुराने एपिसोड्स भाग ०१ भाग ०२ भाग ०३ अब पढ़ें आगे... 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। इस साप्ताहिक स्तंभ में पिछले तीन सप्ताह से हम सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार, दार्शनिक व फ़िल्मी व ग़ैर-फ़िल्मी गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह से बातचीत कर रहे हैं। पिछली कड़ी में आपनें जाना कि स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ पंडित जी का किस तरह का पिता-पुत्री जैसा सम्बंध था और उनके परिवार के साथ किस तरह लता जी जुड़ी हुई थीं। आइए बातचीत को आगे बढ़ाते हैं। प्रस्तुत है लघु शृंखला 'मेरे पास मेरा प्रेम है' की चौथी व अंतिम कड़ी। सुजॉय - लावण्या जी, पिछले तीन सप्ताह से हम आपसे बातचीत कर रहे हैं, आज फिर एक बार आपका बहुत बहुत स्वागत है 'हिंद-युग्म आवाज़' के इस मंच पर, नमस्कार! लावण्या जी - नमस्ते! सुजॉय - लावण्या जी, एक पिता के रूप में आपनें अपने जीवन के अलग अलग पड़ावों में अपने पिताजी को क