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"नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर.." - ठुमरी जब लोक-रंग में रँगी हो

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 686/2011/126 'ओ ल्ड इज गोल्ड' पर जारी श्रृंखला "रस के भरे तोरे नैन" के दूसरे सप्ताह में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ| पिछले अंकों में हमने आपके साथ "ठुमरी" के प्रारम्भिक दौर की जानकारी बाँटी थी| यह भी चर्चा हुई थी कि उस दौर में "ठुमरी" कथक नृत्य का एक हिस्सा बन गई थी| परन्तु एक समय ऐसा भी आया जब "ठुमरी" की विकास-यात्रा में थोड़ा व्यवधान भी आया| इस शैली के पृष्ठ-पोषक नवाब वाजिद अली शाह को 1856 में अंग्रेजों ने अपनी साम्राज्यवादी नीतियों के कारण बन्दी बना लिया गया| नवाब को बन्दी बना कर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के मटियाबुर्ज नामक स्थान पर भेज दिया गया| नवाब यहाँ पर मृत्यु-पर्यन्त (1887) तक स्थायी रूप से रहे| नवाब वाजिद अली शाह के लखनऊ छूटने से पहले तक "ठुमरी" की जड़ें जमीन को पकड़ चुकी थीं| इस दौर में केवल संगीतज्ञ ही नहीं बल्कि शासक, दरबारी, सामन्त, शायर, कवि आदि सभी "ठुमरी" की रचना, गायन और उसके भावाभिनय में प्रवृत्त हो गए थे| वाजिद अली शाह के रिश्ते

सुर संगम में आज - वैदिककालीन तंत्रवाद्य रूद्रवीणा के साधक उस्ताद असद अली खाँ के तंत्र-स्वर शान्त हुए

सुर संगम - 26 - उस्ताद असद अली खाँ वे भगवान शिव को रूद्रवीणा का निर्माता मानते थे| सा प्ताहिक स्तम्भ 'सुर संगम' के इस विशेष अंक में आज हम रूद्रवीणा के अनन्य साधक उस्ताद असद अली खाँ को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उपस्थित हुए हैं, जिनका गत 14 जून को दिल्ली में निधन हो गया| उनके निधन से हमने वैदिककालीन वाद्य रूद्रवीणा को परम्परागत रूप से आधुनिक संगीत जगत में प्रतिष्ठित कराने वाले एक अप्रतिम कलासाधक को खो दिया है| उस्ताद असद अली खाँ जयपुर बीनकार (वीणावादकों) घराने की बारहवीं पीढी के कलासाधक थे | यह घराना जयपुर के सेनिया घराने का ही एक हिस्सा है| असद अली खाँ का जन्म 1937 में अलवर (राजस्थान) रियासत में हुआ था, परन्तु उनकी संगीत-शिक्षा रामपुर में हुई| उनके पिता उस्ताद सादिक अली खाँ रामपुर दरबार में रूद्रवीणा के प्रतिष्ठित वादक थे| उनके प्रपितामह उस्ताद रज़ब अली खाँ जयपुर घराने के दरबारी वीणावादक थे तथा रूद्रवीणा के साथ-साथ सितार और दिलरुबावादन में भी दक्ष थे| असद अली खाँ के पितामह उस्ताद मुशर्रफ अली खाँ को भी जयपुर के दरबारी वीणावादक के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त थी| आज हम जिसे सं

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 47 "मेरे पास मेरा प्रेम है"

पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री लावण्या शाह से लम्बी बातचीत भाग १ भाग २ अब आगे... 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। पिछले दो सप्ताह से आप इसमें आनंद ले रहे हैं सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह से की गई हमारी बातचीत का। पहले भाग में पंडित जी के पारिवारिक पार्श्व और शुरुआती दिनों का हाल आपनें जाना। और दूसरी कड़ी में लावण्या जी नें बताया कि किस तरह से उनके पिता का बम्बई आना हुआ और फ़िल्म-जगत में किस तरह से उनका पदार्पण हुआ। आइए बातचीत आगे बढ़ाते हैं। प्रस्तुत है लघु शृंखला 'मेरे पास मेरा प्रेम है' की तीसरी कड़ी। सुजॉय - लावण्या जी, 'हिंद-युग्म आवाज़' पर आपका हम स्वागत करते हैं, नमस्कार! लावण्या जी - नमस्ते! सुजॉय - लावण्या जी, फ़िल्म जगत के किन किन कलाकारों के साथ आपके परिवार का पारिवारिक सम्बंध रहा है? इसमें एक नाम लता मंगेशकर जी का अवश्य है । लता जी के साथ आपके पारिवारिक संबम्ध के बारे में हम विस्तार से जानना चाहे