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अलबेला मौसम कहता है स्वागतम....ताकि आप रहें खुश और तंदरुस्त

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 657/2011/97 फ़ि ल्म संगीत में हँसी मज़ाक की बात हो, और किशोर कुमार का नाम ही न आये, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है इस सुरीली महफ़िल में। इन दिनों इसमें जारी है शृंखला 'गान और मुस्कान' और जैसा कि आपको पता है इसमें हम ऐसे गानें शामिल कर रहे हैं जिनमें गायक गायिका की हँसी सुनाई देती है। किशोर कुमार नें बेहिसाब मज़ाइया और हास्य रस के गीत गाये हैं। उनके गाये हास्य गीतों को सुनते हुए कई बार हम हँसते हँसते पेट पकड़ लेते हैं। लेकिन अगर आपसे यह पूछें कि उनकी हँसी किस गीत में सुनाई पड़ी है, तो शायद आपको कुछ समय लग जाये याद करने में। सबसे पहले जो गीत ज़हन में आता है वह है फ़िल्म 'पड़ोसन' का " एक चतुर नार ", जिसे हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर भी बजा चुके हैं। आज के अंक के लिए हमने किशोर दा का जो गीत चुना है, वह कोई हास्य गीत नहीं है, बल्कि यह एक फ़मिली सॉंग् है, एक पारिवारिक गीत। एक आदर्श छोटा परिवार, जिसमें है माँ-बाप और एक छोटा सा प्यारा सा बच्चा। कुछ इसी पार्श्व पर ८० के दशक का एक गीत है किशोर

आ बदल डाले रस्में सभी इसी बात पे.....कुछ तो बात है अमित त्रिवेदी के "आई एम्" में

Taaza Sur Taal (TST) - 12/2011 - I AM आज सोमवार की इस सुबह मुझे यानी सजीव सारथी को यहाँ देख कर हैरान न होईये, दरअसल कई कारणों से पिछले कुछ दिनों से हम ताज़ा सुर ताल नहीं पेश कर पाए और इस बीच बहुत सा संगीत ऐसा आ गया जिस पर चर्चा जरूरी थी, तो कुछ बैक लोग निकालने के इरादे से मैं आज यहाँ हूँ, आज हम बात करेंगें ओनिर की नयी फिल्म "आई ऍम" के संगीत की. दरअसल फिल्म संगीत में एक जबरदस्त बदलाव आया है. अब फिल्मों में अधिक वास्तविकता आ गयी है, तो संगीत का इस्तेमाल आम तौर पर पार्श्व संगीत के रूप में हो रहा है. यानी लिपसिंग अब लगभग खतम सी हो गयी है. और एक ट्रेंड चल पड़ा है रोक् शैली का. व्यक्तिगत तौर पर मुझे रोक् जेनर बेहद पसंद है पर अति सबकी बुरी है. खैर आई ऍम का संगीत भी यही उपरोक्त दोनों गुण मौजूद हैं. पहला गाना "बांगुर", बेहद सुन्दर विचार, समाज के बदलते आयामों का चित्रण है, एक तुलनात्मक अध्ययन है बोलों में इस गीत के और इस कारुण अवस्था से बाहर आने की दुआ भी है. आवाजें है मामे खान और कविता सेठ की. अमित त्रिवेदी के चिर परिचित अंदाज़ का है गीत जिसे सुनते हुए भीड़ भाड भरे शहर उलझनो

बोलिए सुरीली बोलियाँ...और पिरोते रहिये हँसी की लड़ियाँ हर पल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 656/2011/96 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज रविवार, यानी छुट्टी का दिन, आप सभी नें अपने अपने परिवार के साथ हँसी-ख़ुशी बिताया होगा। हँसी-ख़ुशी से याद आया कि इन दिनों इस स्तंभ में जारी है लघु शृंखला 'गान और मुस्कान', जिसमें हम कुछ ऐसे गीत सुनवा रहे हैं जिनमें गायक/गायिका की हँसी सुनाई देती है। आज आप सुनेंगे गायिका-अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित की हँसी। सिंगिंग् सुपरस्टार्स की श्रेणी में सुलक्षणा पंडित और सलमा आग़ा दो ऐसे नाम हैं जिनके बाद इस श्रेणी को पूर्णविराम सा लग गया है। ख़ैर, आज जिस गीत को लेकर हम उपस्थित हुए हैं वह है फ़िल्म 'गृहप्रवेश' का - "बोलिये सुरीली बोलियाँ"। भूपेन्द्र और सुलक्षणा पंडित की आवाज़ों में यह शास्त्रीय संगीत पर आधारित रचना है राग बिहाग पर आधारित, लेकिन इसमें हास्य का भी पुट है। अब जिस गीत के मुखड़े के ही बोल हैं "नमकीन आँखों की रसीली गोलियाँ", उसमें हास्य तो होगा ही न! और "नमकीन आँखों की रसीली गोलियाँ" कहने वाले गीतकार गुलज़ार साहब के अलावा भला और कौन हो सकता है! बासु भट्टाचार्य नि