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सुर संगम में आज - जल तरंग की मधुरता से तरंगित है आज रविवार की सुबह

सुर संगम - 13 - जल तरंग की उमंग जल तरंग असाधारण इसलिए है कि यह एक तालवाद्‍य भी है और घनवाद्‍य भी। मूलतः इसमें चीनी मिट्टी की बनी कटोरियों में पानी भर उन्हें अवरोही क्रम(descending order) अथवा पंक्ति अथवा किसी भी और सुविधाजनक समाकृति में सजाया जाता है। फिर इन कटोरियों में अलग-अलग परिमाण में जल भर कर इन्हें रागानुसार समस्वरित(tune) किया जाता है। जब इन कटोरियों पर बेंत अथवा लकड़ी के बने छड़ों से मार की जाती है तब इनकी कंपन से एक मधुर झनकार सी ध्वनि उत्पन्न होती है। न मस्कार! सुर-संगम की एक और संगीतमयी कड़ी में सभी श्रोता-पाठकों का हार्दिक अभिनंदन। कैसी रही आप सब की होली? आशा है सब ने खूब धूम मचाई होगी। मैनें भी हमारे 'ओल्ड इज़ गोल्ड" के साथी सुजॉय दा के साथ मिलकर जम के होली मनाई। ख़ैर अब होली के बादल छट गए हैं और अपने साथ बहा ले गए हैं शीत एवं बसंत के दिनों को, साथ ही दस्तक दे चुकी हैं गरमियाँ। ऐसे में हम सब का जल का सहारा लेना अपेक्षित ही है। तो हमनें भी सोचा कि क्यों न आप सबकी संगीत-पिपासा को शाँत करने के लिए आज की कड़ी भी ऐसे ही किसी वाद्‍य पर आधारित हो जिसका संबंध जल से है। आ

ई मेल के बहाने यादों के खजाने लेकर हम लौटे हैं इंदु जी के साथ जो है एक प्यारी माँ हम सब की

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, स्वागत है शनिवार के इस साप्ताहिक विशेषांक में। आज बारी 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' की। आज बहुत दिनों के बाद हमारी प्रिय इंदु जी का ईमेल इसमें शामिल हो रहा है। आप में से बहुत से पाठकों को शायद याद होगा कि इंदु जी के एक पहले के ईमेल में उन्होंने एक बच्चे के बारे में बताया था। हम आप से यही गुज़ारिश करेंगे कि अगर आप ने उस समय उस ईमेल को नहीं पढ़ा था तो पहले यहाँ क्लिक कर उसे पढ़ के दुबारा यहीं पे वापस आइए। तो आज के ईमेल में भी इंदु जी ने उसी बच्चे के बारे में कुछ और बातें हमें बता रही हैं। जिस तरह से पिछले ईमेल ने हमारी आँखों को नम कर दिया था, आज के ईमेल को पढ़ कर भी शायद आलम कुछ वैसा ही होगा। आइए इंदु जी का ईमेल पढ़ा जाये! ************************************** प्रिय सजीव और सुजॊय, प्यार! तुमने (आपने नही लिखूंगी सोरी न) कहा मैं अपनी पसंद का गाना बताऊँ तुम सुनोगे, सुनाओगे। हंसी तो नही उडाओगे न कि ये हरदम ........?????? मैंने एक बार बताया था न एक बच्चे के बारे में? नन्नू बुलाती थी मैं उसे; नन्हू से नन्नू बन गया था वो हम सबका। अपने से दूर क

सुनो कहानी: मनोहर कहानी - मुंशी नवल किशोर

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में असग़र वजाहत की लघुकथा " हँसी " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं मुंशी नवल किशोर द्वारा सन् 1882 में प्रकाशित कथा संग्रह मनोहर कहानी में से " एक शिक्षाप्रद कहानी ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। इस शिक्षाप्रद कहानी का कुल प्रसारण समय 1 मिनट 27 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। असग़र वजाहत के सौजन्य से इस कथा का टेक्स्ट बीबीसी पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मुंशी नवल किशोर (1836-1895) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी ,‘‘महाराज ! मैं तो अपने ठाकुर को रिझाता हूँ और कोई रीझा तो क्या, न रीझा तो क्या?’’ ( मनोहर कहानी की "शिक्षाप्रद कहानी" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बा