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साथी रे...तुझ बिन जिया उदास रे....मानो या न मानो व्यावसायिक दृष्टि से ये होर्रर फ़िल्में दर्शकों को लुभाने में सदा कामियाब रहीं हैं

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 578/2010/278 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहनेवालों का इस सुरीली महफ़िल में बहुत बहुत स्वागत है। यह निस्संदेह सुरीली महफ़िल है, लेकिन कुछ दिनों से इस महफ़िल में एक और रंग भी छाया हुआ है, सस्पेन्स का रंग, रहस्य का रंग। 'मानो या ना मानो' लघु शृंखला में अब तक हमने अलग अलग जगहों के प्रचलित भूत-प्रेत, आत्मा, और पुनर्जनम के किस्सों के बारे में जाना, और पिछली कड़ी में हमने वैज्ञानिक दृष्टि से इन सब चीज़ों की व्याख्यान पर भी नज़र डाला। आज इस शृंखला की आठवीं कड़ी में मैं, आपका दोस्त सुजॊय, दो ऐसे किस्से आपको सुनवाना चाहूँगा जो मैंने मेरे दो बहुत ही करीब के लोगों से सुना है। इन दो व्यक्तियों मे एक है मेरे स्वर्गीय नानाजी, और दूसरा है मेरा इंजिनीयरिंग कॊलेज का एक बहुत ही क्लोज़ फ़्रेण्ड। पहले बताता हूँ अपने नाना जी की अपनी एक निजी भौतिक अभिज्ञता। उस रात बिजली गई हुई थी। मेरी नानी कहीं गई हुईं थी, इसलिए ऒफ़िस से लौट कर मेरे नाना जी ने लालटेन जलाया और मुंह हाथ धोने बाथरूम चले गये। वापस लौट कर जैसे ही ड्रॊविंग् रूम में प्रवेश किया तो देखा कि कुर्सी पर कोई बैठा ह

संगीत समीक्षा - ये साली जिंदगी : मशहूर सितार वादक निशात खान साहब के सुरों से मिली स्वानंद की दार्शनिकता तो उठे कई सवाल जिंदगी के नाम

Taaza Sur Taal (TST) - 03/2011 - YE SAALI ZINDAGI जिंदगी को कभी किसी ने नाम दिया पहेली का तो कभी इसे एक खूबसूरत सपना कहा गया. समय बदला और नयी सदी के सामने जब जिंदगी के पेचो-ख़म खुले तो इस पीढ़ी ने जिंदगी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया और सवाल किया “तुझसे करूँ वफ़ा या खुद से करूँ....”. मगर शायद चुप ही रही होगी ये "साली" जिंदगी या फिर संभव है कि नयी सदी की जिंदगी भी अब तेवर बदल नए जवाब ढूंढ चुकी हो...पर ये तो तय है कि इस नए संबोधन से जिंदगी कुछ सकपका तो जरूर गयी होगी....बहरहाल हम बात कर रहे हैं निशात खान और स्वानंद किरकिरे के संगम से बने नए अल्बम “ये साली जिंदगी” के बारे में. अल्बम का ये पहला गीत सुनिधि और कुणाल की युगल आवाजों में है. ये फ़िल्मी गीत कम और एक सोफ्ट रौक् नंबर ज्यादा लगता है जहाँ गायकों ने फ़िल्मी परिधियों से हटकर खुल कर अपनी आवाजों का इस्तेमाल किया है. सुनिधि की एकल आवाज़ में भी है एक संस्करण जो अधिक सशक्त है. स्वानंद के बोंल शानदार हैं. “सारा रारा...” सुनने में एक मस्ती भरा गीत लगता है, पर इसमें भी वही सब है -जिंदगी से शिकवे गिले और कुछ छेड छाड भी, स्वानंद के शब्द

नैना बरसे रिमझिम रिमझिम.....मदन मोहन साहब का रूहानी संगीत और लता की दिव्य आवाज़ ...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 577/2010/277 हा लाँकि हमने या आपने कभी भूत नहीं देखा है न महसूस किया है, लेकिन आये दिन अख़बारों में या किसी और सूत्र से सुनाई दे जाती है लोगों के भूत देखने की कहानियाँ। भूत-प्रेत की कहानियाँ सैंकड़ों सालों से चली आ रही है, लेकिन विज्ञान अभी तक इसके अस्तित्व की व्याख्या नहीं कर सका है। कई लोग अपने कैमरों में कुछ ऐसी तस्वीरें क़ैद कर ले आते हैं जिनमें कुछ अजीब बात होती है। वो लाख कोशिश करे उन तस्वीरों को भूत-प्रेत के साथ जोडने की, लेकिन हर बार यह साबित हुआ है कि उन तस्वीरों के साथ छेड़-छाड़ हुई है। अभिषेक अगरवाल एक ऐसे शोधकर्ता हैं जिन्होंने भूत-प्रेत के अस्तित्व संबंधी विषयों पर ना केवल शोध किया है, बल्कि एक पुस्तक भी प्रकाशित की है 'Astral Projection Underground' के शीर्षक से। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस अजीब-ओ-ग़रीब लघु शृंखला में जिसका नाम है 'मानो या ना मानो'। आज के अंक में हम अभिषेक अगरवाल के उसी शोध में से छाँट कर कुछ बातें आपके सम्मुख रखना चाहते हैं। अभिषेक के अनुसार अगर हम 'Law of Thermodynam