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ई मेल के बहाने यादों के खजाने (१७)...वादियों में मिले जब दो चाहने वाले तो इस गीत ने दी उनके प्रेम को परवाज़

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस शनिवार विशेषांक में। इसमें हम आपके लिए लेकर आते हैं 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने', जिसमें आप ही में से किसी ना किसी दोस्त के यादों को पूरी दुनिया के साथ बांटा करते हैं जिन्हें आपने हमसे शेयर किए हैं एक ईमेल के माध्यम से। आज भी एक बड़ा ही दिल को छू लेनेवाला ईमेल हम शामिल कर रहे हैं। हाँ, इस ईमेल को पेश करने से पहले आपको बता दें कि जिस शख़्स ने हमें यह ईमेल भेजा है, इन्होंने ना तो अपना नाम लिखा है और ना ही हमारे oig@hindyugm.com के पते पर इसे भेजा है, बल्कि एक गुमनाम आइ.डी से सीधे मेरे व्यक्तिगत ईमेल आइ.डी पर भेज दिया है। कोई बात नहीं, आपके जज़्बात हम तक पहुँच गए, यही बहुत है हमारे लिए। तो ये रहा आपका ईमेल... *************************************************** प्रिय सुजॊय जी, मैं अपना यह ईमेल आप के ईमेल पते पर भेज रहा हूँ, ताकि आप पहले यह जाँच लें कि यह पोस्ट करने लायक है भी या नहीं। अगर सही लगे तो शामिल कर लीजिएगा। मैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का 'ईमेल के बहाने...' बहुत ध्यान से पढ़ता हूँ और सब के

अनुराग शर्मा की कहानी "बांधों को तोड़ दो"

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की मार्मिक कहानी " गञ्जा " का पॉडकास्ट उन्हीं की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक सामयिक कहानी " बांधों को तोड़ दो ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने।कहानी "बांधों को तोड़ दो" का कुल प्रसारण समय 4 मिनट 25 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पतझड़ में पत्ते गिरैं, मन आकुल हो जाय। गिरा हुआ पत्ता कभी, फ़िर वापस ना आय।। ~ अनुराग शर्मा हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "बांध के लिए कानपुर, कलकत्ता, दिल्ली को क्यों नहीं डुबाते हैं ये लोग? हमें ही क्यों जाना पडेगा घर छोड़कर?" ( अनुराग शर्मा की "ब

Go Green- दुनिया और पर्यावरण बचाने की अपील- आवाज़ का एक अंतरराष्ट्रीय गीत

हिन्द-युग्म ने इंटरनेट की दुनिया में शुक्रवार की एक नई परम्परा विकसित की है, जिसके अंतर्गत शुक्रवार के दिन इंटरनेटीय जुगलबंदी से रचे गये संगीतबद्ध गीत का विश्वव्यापी प्रदर्शन होता है। हिन्द-युग्म ने संगीत की इस नई और अनूठी परम्परा को देश से निकालकर विदेश में भी स्थापित किया है। वर्ष 2009 में आवाज़ ने भारत में स्थित रूसी दूतावास के लिए भारत-रूस मित्रता के लिए एक गीत 'द्रुज्बा' बनाया था। वह हमारा पहला प्रोजेक्ट था जिसमें हमने एक से अधिक देश की संवेदनाओं को सुरबद्ध किया था। आज हम एक ऐसा गीत लेकर आये हैं, जिसमें अंतर्निहित संवेदनाएँ, चिंताएँ और सम्भावनाएँ वैश्विक हैं। पूरी दुनिया हरियाली के भविष्य को लेकर चिंतित है। यह चिंता पर्यावरणवादियों को खाये जा रही है कि बहुत जल्द पुरी दुनिया फेफड़े भर हवा के लिए मरेगी-कटेगी। हम सब की यह जिम्मेदारी है कि अपनी आने वाली पीढ़ियों को हम कम से कम एक ऐसी दुनिया दे जिसमें हवा-पानी की लड़ाई न हो। शायद इसीलए जो थोड़ा भी संजीदा है, वे 'गो ग्रीन' के साथ है। हमने इस बार फ्यूजन के माध्यम से इसी संदेश को ताज़ा किया है। शास्त्रीय संगीत और पश्विमी