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ई मेल के बहाने यादों के खजाने (४), जब शरद तैलंग मिले रीटा गांगुली से

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के साप्ताहिक अंक 'ईमेल के बहाने, यादों के ख़ज़ाने' में आप सभी का स्वागत है। हर हफ़्ते आप में से किसी ना किसी साथी की सुनहरी यादों से समृद्ध कर रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस ख़ास ख़ज़ाने को। हमें बहुत से दोस्तों से ईमेल मिल रहे हैं और एक एक कर हम सभी को शामिल करते चले जा रहे हैं। जिनके ईमेल अभी तक शामिल नहीं हो पाए हैं, वो उदास ना हों, हम हर एक ईमेल को शामिल करेंगे, बस थोड़ा सा इंतेज़ार करें। और जिन दोस्तों ने अभी तक हमें ईमेल नहीं किया है, उनसे गुज़ारिश है कि अपने पसंद के गानें और उन गानों से जुड़ी हुई यादों को हिंदी या अंग्रेज़ी में हमारे ईमेल पते oig@hindyugm.com पर भेजें। अगर आप शायर या कवि हैं, तो अपनी स्वरचित कविताएँ और ग़ज़लें भी हमें भेज सकते हैं। किसी जगह पर घूमने गए हों कभी और कोई अविस्मरणीय अनुभव हुआ हो, वो भी हमें लिख सकते हैं। इस स्तंभ का दायरा विशाल है और आप को खुली छूट है कि आप किसी भी विषय पर अपना ईमेल हमें लिख सकते हैं। बहरहाल, आइए अब आज के ईमेल की तरफ़ बढ़ा जाए। शरद तैलंग का नाम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए कोई नया नाम नहीं

कृश्न चन्दर - एक गधे की वापसी - अंतिम भाग (3/3)

सुनो कहानी: एक गधे की वापसी- कृश्न चन्दर - अंतिम भाग (3/3) 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने प्रीति सागर की आवाज़ में सुधा अरोड़ा की एक कथा अन्नपूर्णा मंडल की आखिरी चिट्ठी का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं कृश्न चन्दर की कहानी "एक गधे की वापसी" का अंतिम भाग, जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 7 मिनट 39 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। एक गधे की वापसी के पिछले अंश पढने के लिये कृपया नीचे दिए लिंक्स पर क्लिक करें एक गधे की वापसी - प्रथम भाग एक गधे की वापसी - द्वितीय भाग यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। यह तो कोमलांगियों की मजबूरी है कि वे सदा सुन्दर गधों पर मुग्ध होती हैं ~ पद्म भूषण कृश्न चन्दर (1914-1977) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी मैं महज़ एक गधा आवारा हूँ।

जब हुस्न-ए-इलाही बेपर्दा हुआ वी डी, ऋषि और नए गायक श्रीराम के रूबरू

Season 3 of new Music, Song # 17 सूफी गीतों का चलन इन दिनों इंडस्ट्री में काफी बढ़ गया है. लगभग हर फिल्म में एक सूफियाना गीत अवश्य होता है. ऐसे में हमारे संगीतकर्मी भी भला कैसे पीछे रह सकते हैं. सूफी संगीत की रूहानियत एक अलग ही किस्म का आनंद लेकर आती है श्रोताओं के लिए, खास तौर पे जब बात हुस्न-ए-इलाही की तो कहने ही क्या. जिगर मुरादाबादी के कलाम को विस्तार दिया है विश्व दीपक तन्हा ने. दोस्तों गुलज़ार साहब इंडस्ट्री में इस फन के माहिर समझे जाते हैं. ग़ालिब, मीर आदि उस्ताद शायरों के शेरों को मुखड़े की तरह इस्तेमाल कर आगे एक मुक्कमल गीत में ढाल देने का काम बेहद खूबसूरती से अंजाम देते रहे हैं वो. हम ये दावे के साथ कह सकते हैं इस बार हमारे गीतकार उनसे इक्कीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं हैं यहाँ. ऋषि ने पारंपरिक वाद्यों का इस्तेमाल कर सुर रचे हैं तो गर्व के साथ हम लाये हैं एक नए गायक श्रीराम को आपके सामने जो दक्षिण भारतीय होते हुए भी उर्दू के शब्दों को बेहद उ्म्दा अंदाज़ में निभाने का मुश्किल काम कर गए हैं इस गीत में. साथ में हैं श्रीविद्या, जो इससे पहले " आवारगी का रक्स " गा चुकी हैं हम