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बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की.. नारी-मन में मचलते दर्द को दिल से उभारा है परवीन और मेहदी हसन ने

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #९२ "ना री-मन की व्यथा को अपनी मर्मस्पर्शी शैली के माध्यम से अभिव्यक्त करने वाली पाकिस्तानी शायरा परवीन शाकिर उर्दू-काव्य की अमूल्य निधि हैं।" - यह कहना है सुरेश कुमार का, जिन्होंने "परवीन शाकिर" पर "खुली आँखों में सपना" नाम की पुस्तक लिखी है। सुरेश कुमार आगे लिखते हैं: बीसवीं सदी के आठवें दशक में प्रकाशित परवीन शाकिर के मजमुआ-ए-कलाम ‘खुशबू’ की खुशबू पाकिस्तान की सरहदों को पार करती हुई, न सिर्फ़ भारत पहुँची, बल्कि दुनिया भर के उर्दू-हिन्दी काव्य-प्रेमियों के मन-मस्तिष्क को सुगंधित कर गयी। सरस्वती की इस बेटी को भारतीय काव्य-प्रेमियों ने सर-आँखों पर बिठाया। उसकी शायरी में भारतीय परिवेश और संस्कृति की खुशबू को महसूस किया: ये हवा कैसे उड़ा ले गयी आँचल मेरा यूँ सताने की तो आदत मेरे घनश्याम की थी परवीन शाकिर की शायरी, खुशबू के सफ़र की शायरी है। प्रेम की उत्कट चाह में भटकती हुई, वह तमाम नाकामियों से गुज़रती है, फिर भी जीवन के प्रति उसकी आस्था समाप्त नहीं होती। जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए, वह अपने धैर्य का परीक्षण भी करती है। कमाल-ए-ज

बरसे फुहार....गुलज़ार साहब के ट्रेड मार्क शब्द और खय्याम साहब का सुहाना संगीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 437/2010/137 'रि मझिम के तराने' शृंखला की आज है आठवीं कड़ी। दोस्तों, हमने इस बात का ज़िक्र तो नहीं किया था, लेकिन हो सकता है कि शायद आप ने ध्यान दिया हो, कि इस शृंखला में हम बारिश के १० गीत सुनवा रहे हैं जिन्हे १० अलग अलग संगीतकारों ने स्वरबद्ध किए हैं। अब तक हमने जिन संगीतकारों को शामिल किया, वो हैं कमल दासगुप्ता, वसंत देसाई, शंकर जयकिशन, हेमन्त कुमार, सचिन देव बर्मन, रवीन्द्र जैन, और राहुल देव बर्मन। आज जिस संगीतकार की बारी है, वह एक बेहद सुरीले और गुणी संगीतकार हैं, जिनकी धुनें हमें एक अजीब सी शांति और सुकून प्रदान करती हैं। एक सुकून दायक ठहराव है जिनके संगीत में। उनके गीतों में ना अनर्थक साज़ों की भीड़ है, और ना ही बोलों में कोई सस्तापन। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं ख़य्याम साहब की। आज की कड़ी में सुनिए आशा भोसले की आवाज़ में सन्‍ १९८० की फ़िल्म 'थोड़ी सी बेवफ़ाई' का रिमझिम बरसता गीत "बरसे फुहार, कांच की जैसी बूंदें बरसे जैसे, बरसे फुहार"। गुलज़ार साहब का लिखा हुआ गीत है। इस फ़िल्म के दूसरे गानें भी काफ़ी मशहूर हुए थे, मसलन लता-किशोर

पाँव की बेड़ियों से आज़ादी लेकर संगीत के नाव के सहारे एक लंबी "उड़ान" भरी है अमित और अमिताभ ने

ताज़ा सुर ताल २६/२०१० सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' मे सभी श्रोताओं व पाठकों को मेरा नमस्कार, और विश्व दीपक जी आपको भी। विश्व दीपक - सभी को मेरा भी नमस्कार, और सुजॊय जी आपको भी। सुजॊय - फ़िल्मी गीत फ़िल्म की कहानी, किरदार, और सिचुएशन के मुताबिक ही बनाने पड़ते हैं। यानी कि फ़िल्मी गीतों के कलाकारों को एक दायरे में बंधकर ही अपने कला के जोहर दिखाने पड़ते हैं। और अगर फ़िल्म की कहानी ऐसी हो कि जो फ़ॊरमुला फ़िल्मों की कहानी से बिल्कुल हट के हो, अगर उसमें हीरो-हीरोइन वा्ला कॊनसेप्ट ही ना हो, और फ़िल्म के निर्देशक और संगीतकार प्रयोगधर्मी हों, तब ऐसे फ़िल्म के संगीत से हम कुछ ग़ैर पारम्परिक उम्मीदें ही कर सकते हैं। है ना विश्व दीपक जी? विश्व दीपक - सही कहा, और आज हम ऐसी ही एक लीक से बाहर की फ़िल्म 'उड़ान' के गीतों को लेकर उपस्थित हुए हैं। यह फ़िल्म अनुराग कश्यप की है, जिसे निर्देशित किया है विक्रमादित्य मोटवाणी ने। ये वही विक्रमादित्य हैं जिन्होंने "देव-डी" की कहानी लिखी थी। अनुराग की पिछली फ़िल्मों की तरफ़ अगर एक नज़र दौड़ा ली जाए तो 'देव-डी', 'ब्लैक फ़्राइडे&#