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तू ही तो है....एक आशिक के अल्फ़ाज़ उसकी महबूबा के नाम

Season 3 of new Music, Song # 08 आज आवाज़ महोत्सव 2010 के आठवें गीत की बारी है। हम इन दिनों अपने श्रोताओं को प्रत्येक शुक्रवार एक ताज़ा गीत सुनवा रहे हैं। इस बार हम लाये हैं युवा गीतकार और संगीतकार जोड़ी प्रदीप-सागर द्वारा बना एक गीत। आवाज़ के श्रोता इस जोड़ी से पहले से परिचित हैं, जब इन्होंने ए आर रहमान को औस्कर मिलनी की बधाइयाँ एक गीत रचकर दी थी। इस बार के गीत में खास बात यह है कि इसे गाया भी खुद संगीतकार सागर पाटिल ने ही है। यह गीत भी पूरी तरह से इंटरनेटीय जुगलबंदी से बना है। गीत के बोल - एक अधूरी सी ख्वाहिश हो तुम , नई आज़ादी भी … कुछ सुनी कहानी हो तुम , नई पुरवाई सी … मै हर पल खुश हूँ बहुत , तू नसीब मेरे दिल के है … मै रहूँ जब भी जहाँ , तू करीब मेरी धुन के है … बस खुश है ये लम्हा तू जो है , तू ही तो है … अब न रहूँ मै तन्हा तू जो है , तू ही तो है … हर पल तेरा साथ है पाया , ग़म की सूनी राहों मे … ये दिल मंज़र भूल न पाया, तेरी मीठी बातों मे … तू हसीं है मेह्ज़बिं है, मीत है तू मेरे ख्वाबों सी साथ रहे तू संग चले तू दिल ने ये बस चाहा. बस खुश है ये लम्हा तू जो है , तू ही तो है … अब न

फिल्मों गीतों की दास्ताँ गीता के जिक्र बिना कैसे पूरी हो...

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ३० 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में आज वह गीत जिस गीत के बनने के बाद से गीता दत्त ओ.पी. नय्यर साहब को बाबूजी कह कर बुलाया करती थीं। आप समझ चुके होंगे, जी हाँ, "बाबूजी धीरे चलना, प्यार में ज़रा संभलना"। उन दिनों गीता दत्त के गाए इस तरह के नशीले अंदाज़ वाले गीतों को काफ़ी बोल्ड समझा जाता था। कई बार तो सेन्सर बोर्ड की भी आपत्ति का सामना करना पड़ा है, जैसे कि एक बार हुआ था "जाता कहाँ है दीवाने, सब कुछ यहाँ है सनम" गीत को लेकर। आज के दौर में यह वाक़ई अजीब सा लगता है सोच कर! तो साहब मजरूह सुल्तानपुरी, ओ. पी. नय्यर, और गीता दत्त, ५० के दशक के मध्य भाग में इस तिकड़ी ने फ़िल्म संगीत जगत में जैसे हंगामा ही खड़ा कर दिया था। अपने शुरुआती दिनों में गीता दत्त को केवल भक्ति रचनाएँ ही गाने को मिलते थे। उनकी आवाज़ में भक्ति गीत बेहद सुदर जान पड़ते। ऐसा लगने लगा था कि गीता जी की प्रतिभा को भक्ति रस के खाँचे में ही क़ैद कर दिया जाएगा। लेकिन संगीतकार ओ. पी. नय्यर ने पहली बार अपनी पहली ही फ़िल्म 'आसमान' में गीता जी से गानें गवाए और यहा~म से शुरु हु

भारतीय और पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत, दोनों में ही माहिर थे सलिल दा

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २९ 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में आज प्रस्तुत है गीतकार योगेश का लिखा, सलिल चौधरी का संगीतबद्ध किया हुआ फ़िल्म 'छोटी सी बात' का शीर्षक गीत। इस गीत को आप '१० गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला में सुन चुके हैं। गीतकार योगेश द्वारा प्रस्तुत 'जयमाला' कार्यक्रम का एक अंश यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं - "मेरे पिताजी की मृत्यु के बाद मुझे लखनऊ छोड़ना पड़ा। हमारे एक आत्मीय संबंधी बम्बई में फ़िल्म लाइन में थे, सोचा कि कहीं ना कहीं लगा देंगे, पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। बल्कि मेरा एक दोस्त जो मेरे साथ क्लास-५ से साथ में है, वह मेरे साथ बम्बई आ गया। उसी ने मुझसे कहा कि तुम्हे फ़िल्म-लाइन में ही जाना है। यहाँ आकर पहले ३ सालों तक तो भटकते रहे। ३ सालों तक कई संगीतकारों से 'कल आइए परसों आइए' ही सुनता रहा। ऐसे करते करते एक दिन रोबिन बनर्जी ने मुझे बुलाया और कहा कि एक लो बजट फ़िल्म है, जिसके लिए मैं गानें बना रहा हूँ। एक साल तक हम गानें बनाते रहे और गानें स्टॊक होते गए। तो जब 'सखी रॊबिन' फ़िल्म के लिए निर्माता ने गानें मँगवाए, एक ही दिन