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गुनगुनाते लम्हे में अमृता-इमरोज़ के प्यार की दास्तां

अभी कुछ दिन पहले आपने मशहूर चित्रकार इमरोज़ का विशेष इंटरव्यू पढ़ा जिसे आप सबके लिए लाया था रश्मि प्रभा ने। इस बार के 'गुनगुनाते लम्हे' में भी रश्मि प्रभा गीतों के माध्यम से अमृता-इमरोज़ की अमर प्रेम-कहानी लेकर आई हैं। बिना किसी विशेष भूमिका के हम आपको सुनवा रहे हैं 'प्यार की दास्ताँ' - 'गुनगुनाते लम्हे' टीम आवाज़/एंकरिंग/कहानी तकनीक रश्मि प्रभा खुश्बू आप भी चाहें तो भेज सकते हैं कहानी लिखकर गीतों के साथ, जिसे देंगी रश्मि प्रभा अपनी आवाज़! जिस कहानी पर मिलेगी शाबाशी (टिप्पणी) सबसे ज्यादा उनको मिलेगा पुरस्कार हर माह के अंत में 500 / नगद राशि। हाँ यदि आप चाहें खुद अपनी आवाज़ में कहानी सुनाना, तो भी आपका स्वागत है.... 1) कहानी मौलिक हो। 2) कहानी के साथ अपना फोटो भी ईमेल करें। 3) कहानी के शब्द और गीत जोड़कर समय 35-40 मिनट से अधिक न हो, गीतों की संख्या 7 से अधिक न हो।। 4) आप गीतों की सूची और साथ में उनका mp3 भी भेजें। 5) ऊपर्युक्त सामग्री podcast.hindyugm@gmail.com पर ईमेल करें।

आज मधुबातास डोले...भरत व्यास रचित इस गीत के क्या कहने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 367/2010/67 गी त रंगीले' शृंखला की सातवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। दोस्तों, इन दिनों हर बातें कर रहे हैं बसंत ऋतु की, फागुन के महीने की, रंगों की, फूलों की, महकती हवाओं की, पीले सरसों के खेतों की। इसी मूड को बरक़रार रखते हुए आज हमने एक ऐसा सुरीला नग़मा चुना है जिसके बोल जितने उत्कृष्ट हैं, उसका संगीत भी उतना ही सुमधुर है। लता मंगेशकर और महेन्द्र कपूर की आवाज़ों में यह है फ़िल्म 'स्त्री' का युगल गीत "आज मधुबातास डोले"। जब शुद्ध हिंदी में लिखे गीतों की बात चलती है, तो ऐसे गीतकारों में भरत व्यास का नाम शुरुआती नामों में ही शामिल किया जाता है। शुरु शुरु में फ़िल्मी गीतों में उर्दू का ज़्यादा चलन था। ऐसे में भरत ब्यास ने अपनी अलग पहचान बनाई और हिंदी का दामन थामा। कविता के ढंग में कुछ ऐसे गीत लिखे कि सुननेवाले मोहित हुए बिना नहीं रह पाए। आज का यह गीत भी एक ऐसा ही उत्कृष्टतम गीतों में से एक है। संगीत की बात करें तो सी. रामचन्द्र ने इस फ़िल्म में संगीत दिया था और शास्त्रीय संगीत की ऐसी छटा उन्होने इस फ़िल्म के गीतों में बिखेरी कि जैसे बसंत ऋत

एम एम क्रीम लौटे हैं एक बार फिर अपने अलग अंदाज़ के संगीत के साथ "लाहौर" में

ताज़ा सुर ताल १०/२०१० सजीव - सभी को वेरी गुड मॊरनिंग् और 'ताज़ा सुर ताल' के एक और अंक में हम सभी का स्वागत करते हैं। सुजॊय, पिछले दो हफ़्तों में हमने ग़ैर फ़िल्म संगीत का रुख़ किया था, आज हम वापस आ रहे हैं एक आनेवाली फ़िल्म के गीतों और उनसे जुड़ी कुछ बातों को लेकर। सुजॊय - सजीव, इससे पहले कि आप आज की फ़िल्म का नाम बताएँ, जैसे कि इस साल के दो महीने गुज़र चुके हैं, तो 'माइ नेम इज़ ख़ान' के अलावा किसी भी फ़िल्म ने बॊक्स ऒफ़िस पर कोई जादू नहीं चला पायी है। आलम ऐसा है कि जनवरी के महीने में रिलीज़ होने बाद 'चांस पे डांस' सिनेमाघरों से उतरकर इतनी जल्दी ही टीवी के पर्दे पर आ रही है। देखना है कि 'अतिथि तुम कब जाओगे' और 'रोड मूवी' क्या कमाल दिखाती है इस हफ़्ते! वैसे इन फ़िल्मों के संगीत में ज़्यादा कुछ नया नहीं है, शायद इसीलिए 'टी. एस. टी' में इन्हे जगह न मिली हो! सजीव - बिल्कुल! तो चलो अब बात करें आज की फ़िल्म 'लाहौर' की। यह एक ऐसी फ़िल्म है जो हमारे यहाँ तो अगले हफ़्ते रिलीज़ होगी, लेकिन पिछले साल इस फ़िल्म को इटली के 'सालेण्टो इंटर

छम छम नाचत आई बहार....एक ऐसा मधुर गीत जिसे सुनकर कोई भी झूम उठे

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 366/2010/66 "ए क बार फिर बसंत जवान हो गया, जग सारा वृंदावन धाम हो गया, आम बौराई रहा, सरसों भी फूल रहा, खेत खलिहान शृंगार हो गया, पिया के हाथ दुल्हन शृंगार कर रही, आज धूप धरती से प्यार कर रही, बल, सुंदरता के आगे बेकार हो गया, सृष्टि पे यौवन का वार हो गया, रात भी बसंती, प्रभात भी बसंती, बसंती पिया का दीदार हो गया, सोचा था फिर कभी प्यार ना करूँगा, पर 'अंजाना' बसंत पे निसार हो गया, एक बार फिर बसंत जवान हो गया।" अंजाना प्रेम ने अपनी इस कविता में बसंत की सुंदरता को शृंगार रस के साथ मिलाकर का बड़ा ही ख़ूबसूरत नज़ारा प्रस्तुत किया है। दोस्तों, इन दिनों आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन रहे हैं इस रंगीले मौसम को और भी ज़्यादा रंगीन बनानेवाले कुछ रंगीले गीत इस 'गीत रंगीले' शृंखला के अंतर्गत। आज प्रस्तुत है राग बहार पर आधारित लता मंगेशकर की आवाज़ में फ़िल्म 'छाया' का गीत "छम छम नाचत आई बहार"। राजेन्द्र कृष्ण के लिखे इस गीत की तर्ज़ बनाई है सलिल चौधरी ने। १९६१ की यह फ़िल्म ऋषिकेश मुखर्जी की फ़िल्म थी जिसमें मुख्य कलाकार थे सुनिल

ज़िन्दगी सपने जैसा सच भी है, पर तेरे साथ....एक चित्रकार, एक कवि और इन सबसे भी बढ़कर मोहब्बत की जीती जागती मिसाल है इमरोज़ - एक खास मुलाकात

दोस्तों, कभी कभी कुछ विशेष व्यक्तियों से मिलना, बात करना जीवन भर याद रह जाने वाला एक अनुभव बन रह जाता है, अपना एक ऐसा ही अनुभव आज हम सब के साथ बांटने जा रही हैं, रश्मि प्रभा जी, तो बिना कुछ अधिक कहे हम रश्मि जी और उनके खास मेहमान को सौंपते हैं आपकी आँखों को, हमें यकीन है कि ये गुफ्तगू आपके लिए भी उतनी यादगार होने वाली है जितनी रेशमी जी के लिए थी... आज मैं रश्मि प्रभा आपकी मुलाकात प्यार के जाने-माने स्तम्भ इमरोज़ से करवाने जा रही हूँ... प्यार कभी दर्द, कभी ख़ुशी, कभी दूर, कभी पास के एहसास से गुजरता है. हर प्यार करनेवालों का यही रहा अफसाना. पर इन अफसानों से अलग एक प्यार- जहाँ कोई गम, कोई दूरी नहीं हुई, कोई इर्ष्या नहीं उठी, बस एक विश्वास की लौ रोशन रही ...विश्वास - जिसका नाम है इमरोज़ ! अमृता के इमरोज़ या इमरोज़ की अमृता - जैसे भी कह लें, एक ही अर्थ है. तो मिलाती हूँ आप सबों को इमरोज़ से. “नमस्कार इमरोज़ जी,..........शुरू करें हम अपनी बातें ख़ास?..........शुरू करती हूँ बातें उम्र के उस मोड़ से जहाँ आप एक युवक थे...वहाँ चढ़ते सूरज सी महत्वाकांक्षाएं होंगी...” कूची और कैनवास से आपकी मुला

केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले...दो दिग्गजों की अनूठी जुगलबंदी से बना एक अनमोल गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 365/2010/65 भा रतीय शास्त्रीय संगीत के राग ना केवल दिन के अलग अलग प्रहरों से जुड़े हुए हैं, बल्कि कुछ रागों का ऋतुओं, मौसमों से भी निकट का वास्ता है। ऐसा ही एक राग है बहार। और फिर राग बहार से बना है राग बसन्त बहार भी। जब बसंत, फागुन और होली गीतों की यह शृंखला चल रही है, ऐसे में अगर इस राग का उल्लेख ना करें तो शायद रंगीले गीतों की यह शृंखला अधूरी ही रह जाएगी। इसलिए आज जो गीत हमने चुना है वह आधारित है राग बसन्त बहार पर, और फ़िल्म का नाम भी वही है, यानी कि 'बसन्त बहार'। शैलेन्द्र और शंकर जयकिशन की जोड़ी, और इस गीत को दो ऐसे गायकों ने गाए हैं जिनमें से एक तो शास्त्रीय संगीत के आकाश का एक चमकता सितारा हैं, और दूसरे वो जो हैं तो फ़िल्मी पार्श्व गायक, लेकिन शास्त्रीय संगीत में भी उतने ही पारदर्शी जितने कि कोई अन्य शास्त्रीय गायक। ये दो सुर गंधर्व हैं पंडित भीमसेन जोशी और हमारे मन्ना डे साहब। 'गीत रंगीले' में आज इन दो सुर साधकों की जुगलबंदी पेश है, "केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले"। ऋतुराज बसन्त को समर्पित इससे उत्कृष्ट फ़िल्मी गीत शायद ही किसी

सुनो कहानी: चारा काटने की मशीन - उपेन्द्रनाथ अश्क

उपेन्द्रनाथ अश्क की "चारा काटने की मशीन" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में इब्ने इंशा की कहानी " हमारा मुल्क " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं उर्दू और हिंदी प्रसिद्ध के साहित्यकार उपेन्द्रनाथ अश्क की एक सधी हुई कहानी " चारा काटने की मशीन ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 10 मिनट 39 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। उर्दू के सफल लेखक उपेन्द्रनाथ 'अश्क' ने मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। १९३३ में प्रकाशित उनके दुसरे कहानी संग्रह 'औरत की फितरत' की भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने ही लिखी थी। अश्क जी को १९७२ में 'सोवियत लैन्ड नेहरू पुरस्कार' से