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जाणा जोगी दे नाल मैं... कैलाश खेर के गैर फ़िल्मी संगीत का सफरनामा कैलाश "यात्रा" में

ताजा सुर ताल TST (37) दोस्तो, ताजा सुर ताल यानी TST पर आपके लिए है एक ख़ास मौका और एक नयी चुनौती भी. TST के हर एपिसोड में आपके लिए होंगें तीन नए गीत. और हर गीत के बाद हम आपको देंगें एक ट्रिविया यानी हर एपिसोड में होंगें ३ ट्रिविया, हर ट्रिविया के सही जवाब देने वाले हर पहले श्रोता की मिलेंगें २ अंक. ये प्रतियोगिता दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलेगी, यानी 5 अक्टूबर से १४ दिसम्बर तक, यानी TST के ४० वें एपिसोड तक. जिसके समापन पर जिस श्रोता के होंगें सबसे अधिक अंक, वो चुनेगा आवाज़ की वार्षिक गीतमाला के 60 गीतों में से पहली 10 पायदानों पर बजने वाले गीत. इसके अलावा आवाज़ पर उस विजेता का एक ख़ास इंटरव्यू भी होगा जिसमें उनके संगीत और उनकी पसंद आदि पर विस्तार से चर्चा होगी. तो दोस्तों कमर कस लीजिये खेलने के लिए ये नया खेल- "कौन बनेगा TST ट्रिविया का सिकंदर" TST ट्रिविया प्रतियोगिता में अब तक- पिछले एपिसोड में, सीमा जी back with a bang....बहुत बढ़िया...आप विजेता हैं, बिना शक... बधाई सुजॉय - गुड मॊर्निंग् सजीव! और बताइए वीकेंड कैसा रहा? सजीव - वेरी गुड मॊर्निंग् सुजॉय, और अपने

सर्दी की धूप में फुरसत का दिन और कविताओं की चुस्की

एक वैश्विक कवि सम्मेलन रश्मि प्रभा खुश्बू पूरे उत्तर भारत में सर्दी अपनी तमाम विविधताओं के साथ उतर चुकी है। लगातार धूप की तपिश और बरसाती मौसम की उमस से व्याकुल लोगों के लिए सुख और संतोष के दिन। और वैसे में भी रविवार का दिन। छुट्टी का दिन। फुरसत का दिन। और चूँकि माह का आखिरी रविवार है तो उम्मीद की जा सकती है कि वेतन भी मिल गया होगा। हालाँकि महँगाई अधिक है, फिर भी हम यही कहेंगे कि इस खास रविवार के लिए चाय के प्रबंध कर लेने भर का पैसा ज़रूर बचाये रखें, क्योंकि रश्मि प्रभा आज लेकर आती हैं, कवि सम्म्मेलन का विशेष कार्यक्रम। हिन्द-युग्म तो एक वैश्विक मंच है, वैसे केवल उत्तर भारतीय श्रोताओं की चिंता करना बेमानी होगी। हम मानते हैं कि उत्तर भारतीयों का हर मौसम की क्रूरता और अपनत्व से जितना सामीप्य है, उतना शायद दुनिया के दूसरे भूभागीयों का नहीं। वैसे हिन्द-युग्म के श्रोता दुनिया भर के 150 से भी अधिक देशों फैले हैं, तो यदि हम यह भी उम्मीद करें कि कहीं-कहीं भीषण गर्मी होगी, कहीं तूफान होगा तो भी यह तो हमारा विश्वास है कि रश्मि प्रभा के संचालन से उन्हें बहुत राहत मिलेगी। अब बातों के संसार से बाहर न

सुनो कहानी: अनुराग शर्मा लिखित हत्या की राजनीति

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शरद तैलंग की आवाज़ में रबीन्द्र नाथ ठाकुर की हृदयस्पर्शी कहानी " तोते की कहानी " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक कहानी " हत्या की राजनीति ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 6 मिनट 21 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग  पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पतझड़ में पत्ते गिरैं, मन आकुल हो जाय। गिरा हुआ पत्ता कभी, फ़िर वापस ना आय।। ~ अनुराग शर्मा हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी गरीबों को उसके खेतों में बेगार तो करनी ही पड़ती थी, उनकी बहू बेटियाँ भी सुरक्षित नहीं थी। ( अनुराग शर्मा की " ह्त्या की राजनीति " से एक अंश )

धड़कने लगा दिल नज़र झुक गयी....नूतन की अदाकारी और गीता दत्त से स्वर, दुर्लभ संयोग

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 275 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं पार्श्वगायिका गीता दत्त के गाए हुए कुछ सुरीले सुमधुर गीत जो दस अलग अलग अभिनेत्रियों पर फ़िल्माए गए हैं। इन गीतों को चुनकर और इनके बारे में तमाम जानकारियाँ इकट्ठा कर हमें भेजा है पराग सांकला जी ने और उन्ही की कोशिश का यह नतीजा है कि गुज़रे ज़माने के ये अनमोल नग़में आप तक इस रूप में पहुँच रहे हैं। नरगिस, मीना कुमारी, कल्पना कार्तिक और मधुबाला के बाद आज बारी है अदाकारा नूतन की। नूतन भी हिंदी फ़िल्म जगत की एक नामचीन अदाकारा रहीं हैं जिनके अभिनय का लोहा हर किसी ने माना है। हल्के फुल्के फ़िल्में हों या फिर संजीदे और भावुक फ़िल्में, हर फ़िल्म में वो अपनी अमिट छाप छोड़ जाती थीं। उनके अभिनय से सजी तमाम फ़िल्में आज क्लासिक फ़िल्मों में जगह बना चुकी है। वो एकमात्र ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्होने ५ बार फ़िल्मफ़ेयर के तहत सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता। नूतन मधुबाला, नरगिस या मीना कुमरी की तरह बहुत ज़्यादा ख़ूबसूरत या ग्लैमरस नहीं थीं, लेकिन उनकी सादगी के ही लोग दीवाने थे। उनकी ख़ूबसूरती उनके अंदर थी जो उनके स्वभाव

स्वप्न साकार होते हैं...... चाँद शुक्ला हदियाबादी

हम अपने आवाज़ के दुनिया के दोस्तों को समय-समय में भाषा-साहित्य, कला-संस्कृति जगत के कर्मवीरों से मिलवाते रहते हैं। और जब भी बात इंटरनेट पर इस दिशा में हो रहे सकारात्मक प्रयासों की होती है तो वेबमंच रेडियो सबरंग डॉट कॉम के संस्थापक चाँद शुक्ला हमारी आँखों के सामने आ जाते हैं। आज इन्हीं से रूबर होते हैं सुधा ओम ढींगरा की इनसे हुई एक गुफ्तगु के माध्यम से- हदियाबाद, फगवाड़ा, पंजाब में एक बालक विविध भारती सुनता हुआ अक्सर कल्पना की दुनिया में पहुँच जाता और आकाशवाणी के संसार में खो जाता। उसे लगता कि उसकी आवाज़ भी रेडियो से आ रही है और जनता सुन रही है। इस स्वप्न का आनन्द लेते हुए वह किशोरावस्था से युवावस्था में पहुँच गया। कई बार उसे महसूस होता कि स्वप्न सच कहाँ होते हैं। पर फिर कहीं से एक आशा की किरण कौंध जाती, सपने साकार होते हैं। पढ़ाई पूरी कर, संघर्ष और चुनौतियों का सामना करते हुए वह युवक अमेरिका, जर्मन घूमते हुए डेनमार्क आ गया। उस समय पूरे यूरोप ने कम्युनिटी रेडियो की स्वीकृति दे दी थी। डेनमार्क पहला ऐसा देश है, जहाँ 1983 में कम्युनिटी रेडियोज़ की स्थापना हुई। कोई भी लाईसैंस ले कर रेडियो प

दर्शन प्यासी आई दासी...मधुबाला की विनती को स्वर दिए गीता दत्त ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 274 'गी तांजली' में आज बारी है हिंदी फ़िल्म जगत की सब से ख़ूबसूरत अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माए गए गीता रॉय के गाए एक गीत की। गीत का ज़िक्र हम थोड़ी देर में करेंगे, पहले मधुबाला से जुड़ी कुछ बातें हो जाए! मधुबाला का असली नाम था मुमताज़ जहाँ बेग़म दहल्वी। उनका जन्म दिल्ली में एक रूढ़ी वादी पश्तून मुस्लिम परिवार में हुआ था। ११ बच्चों वाले परिवार की वो पाँचवीं औलाद थीं। अपने समकालीन नरगिस और मीना कुमारी की तरह वो भी हिंदी सिनेमा की एक बेहतरीन अभिनेत्री के रूप में जानी गईं। अपने नाम की तरह ही उन्होने चारों तरफ़ अपनी की शहद घोली जिसकी मिठास आज की पीढ़ी के लोग भी चखते हैं। मधुबाला की पहली फ़िल्म थी 'बसंत' जो बनी थी सन् '४२ में। इस फ़िल्म में उन्होने नायिका मुमताज़ शांति की बेटी का किरदार निभाया था। उन्हे पहला बड़ा ब्रेक मिला किदार शर्मा की फ़िल्म 'नीलकमल' में जिसमें उनके नायक थे राज कपूर, जिनकी भी बतौर नायक वह पहली फ़िल्म थी। 'नीलकमल' आई थी सन् '४७ में और इसी फ़िल्म से मुमताज़ बन गईं मधुबाला। उस समय उनकी आयु केवल १४ वर्ष ही थी।

...और एक सितारा डूब गया....लेखक/निर्देशक अबरार अल्वी को अंतिम सलाम

"वो मेरे खासमखास सलीम आरिफ के चाचा थे, दरअसल फिल्मों में मेरे सबसे शुरूआती कामों में से एक उनकी लिखी हुई स्क्रिप्ट्स के लिए संवाद लिखने का ही था. हम दोनों ने उन दिनों काफी समय साथ गुजरा था, वे उम्र भर गुरु दत्त से ही जुड़े रहे, गुरु दत्त और उनके भाई आत्मा राम के आलावा शायद ही किसी के लिए उन्होंने लेखन किया हो, मैं जानकी कुटीर में बसे उनके घर के आस पास से जब भी गुजरता था, रुक कर उन्हें सलाम करने अवश्य जाता था, इंडस्ट्री का एक और स्तम्भ गिर गया है"- ये कहना है गुलज़ार साहब का, और वो बात कर रहे थे इंडस्ट्री के जाने माने स्क्रीन लेखक अबरार अल्वी के बारे में, जिनका पिछले सप्ताह ८२ साल की उम्र में देहांत हो गया. वाकई फिल्म जगत का एक और सितारा डूब गया. वैसे अबरार साहब का अधिकतम काम गुरु दत्त के साथ ही रहा, और गुरु दत्त ने ही उन पर "साहब बीबी और गुलाम" का निर्देशन सौंपा. इस लम्बी जुगलबंदी की शुरुआत "जाल" के सेट पर हुई, जब गुरु दत्त किसी दृश्य के फिल्म्कांकन को लेकर असमंजस में थे और अबरार ने उन्हें रास्ता दिखाया, गुरु उनसे इतने प्रभवित हुए की अगली फिल्म "आर पा