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सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'बड़े घर की बेटी'

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'बड़े घर की बेटी' 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'बोहनी' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "बड़े घर की बेटी" , जिसको स्वर दिया है शन्नो अग्रवाल ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 23 मिनट। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी आनंदी अपने नये घर में आयी, तो यहॉँ का रंग-ढंग कुछ और ही देखा। जिस टीम-टाम की उसे बचपन से ही आदत पड़ी हुई थी, वह यहां नाम-मात्र को भी न थी। हाथी-घोड़ों का तो कहना ही

आयो कहाँ से घनश्याम...रैना बितायी किस धाम...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 35 शा स्त्रिया संगीत के जानकारों को ठुमरी की विशेषताओं के बारे में पता होगा. ठुमरी उपशास्त्रिया संगीत की एक लोकप्रिय शैली है जो मुख्यतः राधा और कृष्ण का प्रेमगीत है. ठुमरी केवल गायिकाएँ ही गाती हैं और इस पर कथक शैली में नृत्य किया जा सकता है. श्रृंगार रस, यानी कि प्रेम रस की एक महत्वपूर्ण मिसाल है ठुमरी. ठुमरी को कई रागों में गाया जा सकता है. राग खमाज में एक बेहद मशहूर ठुमरी है "कौन गली गयो श्याम". समय समय पर इसे बहुत से शास्त्रिया गायिकाओं ने गाया है. फिल्म में भी इसे जगह मिली है. जैसे कि कमाल अमरोही ने अपनी महत्वकांक्षी फिल्म "पाकीजा" में परवीन सुल्ताना से यह ठुमरी गवायी थी. हालाँकि इस फिल्म के संगीतकार थे गुलाम मोहम्मद, लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने के कारण नौशाद साहब ने 'पार्श्वसंगीत' के रूप में इस ठुमरी को पेश किया था. दोस्तों, आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में हम "पाकीजा" फिल्म की यह ठुमरी नहीं पेश कर रहे हैं, बल्कि इसी ठुमरी से प्रेरित एक लोकप्रिय फिल्मी गीत सुनवा रहे हैं फिल्म "बुड्डा मिल गया" से. 1971 में बनी फि

बीसवीं सदी की १० सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्में (अंतिम भाग)

हम जिक्र कर रहे थे बीसवीं सदी की १० सर्वश्रेष्ठ फिल्मों का प्रतिष्टित हिंदी फिल्म समीक्षक विनोद भारद्वाज द्वारा चुनी गयी सूची के आधार पर. कल हमने ५ फिल्में किस्मत, आवारा, अलबेला, देवदास, और मदर इंडिया की चर्चा की , आगे बढ़ते हैं - ६. प्यासा (१९५७ ) -गुरुदत्त इस फिल्म के निर्देशक और नायक थे. वहीदा रहमान, माला सिन्हा, जॉनी वाकर, और रहमान थे अन्य प्रमुख भूमिकाओं में. फिल्म के केंद्र में एक प्रतिभाशाली मगर असफल कवि की त्रासदी है जिसे मारा हुआ समझा जाने के बाद खूब बिकने लगता है. जीवित कवि दर दर भटक रहा है पर उसके मृत रूप की पूजा हो रही है. "ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती...", गीतकार शायर साहिर लुधियानवीं ने सुनिया की सच्चाईयों को अपनी कलम से नंगा किया और सचिन देव बर्मन ने अपने संगीत से इस कृति को अमर कर दिया. सुनिए इसी फिल्म से ये गीत - ७. मुग़ल - ए- आज़म (१९६० ) - के आसिफ की इस एतिहासिक फिल्म को बनने में ९ साल लगे. अकबर बने पृथ्वी राज कपूर और शहजादे सलीम की भूमिका निभाई दिलीप कुमार ने. मधुबाला ने अपनी सुन्दरता और अदाकारी से अनारकली को परदे पर जिन्दा कर दिया. फिल्म के संवाद