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तेरी नज्म से गुजरते वक्त खदशा रहता है...

चाहे बात हो गुलज़ार साहब की या जिक्र छिड़े अमृता प्रीतम का, एक नाम सभी हिन्दी चिट्टाकारों के जेहन में सहज ही आता है- रंजना भाटिया का, जिन्होंने इन दोनों हस्तियों पर लगातार लिखा है और बहुत खूब लिखा है, आज हम जिस एल्बम का जिक्र आवाज़ पर कर रहें हैं उसमें संवेदनायें हैं अमृता की तो आवाज़ है गुलज़ार साहब की. अब ऐसे एल्बम के बारे में रंजना जी से बेहतर हमें कौन बता सकता है. तो जानते हैं उन्हीं से क्या है इस एल्बम की खासियतें - तेरी नज्म से गुजरते वक्त खदशा रहता है पांव रख रहा हूँ जैसे ,गीली लैंडस्केप पर इमरोज़ के तेरी नज्म से इमेज उभरती है ब्रश से रंग टपकने लगता है वो अपने कोरे कैनवास पर नज्में लिखता है , तुम अपने कागजों पर नज्में पेंट करती हो -गुलजार अमृता की लिखी नज्म हो और गुलजार जी की आवाज़ हो तो इसको कहेंगे सोने पर सुहागा .....दोनों रूह की अंतस गहराई में उतर जाते हैं ..रूमानी एहसास लिए अमृता के लफ्ज़ हैं तो मखमली आवाज़ में गुलजार के कहे बोल हैं इसको गाये जाने के बारे में गुलजार कहते हैं की यह तो ऐसे हैं जैसे "दाल के ऊपर जीरा" किसी ने बुरक दिया हो ..गुलजार से पुरानी पीढी के साथ साथ

लता संगीत पर्व- महीने भर चला संगीत प्रेमियों का उत्सव

आवाज़ पर आयोजित लता संगीत उत्सव पर एक विशेष रिपोर्ट और सुनें लता जी के चुने हुए २० गीत एक साथ. जब हमने लता संगीत उत्सव की शुरुवात की थी इस माह के पहले सप्ताह में, तब दो उद्देश्य थे, एक भारत रत्न और संगीत के कोहिनूर लता मंगेशकर पर हिन्दी भाषा में कुछ सहेजनीये आलेखों का संग्रह बने और दूसरा लता दी के चाहने वाले इंटरनेटिया श्रोताओं को हम प्रेरित करें की वो लता जी के बारे में हिन्दी भाषा में लिखें. जहाँ तक दूसरे उद्देश्य का सवाल है, हमें बहुत अधिक कमियाबी नही मिल पायी है. कुछ लिखते लिखते रह गए तो कुछ जब तक लिखना सीख पाते समय सीमा खत्म हो चली. प्रतियोगिता की दृष्टि से मात्र एक ही प्रवष्टि हमें मिली जिसे हम आवाज़ पर स्थान दे पाते. नागपुर के २२ वर्षीय अनूप मनचलवार ने अपनी मुक्कम्मल प्रस्तुति से सब का मन मोह लिया, सुंदर तस्वीरें और slide शो से अपने आलेख को और सुंदर बना दिया. हमारे माननीय निर्णायक श्री पंकज सुबीर जी ने अनूप जी को चुना है लता संगीत पर्व के प्रथम और एक मात्र विजेता के रूप में, अनूप जी को मिलेंगीं ५०० रुपए मूल्य की पुस्तकें और "पहला सुर" एल्बम की एक प्रति. अनूप जी का आलेख आ

तीसरी बार हुई अगस्त के अश्वारोही गीतों की परख

पहले चरण की तीसरी और अन्तिम समीक्षा को प्रस्तुत करने में कुछ विलंब हुआ, दरअसल हमारे माननीय समीक्षक जब पहले दो गीतों की समीक्षा हमें भेज चुकें थे तब उन्हें किसी व्यक्तिगत कारणों के चलते समयाभाव का सामना करना पड़ा. इसी कारण अन्तिम तीन गीतों की समीक्षा उन्होंने काफ़ी संक्षिप्त की है पहले दो गीतों की तुलना में. लेकिन अंक समीकरण हमारे लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं सरताज गीत चुनने की प्रक्रिया में. तो प्रस्तुत है पहले चरण के अन्तिम समीक्षक के विचार हमारे ऑगस्त के अश्वारोही गीतों पर. मैं नदी गाना शुरू हुआ और सिग्‍नेचर मूजिक शुरू हुआ तो बहुत उम्मीदें बंधी । सुंदर सिग्‍नेचर तैयार किया है । और जब मानसी पिंपले की आवाज़ की आमद होती है तो एक तरह की ताज़गी का अहसास होता है । गाने का मुखड़ा बेहतरीन है । रिदम बेहतरीन तरीक़े से रखा गया है । पर पता नहीं क्‍यों मुझे हिंदी सिनेमा संसार के किसी गाने की झलक लगी इस गाने की ट्यून में । जब हम पहले अंतरे पर पहुंचे तो ये सुनकर कष्ट हुआ कि मिक्सिंग में कमी रह गयी है और गायिका मानसी की आवाज़ डूब गयी है । वाद्यों की आवाज़ ने बोलों की स्पष्ट कर ली है । पहले अंतरे के बाद का

प्रलय के बाद भी बचा रहेगा लता मंगेशकर का पावन स्वर !

लता मंगेशकर का जन्मदिन हर संगीतप्रेमी के लिये उल्लास का प्रसंग है. फ़िर हमारे प्रिय चिट्ठाकार संजय पटेल के लिये तो विशेष इसलिये है कि वे उसी शहर इन्दौर के बाशिंदे हैं जहाँ दुनिया की सबसे सुरीली आवाज़ का जन्म हुआ था. लताजी और उनका संगीत संजय भाई के लिये इबादत जैसा है. वे लताजी के गायन पर लगातार लिखते और अपनी अनूठी एंकरिंग के ज़रिये बोलते रहे हैं.आज आवाज़ के लिये लता मंगेशकर पर उनका यह भावपूर्ण लेख लता –मुरीदों के लिये एक विशिष्ट उपहार के रूप में पेश है. आइये भगवान से प्रार्थना करें लताजी दीर्घायु हों और उनकी पाक़ आवाज़ से पूरी क़ायनात सुरीली होती रहे...बरसों बरस. आप शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत या चित्रपट या सुगम संगीत के पूरे विश्व इतिहास पर दृष्टि डाल लीजिये, किंतु आप निराश ही होंगे यह जानकर कि एक भी नाम ऐसा नहीं है जो अमरता का वरदान लेकर इस सृष्टि में आया हो; एक अपवाद छोड़कर और वह नाम है स्वर-साम्राज्ञी भारतरत्न लता मंगेशकर। लताजी के जन्मोत्सव की बेला में मन-मयूर जैसे बावला-सा हो गया है। दिमाग पर ज़ोर डालें तो याद आता है कि लताजी अस्सी के अनक़रीब आ गईं.श्रोताओं की चार पीढ़ियों से राब्ता रखने वा

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का तीसरा अंक

कविता वाचन की इंटरनेटीय परम्परा डॉक्टर मृदुल कीर्ति इंतज़ार की घडियां ख़त्म हुईं। लीजिये आपके सेवा में प्रस्तुत है सितम्बर २००८ का पॉडकास्ट कवि सम्मलेन। पिछली बार की तरह ही इस बार भी इस ऑनलाइन आयोजन का संयोजन किया है हैरिसबर्ग, अमेरिका से डॉक्टर मृदुल कीर्ति जी ने। पॉडकास्ट कवि सम्मेलन भौगौलिक दूरियाँ कम करने का माध्यम है और इसमें भारत व अमेरिका के कवियों ने भाग लिया है। इस बार के पॉडकास्ट कवि सम्मेलन ने पोंडिचेरी से स्वर्ण-ज्योति, फ़रीदाबाद से शोभा महेन्द्रू, दिल्ली से मनुज मेहता, ग़ाज़ियाबाद से कमलप्रीत सिंह, अशोकनगर (म॰प्र॰) से प्रदीप मानोरिया, रोहतक से डॉक्टर श्यामसखा "श्याम", भारत से विवेक मिश्र, पिट्सबर्ग (अमेरिका) से अनुराग शर्मा, तथा हैरिसबर्ग  (अमेरिका) से डॉक्टर मृदुल कीर्ति को युग्मित किया है। पिछले सम्मलेन की सफलता के बाद हमने आपकी बढ़ी हुई अपेक्षाओं को ध्यान में रखा है. हमें आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि इस बार का सम्मलेन आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा और आपका सहयोग हमें इसी जोरशोर से मिलता रहेगा। नीचे के प्लेयरों से सुनें। (ब्रॉडबैंड वाले यह प्लेयर चलायें) (

चलो, एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों

मशहूर पार्श्व गायक महेन्द्र कपूर को अनिता कुमार की श्रद्धाँजलि दोस्तो, जन्म- ९ जनवरी १९३४ मूल- अमृतसर, पंजाब मृत्यु- २७ सितम्बर, २००८ अभी-अभी खबर आयी कि शाम साढ़े सात बजे महेंद्र कपूर सदा के लिए रुखसत हो लिए। सुनते ही दिल धक्क से रह गया। अभी कल ही तो हेमंत दा की बरसी थी और वो बहुत याद आये, और आज महेंद्र कपूर चल दिये। कानों में गूंजती उनकी आवाज के साथ साथ अपने बचपन की यादें भी लौट रही हैं। 1950 के दशक में जब महोम्मद रफ़ी, तलत महमूद, मन्ना डे, हेमंत दा, मुकेश और कालांतर में किशोर दा की तूती बोलती थी ऐसे में भी महेंद्र कपूर साहब ने अपना एक अलग मुकाम बना लिया था। एक ऐसी आवाज जो बरबस अपनी ओर खींच लेती थी। यूं तो उन्होंने उस जमाने के सभी सफ़ल नायकों को अपनी आवाज से नवाजा लेकिन मनोज कुमार भारत कुमार न होते अगर महेंद्र कपूर जी की आवाज ने उनका साथ न दिया होता। महेंद्र कपूर जी का नाम आते ही जहन में 'पूरब और पश्चिम' के गाने गूंजते लगते हैं "है प्रीत की रीत जहां की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ, भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ" आज भी इस गीत को सुनते-सुनते कौन भार

स्वर कोकिला लता मंगेशकर के लिये एक अदभुत कविता-तुम स्वर हो,स्वर का स्वर हो

माया गोविंद देश की जानी मानी काव्य हस्ताक्षर हैं.हिन्दी गीत परम्परा को मंच पर स्थापित करने में मायाजी ने करिश्माई रचनाएँ सिरजीं हैं.आवाज़ पर भाई संजय पटेल के माध्यम से हमेशा नई – नई सामग्री मिलती रही है.लता दीदी के जन्मदिन के ठीक एक दिन पहले आवाज़ पर प्रस्तुत है समर्थ कवयित्री माया गोविंद की यह भावपूर्ण रचना. तुम स्वर हो, तुम स्वर का स्वर हो सरल-सहज हो, पर दुष्कर हो। हो प्रभात की सरस "भैरवी' तुम "बिहाग' का निर्झर हो। चरण तुम्हारे "मंद्र सप्तकी' "मध्य सप्तकी' उर तेरा। मस्तक "तार-स्वरों' में झंकृत गौरवान्वित देश मेरा। तुमसे जीवन, जीवन पाए तुम्हीं सत्य-शिव-सुंदर हो। हो प्रभात की... "मेघ मल्हार' केश में बॉंधे भृकुटी ज्यों "केदार' "सारंग'। नयन फागुनी "काफ़ी' डोले अधर "बसंत-बहार' सुसंग। कंठ शारदा की "वीणा' सा सप्त स्वरों का सागर हो। हो प्रभात की... सोलह कला पूर्ण गांधर्वी लगती हो "त्रिताल' जैसी। दोनों कर जैसे "दो ताली' "सम' जैसा है भाल सखी। माथे की बिंदिया "ख़ाली