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आसाम के लोक संगीत का जादू, सुनिए जुबेन की रूहानी आवाज़ में

आवाज़ पर हम आज से शुरू कर रहे हैं, लोक संगीत पर एक श्रृंखला, हिंद के अनमोल लोक संगीत के खजाने से कुछ अनमोल मोती चुन कर लायेंगे आपके लिए, ये वो संगीत है जिसमें मिटटी की महक है, ये वो संगीत है जो हमारी आत्मा में स्वाभाविक रूप से बसा हुआ सा है, तभी तो हम इन्हे जब भी सुनते हैं लगता है जैसे हमारे ही मन के स्वर हैं. जितनी विवधता हमारे देश के हर प्रान्त के लोक संगीत में है, उतनी शायद पूरी दुनिया के संगीत को मिलाकर भी नही होगी. चलिए शुरुवात करते हैं, वहां से, जहाँ से निकलता है सूरज, पूर्वोत्तर राज्यों के हर छोटे छोटे प्रान्तों में लोक संगीत के इतने प्रकार प्रचार में हैं कि इनकी गिनती सम्भव नही है. आवाज़ के एक रसिया सत्यजित बारो ह ने हमें ये रिकॉर्डिंग उपलब्ध करायी है. यह एक आधुनिक वर्जन है जिसे जुबेन ( वही जिन्होंने "गेंगस्टर" फ़िल्म का मशहूर 'या अली...' गीत गाया है ) ने गाया है. इन्हे भोर गीत कहा जाता है, जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि यह गीत सुबह यानी भोर के समय गाये जाते हैं, और इसमे सुबह के सुंदर दृश्य का वर्णन होता है, अधिकतर भोरगीत वैष्णव धरम के स्तम्भ माने जाने वाले श्रीम

मोरा गोरा अंग लेई ले....- गुलज़ार, एक परिचय

गुलज़ार बस एक कवि हैं और कुछ नही, एक हरफनमौला कवि, जो फिल्में भी लिखता है, निर्देशन भी करता है, और गीत भी रचता है, मगर वो जो भी करता है सब कुछ एक कविता सा एहसास देता है. फ़िल्म इंडस्ट्री में केवल कुछ ही ऐसे फनकार हैं, जिनकी हर अभिव्यक्ति संवेदनाओं को इतनी गहराई से छूने की कुव्वत रखती है, और गुलज़ार उन चुनिन्दा नामों में से एक हैं, जो इंडस्ट्री की गलाकाट प्रतियोगी वातावरण में भी अपना क्लास, अपना स्तर कभी गिरने नही देते. गुलज़ार का जन्म १९३६ में, एक छोटे से शहर दीना (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ, शायरी, साहित्य और कविता से जुडाव बचपन से ही जुड़ गया था, संगीत में भी गहरी रूचि थी, पंडित रवि शंकर और अली अकबर खान जैसे उस्तादों को सुनने का मौका वो कभी नही छोड़ते थे. ( चित्र में हैं सम्पूरण सिंह यानी आज के गुलज़ार ) गुलज़ार और उनके परिवार ने भी भारत -पाकिस्तान बँटवारे का दर्द बहुत करीब से महसूस किया, जो बाद में उनकी कविताओं में बहुत शिद्दत के साथ उभर कर आया. एक तरफ़ जहाँ उनका परिवार अमृतसर (पंजाब , भारत) आकर बस गया, वहीँ गुलज़ार साब चले आए मुंबई, अपने सपनों के साथ. वोर्ली के एक गेरेज में, ब

समीक्षा के महासंग्राम में, पहले चरण की आखिरी टक्कर

आज हम समीक्षा के पहले चरण के अन्तिम पड़ाव पर हैं, तीसरे समीक्षक की रेटिंग के साथ जुलाई के जादूगरों को प्राप्त अब तक के कुल अंकों को लेकर ये गीत आगे बढेंगें अन्तिम चरण की समीक्षा के लिए, जो होगा सत्र के अंत में यानी जनवरी २००९ में, जिसके बाद हमें मिलेगा, हमारे इस सत्र का सरताज गीत. तो दोस्तों चलते हैं पहले चरण की समीक्षा में, अपने तीसरे और अन्तिम समीक्षक के पास और जानते हैं उनसे, कि उन्होंने कैसे आँका हमारे जुलाई के जादूगर गीतों को - (पहले दो समीक्षकों के राय आप यहाँ और यहाँ पढ़ सकते हैं) गीत समीक्षा Stage 01, Third review संगीत दिलों का उत्सव है .... पहला गीत है - संगीत दिलों का उत्सव है... इस गाने की उपलब्धि है मुखड़ा --'संगीत दिलों का उत्सव है- बहुत सुंदर है ये गीत । हालांकि मुझे लगता है कि इस गीत में भी गेय तत्व मुश्किल हो गए हैं । रचना के दौरान कई पंक्तियां लंबी और कठिन बन गयी हैं । पर कुल मिलाकर इन कमियों को इसकी धुन और गायकी में ढक लिया गया है । गायकों की आवाज़ें बढि़या लगीं । और धुन भी । आलाप सुंदर जगह पर रखे गए हैं । गाने का इंट्रोडक्‍शन म्यूजिक बहुत लंबा है पर मधुर है । गि