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गीत अतीत 08 || हर गीत की एक कहानी होती है || बेखुद || बिस्वजीत नंदा || हेमा सरदेसाई ||

Geet Ateet 08 Har Geet Kii Ek Kahaani Hoti Hai... Bekhud Biswajit Nanda & Hema Sardesaai Biswajit Nanda लन्दन में बसे देसी कलाकार बिस्वजीत नंदा और सुप्रसिद्ध गायिका हेमा सरदेसाई मिले तो बना गीत "बेखुद", शब्द पिरोये सजीव सारथी ने और सुर संजोये कृष्ण राज ने. लीजिये सुनें "बेखुद" के बनने की कहानी आज गायक बिस्वजीत नंदा की जुबानी... डाउनलोड कर के सुनें  यहाँ  से.... सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - ओ रे रंगरेज़ा (जॉली एल एल बी) मैनरलैस मजनूं (रंनिंग शादी डॉट कॉम) रंग (अरविन्द तिवारी, गैर फ़िल्मी सिंगल) हमसफ़र (बदरी की दुल्हनिया) सनशाईन (गैर फ़िल्मी सिंगल) हौले हौले (गैर फ़िल्मी सिंगल) कागज़ सी है ज़िन्दगी 

धमार के रंग : SWARGOSHTHI – 312 : DHAMAR KE RANG

स्वरगोष्ठी – 312 में आज फागुन के रंग – 4 : धमार में होली गुण्डेचा बन्धुओं के प्रभावी स्वरों में सुनिए – “चोरी चोरी मारत हौं कुमकुम...” ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की श्रृंखला “फागुन के रंग” की चौथी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम आपसे फाल्गुनी संगीत पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार बसन्त ऋतु की आहट माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मिल जाती है। बसन्त ऋतु के आगमन के साथ ऋतु के अनुकूल गायन-वादन का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। इस ऋतु में राग बसन्त और राग बहार आदि का गायन-वादन किया जाता है। होलिका दहन के साथ ही रंग-रँगीले फाल्गुन मास का आगमन होता है। पिछले दिनों हमने हर्षोल्लास से होलिका दहन और उसके अगले दिन रंगों का पर्व मनाया था। इस परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। अब तो चैत्र, शुक्ल प्रतिपदा अर्थात भारतीय नववर्ष का शुभारम्

चित्रकथा - 13: हिन्दी फ़िल्मों में किशोरी अमोनकर

अंक - 13 हिन्दी फ़िल्मों में किशोरी अमोनकर "मेघा झर झर बरसत रे..."  ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ में आपका हार्दिक स्वागत है।  पिछले सोमवार दिनांक 3 अप्रैल 2017 को शास्त्रीय संगीत की सुप्रसिद्ध गायिका पद्मविभूशण किशोरी अमोनकर (आमोणकर) का 84 वर्ष की आयु में देहावसन हो जाने से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायन जगत को गहरी हानी पहुँची है। शास्त्रीय संगीत जगत में किशोरी जी का ज

गीत अतीत 07 || हर गीत की एक कहानी होती है || कागज़ सी है ज़िन्दगी || जीना इसी का नाम है || नाजिम के अली

Geet Ateet 07 Har Geet Kii Ek Kahaani Hoti Hai... Kaagaz Si Hai Zindagi Jeena Isi Ka Naam Hai Nazim K Ali - Singer फ़तेह शेरगिल के लिखे और ओंकार मन्हास के संगीतबद्ध किये फिल्म जीना इसी का नाम है के गीत "कागज़ सी है ज़िन्दगी" के अल्बम में दो संस्करण हैं, इसके स्लो संस्करण को आवाज़ दी है, गायक नाजिम के अली ने, आईये आज नाजिम से ही जानें इस सुरीले नगमें के बनने की कहानी. प्ले पे क्लिक करें और सुनें.... डाउनलोड कर के सुनें  यहाँ  से.... सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - ओ रे रंगरेज़ा (जॉली एल एल बी) मैनरलैस मजनूं (रंनिंग शादी डॉट कॉम) रंग (अरविन्द तिवारी, गैर फ़िल्मी सिंगल) हमसफ़र (बदरी की दुल्हनिया) सनशाईन (गैर फ़िल्मी सिंगल) हौले हौले (गैर फ़िल्मी सिंगल)

मल्लिका ए तरन्नुम नूरजहाँ से आज की महफ़िल में सुनेंगे आदमी की पहचान कैसे हो

महफ़िल ए कहकशाँ 21 नूरजहाँ  दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज पेश है मुज्ज़फर वारसी की लिखी नज़्म  मल्लिका ए तरन्नुम नूरजहाँ  की आवाज़ में|  मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

डॉ. सतीश दुबे की लघुकथा श्रद्धांजलि ऑडियो

लोकप्रिय स्तम्भ " बोलती कहानियाँ " के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं नई, पुरानी, अनजान, प्रसिद्ध, मौलिक और अनूदित, यानि के हर प्रकार की कहानियाँ। इस शृंखला में पिछली बार आपने अनुराग शर्मा के स्वर में  राम निवास बाँयला  की लघुकथा  पवित्रता का वाचन सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं (स्वर्गीय) डॉ. सतीश दुबे की लघुकथा श्रद्धांजलि,  जिसे स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। प्रस्तुत अंश का कुल प्रसारण समय 2 मिनट 56 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस लघुकथा का गद्य अंतर्राष्ट्रीय द्वैभाषिक पत्रिका सेतु पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। हिंदी लघुकथा के पुरोधा डॉ. सतीश दुबे का जन्म 12 नवम्बर 1940 को हुआ था।  उनके आठ लघुकथा संग्रह, छह कथा संग्रह और दो उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनके उपन्यास डेरा-बस्ती का सफ़रनामा पर एक फ़

होरी ठुमरी : SWARGOSHTHI – 311 : HORI THUMARI

स्वरगोष्ठी – 311 में आज फागुन के रंग – 3 : होरी ठुमरी में फाल्गुनी रस पण्डित भीमसेन जोशी के दिव्य स्वर में सुनिए – “होरी खेलत नन्दकुमार...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के मंच पर ‘स्वरगोष्ठी’ की श्रृंखला “फागुन के रंग” की तीसरी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला में हम आपसे फाल्गुनी संगीत पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार बसन्त ऋतु की आहट माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मिल जाती है। बसन्त ऋतु के आगमन के साथ ऋतु के अनुकूल गायन-वादन का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। इस ऋतु में राग बसन्त और राग बहार आदि का गायन-वादन किया जाता है। होलिका दहन के साथ ही रंग-रँगीले फाल्गुन मास का आगमन होता है। पिछले दिनों हमने हर्षोल्लास से होलिका दहन और उसके अगले दिन रंगों का पर्व मनाया था। इस परिवेश का एक प्रमुख राग काफी होता है। स्वरों के माध्यम से फाल्गुनी परिवेश, विशेष रूप से श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति के लिए राग काफी सबसे उपयुक्त राग है। अब तो चैत्र, शुक्ल प्रतिपदा अर्थात भारतीय नववर्ष का शुभा