Skip to main content

Posts

गीत अतीत 04 || हर गीत की एक कहानी होती है || हमसफ़र || बदरी की दुल्हनिया || अखिल सचदेवा ||

Geet Ateet 04 Har Geet Kii Ek Kahaani Hoti Hai... Humsafar Akhil Sachdeva- Singer, Lyricist & Composer ताज़ा प्रदर्शित फिल्म "बद्री की दुल्हनिया" के यूँ तो सभी गीत काफी हिट हो चुके हैं, पर जिस गीत की हम बात कर रहे हैं वो सबसे अनूठा है, सबसे अलग और सोलफुल है, मिलिए इसी गीत के गायक, संगीतकार और गीतकार अखिल सचदेव से, और जानिए इस गीत के बनने की कहानी, प्ले पर क्लिक करें और सुनें...  डाउनलोड कर के सुनें  यहाँ  से.... सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - ओ रे रंगरेज़ा (जॉली एल एल बी) मैनरलेस मजनू  (रंनिंग शादी डॉट कॉम) रंग (अरविन्द तिवारी- गैर फ़िल्मी)

अन्तिम प्रहर के राग : SWARGOSHTHI – 308 : RAGAS OF LAST QUARTER

रंगोत्सव पर सभी पाठकों और श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएँ स्वरगोष्ठी – 308 में आज राग और गाने-बजाने का समय – 8 : रात के चौथे प्रहर के राग पण्डित मल्लिकार्जुन मंसूर से सुनिए राग परज - “अँखियाँ मोरी लागि रही...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला – “राग और गाने-बजाने का समय” की आठवीं और समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीतानुरागियों का स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं अथवा प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों के प्रयोग का एक निर्धारित समय होता है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन

चित्रकथा - 9: शकील बदायूंनी के लिखे फ़िल्मी होली गीत

अंक - 9 शकील बदायूंनी के लिखे फ़िल्मी होली गीत “ लायी है हज़ारों रंग होली... ” 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं है। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। हमारी दिलचस्पी का आलम ऐसा है कि हम केवल फ़िल्में देख कर या गाने सुनने तक ही अपने आप को सीमित नहीं रखते, बल्कि फ़िल्म संबंधित हर तरह की जानकारियाँ बटोरने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसी दिशा में आपके हमसफ़र बन कर हम आ रहे हैं हर शनिवार ’चित्रकथा’ लेकर। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ के पहले अंक में आपका ह

गीत अतीत 03 || हर गीत की एक कहानी होती है || रंग || अरविन्द तिवारी || चाणक्य शुक्ला || सजीव सारथी

Geet Ateet 03 Har Geet Kii Ek Kahaani Hoti Hai... Song - Rang Chanakya Shukla- Composer Vocals - Arvind Tiwari, Piyush Ambhore & Subodh Pandey Lyrics - Sajeev Sarathie सभी श्रोताओं को होली की ढेरों शुभकामनाएँ, आज जिक्र "रंग" का, गायक अरविन्द तिवारी लाये है एक नया रंग इस होली आपके लिए, इस गीत को लिखा है सजीव सारथी ने और संगीतबद्ध किया है चाणक्य शुक्ला ने. तो सुनिए संगीतकार चाणक्य से आज रंग के बनने की कहानी....  डाउनलोड कर के सुनें  यहाँ  से.... सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - ओ रे रंगरेज़ा (जॉली एल एल बी) मैनरलेस मजनूं 

मध्यरात्रि बाद के राग : SWARGOSHTHI – 307 : RAGAS AFTER MIDNIGHT

स्वरगोष्ठी – 307 में आज राग और गाने-बजाने का समय – 7 : रात के तीसरे प्रहर के राग राग मालकौंस - “नन्द के छैला ढीठ लंगरवा...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला – “राग और गाने-बजाने का समय” की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीतानुरागियों का स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं अथवा प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों के प्रयोग का एक निर्धारित समय होता है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर को दि

चित्रकथा - 8: 2017 के प्रथम दो महीनों की फ़िल्मों का संगीत

अंक - 8 2017 के प्रथम दो महीनों की फ़िल्मों का संगीत “ साजन आयो रे, सावन लायो रे... ” 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं है। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। हमारी दिलचस्पी का आलम ऐसा है कि हम केवल फ़िल्में देख कर या गाने सुनने तक ही अपने आप को सीमित नहीं रखते, बल्कि फ़िल्म संबंधित हर तरह की जानकारियाँ बटोरने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसी दिशा में आपके हमसफ़र बन कर हम आ रहे हैं हर शनिवार ’चित्रकथा’ लेकर। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ के पहले अंक में