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BAATON BAATON MEIN -15: INTERVIEW OF MUSIC DIRECTOR/SINGER SOHAIL SEN

बातों बातों में - 15 संगीतकार और पर्श्वगायक सोहेल सेन से बातचीत  " आज के म्युज़िक की स्थिति काफ़ी मज़बूत है और दुनिया भर में हमारा संगीत फल-फूल रहा है।  "     नमस्कार दोस्तो। हम रोज़ फ़िल्म के परदे पर नायक-नायिकाओं को देखते हैं, रेडियो-टेलीविज़न पर गीतकारों के लिखे गीत गायक-गायिकाओं की आवाज़ों में सुनते हैं, संगीतकारों की रचनाओं का आनन्द उठाते हैं। इनमें से कुछ कलाकारों के हम फ़ैन बन जाते हैं और मन में इच्छा जागृत होती है कि काश, इन चहेते कलाकारों को थोड़ा क़रीब से जान पाते, काश; इनके कलात्मक जीवन के बारे में कुछ जानकारी हो जाती, काश, इनके फ़िल्मी सफ़र की दास्ताँ के हम भी हमसफ़र हो जाते। ऐसी ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' ने फ़िल्मी कलाकारों से साक्षात्कार करने का बीड़ा उठाया है। । फ़िल्म जगत के अभिनेताओं, गीतकारों, संगीतकारों और गायकों के साक्षात्कारों पर आधारित यह श्रृंखला है 'बातों बातों में', जो प्रस्तुत होता है हर महीने के चौथे शनिवार को। आज जनवरी 2016 का चौथा शनिवार है। आज इस स्तंभ में हम आपके लिए लेकर आए हैं इस

सुनिए पूजा अनिल की कहानी ब्रोचेता एस्पान्या

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछली बार आपने अनुराग शर्मा के स्वर में मुंशी प्रेमचंद की कहानी " रसिक संपादक " का वाचन सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं स्पेन से पूजा अनिल की कहानी ब्रोचेता एस्पान्या  उन्हीं के  स्वर में। प्रस्तुत कथा का गद्य " अभिव्यक्ति " पर उपलब्ध है। " ब्रोचेता एस्पान्या " का कुल प्रसारण समय 16 मिनट 39 सेकंड है। सुनिए और बताइये कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। लेखिका: पूजा अनिल उदयपुर, राजस्थान में जन्मीं पूजा अनिल सन् १९९९ से स्पेन की राजधानी मेड्रिड में रह रही हैं। साहित्य पढ़ने लिखने में बचपन से ही रुचि रही। ब्लॉग 'एक बूँद' का संचालन तथा हिन्द युग्म तथा पत्रिकाओं में आलेख, साक्षात्कार, निबंध व कवितायें प

राग कामोद : SWARGOSHTHI – 253 : RAG KAMOD

स्वरगोष्ठी – 253 में आज दोनों मध्यम स्वर वाले राग – 1 : राग कामोद ‘ए री जाने न दूँगी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर नये वर्ष की पहली श्रृंखला – ‘दोनों मध्यम स्वर वाले राग’ की आज से शुरुआत हो रही है। श्रृंखला की पहली कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों की चर्चा करेंगे, जिनमें दोनों मध्यम स्वरों का प्रयोग किया जाता है। संगीत के सात स्वरों में ‘मध्यम’ एक महत्त्वपूर्ण स्वर होता है। हमारे संगीत में मध्यम स्वर के दो रूप प्रयोग किये जाते हैं। स्वर का पहला रूप शुद्ध मध्यम कहलाता है। 22 श्रुतियों में दसवाँ श्रुति स्थान शुद्ध मध्यम का होता है। मध्यम का दूसरा रूप तीव्र या विकृत मध्यम कहलाता है, जिसका स्थान बारहवीं श्रुति पर होता है। शास्त्रकारों ने रागों के समय-निर्धारण के लिए कुछ सिद्धान्त निश्चित किये हैं। इन्हीं में से एक सिद्धान्त है, “अध्वदर्शक स्वर”। इस सिद्धान्त के अनुसार राग का मध्यम स्वर महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अध्वदर

"हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं....", क्या परेशानी थी मनोज कुमार को इस गीत से?

एक गीत सौ कहानियाँ - 74   'हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं...'   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 74-वीं कड़ी में आज जानिए 1965 की फ़िल्म ’गुमनाम’ के मशहूर गीत "हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं..." के

रसिक संपादक - प्रेमचंद

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछली बार आपने अनुराग शर्मा के स्वर में सर्वेश तिवारी "श्रीमुख" की लघुकथा " दंगा " का वाचन सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं मुंशी प्रेमचंद की कहानी रसिक संपादक जिसे स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। प्रस्तुत कथा का गद्य " हिन्दी समय " पर उपलब्ध है। " रसिक संपादक " का कुल प्रसारण समय 15 मिनट 55 सेकंड है। सुनिए और बताइये कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ ... मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं  ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी "क्या तुम समझते हो मुझे छोड़कर भाग जाओगे?”  ( मुंशी प्रेमचंद कृत "रसिक