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गिनती की हैं इंडस्ट्री में महिला संगीतकार पर उनमें एक खास मुकाम रखती हैं उषा खन्ना

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # १० युं तो आज महिलायें हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहीं हैं, लेकिन जहाँ तक फ़िल्मों में संगीत देने या गीत लिखने का सवाल है, उसमें आज भी पुरुषों का ही बोलबाला है। लेकिन फ़िल्म संगीत के इतिहास में कम से कम दो ऐसी महिला संगीतकारा हुईं हैं जिन्होने फ़िल्म संगीत में बहुत बड़ा योगदान दिया है, फ़िल्मी गीतों के ख़ज़ाने को समृद्ध किया है। एक तो थीं सरस्वती देवी जिन्होने बौम्बे टाकीज़ की बहुत सारी फ़िल्मों में बहुत ही कामयाब संगीत दिया, और दूसरी हैं उषा खन्ना, जिन्होने ६०, ७० और ८० के दशकों में बहुत सारी फ़िल्मों में बहुत ही उम्दा संगीत दिया है। आम तौर पर हम इन दो महिला संगीतकारों के नाम जानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि सरस्वती देवी से भी पहले जड्डन बाई (अभिनेत्री नरगिस की माँ) एक संगीतकारा रह चुकीं हैं, जिन्होने सन् १९३५ में 'तलाश-ए-हक़' नामक फ़िल्म में संगीत दिया था! बहरहाल, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम उषा खन्ना जी का स्वरबद्ध किया हुआ एक बेहद ख़ूबसूरत गीत आपको सुनवाने जा रहे हैं। अजी ख़ूबसूरत क्या, एक थिरकता मचलता नग़मा फ़िल्म 'दिल देके देखो' से

जब गायक मुकेश ने याद किया राज कपूर की पहली फिल्म को

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ०९ श मशाद बेग़म की आवाज़ में ४० के दशक का वह गीत याद है ना "काहे कोयल शोर मचाए रे, मोहे अपना कोई याद आए रे"? आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में इसी गीत की बारी। गीत सुनने से पहले ये हैं गायक मुकेश के उदगार राज कपूर की इस पहली पहली फ़िल्म के बारे में। "जिस मोती के बारे मे मै आज ज़िक्र कर रहा हूँ अमीन भाई, उस मोती का नाम है राज कपूर। और मैं राज के ज़िंदगी से ही तीन हिस्से पेश करूँगा। बिल्कुल साफ़ है अमीन भाई, पहले हिस्से को कहूँगा 'आग', दूसरे को 'बरसात से संगम', और तीसरे को 'जोकर से बौबी'। मैं उस ज़माने की बात कर रहा हूँ जब रणजीत स्टूडियो के अंदर हम लोग 'ट्रेनिंग्' किया करते थे। राज कपूर को लेकर चंदुलालजी के पास आये पापाजी। पापाजी यानी कि पृथ्वीराज साहब। और कहने लगे कि 'देखिये, यह मेरे साहबज़ादे हैं, यह फ़िल्म मे जाना चाहता है, और मै चाहूँगा कि यह 'फ़िल्म-मेकिंग्' के हर एक 'ब्रांच' को सीखे और कूली के काम से शुरु करे'। अमीन भाई, ऐसा है कि पापाजी ने राज मे कुछ गुण तो देख ही लिये थे पृथ्वी

तमाम बड़े संगीतकारों के बीच रह कर भी जयदेव ने बनायीं अपनी खास जगह अपने खास अंदाज़ से

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ०८ आ ज 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में जयदेव का संगीत, साहिर लुधियानवी के बोल, फ़िल्म 'हम दोनो' का वही सदाबहार गीत "अभी ना जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं", जिसे आज भी सुन कर मानो दिल नहीं भरता और बार बार सुनने को जी करता है। दोस्तों, यह गीत उस दौर का है जब जयदेव साहब की धुनों पर बर्मन दादा यानी कि सचिन दा के धुनों का असर साफ़ सुनाई देता था। बाद में सचिन दा के ही कहने पर जयदेव जी ने अपनी अलग शैली बनाई और अपनी मौलिकता का परिचय दिया। जयदेव जी के परम भक्त और सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक सुरेश वाडेकर उन्हे याद करते हुए कहते हैं - " पापाजी ने बहुत मेलडियस काम किया है, ख़ूबसूरत ख़ूबसूरत गानें दिए श्रोताओं के लिए। मैं भाग्यशाली हूँ कि मैने उनको ऐसिस्ट किया ६/८ महीने। 'सुर सिंगार' प्रतियोगिता जीतने के बाद मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला। वो मेरे गुरुजी के क्लोज़ फ़्रेंड्स में थे। मेरे गुरुजी थे पंडित जियालाल बसंत। लाहौर से वो उनके करीबी दोस्त थे। पापाजी ने मेरे गुरुजी से कहा कि इसे मेरे पास भेजो, एक्स्पिरीयन्स हो जाएगा कि गाना कैसे बन

लोक संगीत में गुंथे गीत जब भी परदे पर आये अमर हो कर रहे गए

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ०७ ज हाँ तक 'बंदिनी' फ़िल्म के गीत संगीत का सवाल है, इस फ़िल्म का कोई भी गीत ऐसा नहीं जो प्रचलित न हुआ हो। सचिन दा और शैलेन्द्र की टीम तो थी ही, साथ ही नये उभरते गीतकार गुलज़ार ने भी एक गीत इस फ़िल्म में लिखा था " मोरा गोरा अंग ल‍इ ले "। लता जी की आवाज़ में इस गीत के अलावा एक दूसरा गीत था "जोगी जब से तू आया मेरे द्वारे"। मुकेश की आवाज़ में " ओ जानेवाले हो सके तो लौट के आना ", मन्ना डे की आवाज़ में "मत रो माता लाल तेरे बहूतेरे", बर्मन दादा की आवाज़ में "मेरे साजन हैं उस पार", तथा आशा भोसले की आवाज़ में "ओ पंछी प्यारे" और आज का यह प्रस्तुत गीत "अब के बरस भेज भ‍इया को बाबुल" , ये सारे गानें आज सदाबहार नग़मों की फ़ेहरिस्त में दर्ज है। दोस्तों, अभी कुछ महीने पहले मैं विविध भारती पर ग़ैर फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम 'गुल्दस्ता' सुन रहा था। अचानक एक गीत बज उठा सुधा मल्होत्रा का गाया हुआ और संगीतकार का नाम बताया गया शिवराम कृष्ण। गीत कुछ ऐसा था "निम्बुआ तले डोला रख दे मुसाफ़िर, आय

राजेश रोशन को था अपनी धुन पर पूरा विश्वास जिसकी बदौलत सुनने वालों को मिला एक बेहद मनभावन गीत

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ०६ रा जेश रोशन ने अपने करीयर में कई बार रबीन्द्र संगीत से धुन लेकर हिंदी फ़िल्मी गीत तैयार किया है। इनमें से सब से मशहूर गीत रहा है फ़िल्म 'याराना' का "छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा"। आज इस गीत की बारी 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में। क्योंकि यह गीत अंजान ने लिखा है, तो आज जान लेते हैं इस गीत के बारे में अनजान साहब के बेटे समीर क्या कह रहे हैं विविध भारती पर। "उन्होने (अंजान ने) मुखड़ा मुझे सुनाया "छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा", मुझे लगा कि बहुत ख़ूबसूरत गाना बनेगा। मगर जब हम गाँव से वापस आए और सिटिंग् हुई और रिकार्डिंग् पर जब गाना पहुँचा तो संजोग की बात थी कि रिकार्डिंग् में जाने से पहले तक प्रोड्युसर ने वो गाना नहीं सुना था। और रिकार्डिंग् में जब प्रोड्युसर आया और उन्होने जैसे ही गाना सुना तो बोले कि रिकार्डिंग् कैन्सल करो, मुझे यह गाना रिकार्ड नहीं करना है। उन्होने कहा कि इतना बेकार गाना मैंने अपनी ज़िंदगी में नहीं सुना, इतना खराब गाना राजु तुमने हमारी फ़िल्म के लिए बनाया है, मुझे यह गाना रिकार्ड नहीं क

प्रतिभा के धनी गीतकार अनजान को नहीं मिल सका कभी उनके लायक सम्मान

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ०५ 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' की पाँचवीं कड़ी में आज प्रस्तुत है १९६४ की फ़िल्म 'बहारें फिर भी आएँगी' का गीत " आप के हसीन रुख़ पे आज नया नूर है, मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कसूर है "। इस गीत को मोहम्मद रफ़ी ने गाया है, ओ.पी. नय्यर ने स्वरबद्ध किया है, और लिखा है गीतकार अंजान ने। अंजान बनारस में कवि सम्मेलनों और मुशायरों में जाया करते थे। उन्हे हिंदी से बहुत लगाव था और अपनी रचनाओं में कम उर्दू का प्रयोग करते थे, लेकिन यह बात भी सच है कि बनारस में वो मुशायरों की शान थे। उनकी पकड़ उर्दू पर भी कम मज़बूत नहीं थी। इसका प्रमाण आज का प्रस्तुत गीत ही है। अंजान साहब लिखते हैं "जहाँ जहाँ पड़े क़दम वहाँ फ़िज़ा बदल गई, कि जैसे सर बसर बहार आप ही में ढल गई, किसी में यह कशिश कहाँ जो आप में हुज़ूर है, मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कसूर है"। अंजान ने अपनी फ़िल्मी करीयर शुरु की १९५३ में बनी प्रेम नाथ की फ़िल्म 'प्रिज़नर्स ऒफ़ गोलकोण्डा' में गीत लिख कर। फिर उसके बाद कई कम बजट फ़िल्मों में गीत लिखे। इनमें फ़िल्म 'लम्बे हाथ' का

सेन्शुअस गीतों को एक नयी परिभाषा दी ओ पी नय्यर साहब ने

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ०४ १९६८ में कमल मेहरा की बनायी फ़िल्म आयी थी 'क़िस्मत'। मनमोहन देसाई निर्देशित फ़िल्म 'क़िस्मत' की क़िस्मत बुलंद थी। फ़िल्म तो कामयाब रही ही, फ़िल्म के गीतों ने भी ख़ासा धूम मचाये। अपनी दूसरी फ़िल्मों की तरह इस फ़िल्म में भी ओ. पी. नय्यर ने यह सिद्ध किया कि ६० के दशक के अंत में भी वो नयी पीढ़ी के किसी भी लोकप्रिय संगीतकार को सीधी टक्कर दे सकते हैं। इस फ़िल्म का वह हास्य गीत तो आपको याद है न "कजरा मोहब्बतवाला", जिसमें शमशाद बेग़म ने विश्वजीत का प्लेबैक किया था! फ़िल्म की नायिका बबिता के लिये गीत गाये आशा भोसले ने। इस फ़िल्म में नय्यर साहब की सबसे ख़ास गायिका आशाजी ने कई अच्छे गीत गाये जिनमें से सबसे लोकप्रिय गीत आज हम इस महफ़िल के लिए चुन लाये हैं। तो चलिये हुज़ूर, देर किस बात की, आपको सितारों की सैर करवा लाते हैं आज! " आओ हुज़ूर तुमको सितारों में ले चलूँ, दिल झूम जाये ऐसी बहारों में ले चलूँ ", यह एक पार्टी गीत है, जिसे नायिका शराब के नशे मे गाती हैं। और आपको पता ही है कि इस तरह के हिचकियाँ वाले नशीले गीतों को आशाजी किस तरह

राजकपूर की फ़िल्मी संवेदना और शंकर जयकिशन की संगीत अभिव्यक्ति

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ०३ १९५१ में राज कपूर और नरगिस की फ़िल्म 'आवारा' में हसरत जयपुरी का लिखा, शंकर जयकिशन का संगीतबद्ध किया, और लता मंगेशकर का गाया "आ जाओ तड़पते हैं अरमान अब रात गुज़रनेवाली है" बहुत बहुत लोकप्रिय हुआ था। "चांद की रंगत उड़ने लगी, वो तारों के दिल अब डूब गए, घबराके नज़र भी हार गई, तक़दीर को भी नींद आने लगी", अपने साथी के इन्तेज़ार की यह पीड़ा बिल्कुल जीवंत हो उठी थी हसरत साहब के इन शब्दों में। इस गीत का असर कुछ इस क़दर हुआ कि राज कपूर की अगली ही फ़िल्म 'आह' में भी उन्होने हसरत साहब से ऐसा ही एक गीत लिखवाया। इस बार गीत एकल नहीं बल्कि लताजी और मुकेश साहब की युगल आवाज़ों में था। और यही गीत आज पेश-ए-खिदमत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में। १९५३ की फ़िल्म 'आह' में राज कपूर के साथ नरगिस एक बार फिर नज़र आयीं। यह फ़िल्म 'आवारा' की तरह 'बौक्स औफ़िस' पर कामयाबी के झंडे तो नहीं गाढ़े लेकिन जहाँ तक इसके संगीत का सवाल है, तो इसके गाने गली गली गूंजे, और आज भी कहीं ना कहीं से अक्सर सुनाई दे जाते हैं। प्रस्तुत गीत &

खय्याम का संगीत था कुछ अलग अंदाज़ का, जिसमें शायरी और बोलों का भी होता था खास स्थान

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # 01 न मस्ते दोस्तों! जैसा कि कल की कड़ी में हमने आपको यह आभास दिया था कि आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर होगा कुछ अलग हट के, तो अब वह घड़ी आ गई है कि आपको इस बदलाव के बारे में बताया जाए। आज से लेकर अगले ४५ दिनों तक आपके लिए होगा 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल'। इसके तहत हम कुल ४५ गीत आपको सुनवाएँगे। लेकिन जो ख़ास बात है वह यह कि हम इन गीतों के ऒरिजिनल वर्ज़न नहीं सुनवाएँगे, बल्कि वो वर्ज़न जिन्हे 'हिंद युग्म' के आप ही के कुछ जाने पहचाने दोस्तों ने गाए हैं। यानी कि गानें वही पर अंदाज़ नए। दूसरे शब्दो में उन गीतों का रिवाइवल। हम आपसे बस यही निवेदन करना चाहेंगे कि आप इन गीतों का इनके ऒरिजिनल वर्ज़न के साथ तुलना ना करें। यह बस एक छोटी सी कोशिश है कि उस गुज़रे ज़माने के महान कलाकारों की कला को श्रद्धांजली अर्पित करने की। इन गीतों के साथ साथ आलेख में जो अतिरिक्त जानकारी हम आपको देंगे, उनमें से हो सकता है कि कुछ बातें हमने पहले भी किसी ना किसी गीत के साथ बताए होंगे, और कुछ जानकारी नयी भी हो सकते हैं। यानी एक तरफ़ गीतों का रिवाइवल, और दूसरी तरफ़ जानकारियों