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धमार के रंग : राग केदार के संग : SWARGOSHTHI – 205 : DHAMAR

स्वरगोष्ठी – 205 में आज भारतीय संगीत शैलियों का परिचय : ध्रुपद – 3 ‘चोरी चोरी मारत हो कुमकुम सम्मुख हो क्यों न खेलो होरी...’   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का लघु श्रृंखला ‘भारतीय संगीत शैलियों का परिचय’ की तीसरी कड़ी मे मैं कृष्णमोहन मिश्र हार्दिक स्वागत करता हूँ। पाठकों और श्रोताओं के अनुरोध पर आरम्भ की गई इस लघु श्रृंखला के अन्तर्गत हम भारतीय संगीत की उन परम्परागत शैलियों का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं, जो आज भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे बीच उपस्थित हैं। भारतीय संगीत की एक समृद्ध परम्परा है। वैदिक युग से लेकर वर्तमान तक इस संगीत-धारा में अनेकानेक धाराओं का संयोग हुआ। इनमें से जो भारतीय संगीत के मौलिक सिद्धांतों के अनुकूल धारा थी उसे स्वीकृति मिली और वह आज भी एक संगीत शैली के रूप स्थापित है और उनका उत्तरोत्तर विकास भी हुआ। विपरीत धाराएँ स्वतः नष्ट भी हो गईं। भारतीय संगीत की सबसे प्राचीन और वर्तमान में उपलब्ध संगीत शैली है, ध्रुपद अथवा ध्रुवपद। पिछली कड़ी में हमने ध्रुपद बन्दिश के विषय में

‘केतकी गुलाब जूही चम्पक वन फूले...’ : SWARGOSHTHI – 194 : RAG BASANT BAHAR

स्वरगोष्ठी – 194 में आज शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 3 : राग बसन्त बहार पार्श्वगायक मन्ना डे ने जब पण्डित भीमसेन जोशी को राज-दरबार में पराजित किया   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनो हमारी नई लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’ जारी है। फिल्म संगीत के क्षेत्र में चौथे से लेकर आठवें दशक के बीच शास्त्रीय संगीत के कई विद्वानों और विदुषियों ने अपना योगदान किया है। इस श्रृंखला में हमने कुछ ऐसे ही फिल्मी गीतों का चुनाव किया है, जिन्हें रागदारी संगीत के प्रयोक्ताओं और विशेषज्ञों ने रचा है। इन रचनाओं में राग के स्पष्ट स्वरूप की उपस्थिति मिलती है। श्रृंखला के तीसरे अंक में आज हम आपसे 1956 में प्रदर्शित फिल्म ‘बसन्त बहार’ के एक गीत- ‘केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूलें...’ पर चर्चा करेंगे। फिल्म के इस गीत में राग ‘बसन्त बहार’ के स्वरों का उपयोग किया गया है। विश्वविख्यात संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी ने इस गीत को स्वर दिया था और संगीत रचने में भी अपना योगदान किया था। इस युगल गीत में पण्डित जी के साथ जा

‘बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’ : SWARGOSHTHI – 183 : DADARA BHAIRAVI

स्वरगोष्ठी – 183 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी - 2 : भैरवी दादरा उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ का गाया दादरा जब मन्ना डे ने दुहराया- ‘बनाओ बतियाँ चलो काहे को झूठी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के दूसरे अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। यह पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित श्रृंखला का परिमार्जित रूप है। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के कुछ स्तम्भ केवल श्रव्य माध्यम से प्रस्तुत किये जाते हैं तो कुछ स्तम्भ आलेख, चित्र दृश्य माध्यम और गीत-संगीत श्रव्य माध्यम के मिले-जुले रूप में प्रस्तुत होते हैं। इस श्रृंखला से हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। श्रृंखला के अंक हम प्रायोगिक रूप से दोनों माध्यमों में प्रस्तुत कर रहे हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की प्रमुख सहयोगी संज्ञा टण्डन की आवाज़ में पूरा आलेख और गीत-संगीत श्रव्य माध्यम से भी प्रस्तुत किया जा रहा है। हमारे इस प्रयोग पर आप अपनी प्रतिक्रिया अवश्य

संगीतकार मदनमोहन के राग आधारित गीत

स्वरगोष्ठी – 173 में आज व्यक्तित्व – 3 : फिल्म संगीतकार मदनमोहन ‘भूली हुई यादों मुझे इतना न सताओ अब चैन से रहने दो मेरे पास न आओ...’    ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की तीसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ के अन्तर्गत हम आपसे संगीत के कुछ असाधारण संगीत-साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने मंच, विभिन्न प्रसारण माध्यमों अथवा फिल्म संगीत के क्षेत्र में लीक से हट कर उल्लेखनीय योगदान किया है। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, फिल्म संगीत-प्रेमियों के बीच “गजल-सम्राट” की उपाधि से विभूषित यशस्वी संगीतकार, मदनमोहन। उनके संगीतबद्ध गीत अत्यन्त परिष्कृत हुआ करते थे। आभिजात्य वर्ग के बीच उनके गीत बड़े शौक से सुने और सराहे जाते थे। वे गज़लों को संगीतबद्ध करने में सिद्ध थे। गज़लों के साथ ही अपने गीतों में रागों का प्रयोग भी निपुणता के साथ करते थे। विभिन्न

फिल्म 'सौ साल बाद' का रागमाला गीत

प्लेबैक इण्डिया ब्रोडकास्ट रागो के रंग, रागमाला गीत के संग – 6 राग भटियार, आभोगी, मेघ मल्हार और बसन्त बहार में पिरोया गया रागमाला गीत ‘एक ऋतु आए एक ऋतु जाए...’ फिल्म : सौ साल बाद (1966) गायक : लता मंगेशकर और मन्ना डे गीतकार : आनन्द बक्शी संगीतकार : लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल आलेख : कृष्णमोहन मिश्र स्वर एवं प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन   आपको हमारी यह प्रस्तुति कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव से हमें radioplaybackindia@live.com पर अवश्य अवगत कराएँ।