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रुद्रवीणा और उस्ताद असद अली खाँ : SWARGOSHTHI – 246 : RUDRAVEENA & USTAD ASAD ALI KHAN

स्वरगोष्ठी – 246 में आज संगीत के शिखर पर – 7 : उस्ताद असद अली खाँ वैदिक तंत्रवाद्य रुद्रवीणा के साधक उस्ताद असद अली खाँ रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। आज श्रृंखला की सातवीं कड़ी में हम आज हम वैदिककालीन तंत्रवाद्य रुद्रवीणा अनन्य साधक उस्ताद असद अली खाँ की संगीत साधना के व्यक्तित्व और कृतित्व की संक्षिप्त चर्चा कर रहे हैं। आज हम आपको उस्ताद असद अली खाँ द्वारा रुद्रवीणा पर बजाया ध्रुपद अंग में राग आसावरी और आभोगी की रचनाएँ सुनवाएँगे। वै दिककालीन वाद्य रूद्रवीणा को परम्परागत

रुद्रवीणा और पखावज : SWARGOSHTHI – 206 : RUDRA VEENA AND PAKHAWAJ RECITAL

स्वरगोष्ठी – 206 में आज भारतीय संगीत शैलियों का परिचय : ध्रुपद – 4 रुद्रवीणा पर आसावरी के और पखावज पर चौताल के स्वर गूँजे ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर लघु श्रृंखला ‘भारतीय संगीत शैलियों का परिचय’ की चौथी कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पाठकों और श्रोताओं के अनुरोध पर आरम्भ की गई इस लघु श्रृंखला के अन्तर्गत हम भारतीय संगीत की उन परम्परागत शैलियों का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं, जो आज भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे बीच उपस्थित हैं। भारतीय संगीत की एक समृद्ध परम्परा है। वैदिक युग से लेकर वर्तमान तक इस संगीत-धारा में अनेकानेक धाराओं का संयोग हुआ। इनमें से जो भारतीय संगीत के मौलिक सिद्धांतों के अनुकूल धारा थी उसे स्वीकृति मिली और वह आज भी एक संगीत शैली के रूप स्थापित है और उनका उत्तरोत्तर विकास भी हुआ। विपरीत धाराएँ स्वतः नष्ट भी हो गईं। भारतीय संगीत की सबसे प्राचीन और वर्तमान में उपलब्ध संगीत शैली है, ध्रुपद अथवा ध्रुवपद। पिछली कड़ियों में हमने आपके लिए ध्रुपद और धमार का सो

सुर संगम में आज - वैदिककालीन तंत्रवाद्य रूद्रवीणा के साधक उस्ताद असद अली खाँ के तंत्र-स्वर शान्त हुए

सुर संगम - 26 - उस्ताद असद अली खाँ वे भगवान शिव को रूद्रवीणा का निर्माता मानते थे| सा प्ताहिक स्तम्भ 'सुर संगम' के इस विशेष अंक में आज हम रूद्रवीणा के अनन्य साधक उस्ताद असद अली खाँ को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उपस्थित हुए हैं, जिनका गत 14 जून को दिल्ली में निधन हो गया| उनके निधन से हमने वैदिककालीन वाद्य रूद्रवीणा को परम्परागत रूप से आधुनिक संगीत जगत में प्रतिष्ठित कराने वाले एक अप्रतिम कलासाधक को खो दिया है| उस्ताद असद अली खाँ जयपुर बीनकार (वीणावादकों) घराने की बारहवीं पीढी के कलासाधक थे | यह घराना जयपुर के सेनिया घराने का ही एक हिस्सा है| असद अली खाँ का जन्म 1937 में अलवर (राजस्थान) रियासत में हुआ था, परन्तु उनकी संगीत-शिक्षा रामपुर में हुई| उनके पिता उस्ताद सादिक अली खाँ रामपुर दरबार में रूद्रवीणा के प्रतिष्ठित वादक थे| उनके प्रपितामह उस्ताद रज़ब अली खाँ जयपुर घराने के दरबारी वीणावादक थे तथा रूद्रवीणा के साथ-साथ सितार और दिलरुबावादन में भी दक्ष थे| असद अली खाँ के पितामह उस्ताद मुशर्रफ अली खाँ को भी जयपुर के दरबारी वीणावादक के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त थी| आज हम जिसे सं