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तेरे लिए किशमिश चुनें, पिस्ते चुनें: ऐसे मासूम बोल पर सात क्या सत्तर खून माफ़! गुलज़ार और विशाल का कमाल!

Taaza Sur Taal (TST) - 04/2011 - SAAT KHOON MAAF एक गीतकार जो सीधे-सीधे यीशु से सवाल पूछता है कि तुम अपने चाहने वालों को कैसे चुनते हो, एक गीतकार जो अपनी प्रेमिका के लिए परिंदों से बागों का सौदा कर लेता है ताकि उसके लिए किशमिश और पिस्ते चुन सके, एक गीतकार जो प्रेमिका की तारीफ़ के लिए "म्याउ-सी लड़की" जैसे संबोधन और उपमाओं की पोटली उड़ेल देता है, एक गीतकार जो आँखों से आँखें चार करने की जिद्द तो करता है, लेकिन मुआफ़ी भी माँगता है कि "सॉरी तुझे संडे के दिन ज़हमत हुई", एक गीतकार जो ओठों से ओठों की छुअन को "ऒठ तले चोट चलने" की संज्ञा देता है, एक गीतकार जो सूखे पत्तों को आवारा बताकर ज़िंदगी की ऐसी सच्चाई बयां करता है कि सीधी-सादी बात भी सूफ़ियाना लगने लाती है .. यह एक ऐसे गीतकार की कहानी है जो शब्दों से ज्यादा भाव को अहमियत देता है और इसलिए शब्दों के गुलेल लेकर भावों के बगीचे में नहीं घुमता, बल्कि भावों के खेत में खड़े होकर शब्दों की चिड़ियों को प्यार से अपने दिल के मटर मुहैया कराता है और फिर उन चिड़ियों को छोड़ देता है खुले आसमान में परवाज़ भरने के लिए, फिर जो

ऐक्शन रिप्ले के सहारे इरशाद कामिल और प्रीतम ने बाकी गीतकार-संगीतकार जोड़ियों को बड़े हीं जोर का झटका दिया

ताज़ा सुर ताल ४२/२०१० सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' की एक और कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं, और आप सभी का हार्दिक स्वागत है इस साप्ताहिक स्तंभ में! विश्व दीपक जी, पता है जब भी मैं इस स्तंभ के लिए आप से बातचीत का सिलसिला शुरु करता हूँ तो मुझे क्या याद आता है? विश्व दीपक - अरे पहले मुझे सभी को नमस्ते तो कह लेने दो! सभी पाठकों व श्रोताओं को मेरा नमस्कार और सुजॊय, आप को भी! हाँ, अब बताइए आप को किस बात की याद आती है। सुजॊय - जब मैं छोटा था, और गुवाहाटी में रहता था, तो उस ज़माने में तो फ़िल्मी गानें केवल रेडियो पर ही सुनाई देते थे, तभी से मुझे रेडियो सुनने में और ख़ास कर फ़िल्म संगीत में दिलचस्पी हुई। तो आकाशवाणी के गुवाहाटी केन्द्र से द्पहर के वक़्त दो घंटे के लिए सैनिक भाइयों का कार्यक्रम हुआ करता था (आज भी होता है) , जिसके अंतर्गत कई दैनिक, साप्ताहिक और मासिक कार्यक्रम प्रस्तुत होते थे फ़िल्मी गीतों के, कुछ कुछ विविध भारती अंदाज़ के। तो हर शुक्रवार के दिन एक कार्यक्रम आता था 'एक ही फ़िल्म के गीत', जिसमें किसी नए फ़िल्म के सभी गीत बजाए जाते थे। तो गर्मी की छुट्टियों में या कभी भी ज

"इश्क़ महंगा पड़े फिर भी सौदा करे".. ऐसा हीं एक सौदा करने आ पहुँचें हैं कभी साफ़, कभी गंदे, "लफ़ंगे परिंदे"

ताज़ा सुर ताल २९/२०१० विश्व दीपक - नमस्कार दोस्तों! जैसा कि हाल के सालों में हम देखते आ रहे हैं.. आज के फ़िल्मकार नई नई कहानियाँ हिंदी फ़िल्मों में ला रहे हैं। वैसे तो ज़्यादातर फ़िल्मों की कहानियों का आधार नायक-नायिका-खलनायक ही होते रहे हैं और आज भी है, लेकिन बदलते समाज और दौर के साथ साथ फ़िल्म के पार्श्व में काफ़ी परिवर्तन आ गए हैं। अब आप ही बताइए मुंबई के 'बाइक गैंग्स' पर किसी फ़िल्म की कल्पना क्या ७० के दशक में की जा सकती थी? सुजॊय - क्योंकि फ़िल्म समाज का आईना कहलाता है, तो बदलते दौर के साथ साथ, बदलते समाज के साथ साथ फ़िल्में भी बदल रही है। और यही बात लागू होती है फ़िल्म संगीत पर भी। जब जब फ़िल्मी गीतों के गिरते हुए स्तर पर लोग चर्चा शुरु कर देते हैं, तब भी उन्हें इसी बात को ध्यान में रखना होगा कि अब वक़्त बदल गया है। आज की नायिका अगर "चुप चुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है" जैसे गीत गाये, तो वह बहुत ज़्यादा नाटकीय और बेमानी लगेगी। इसलिए बदलते दौर के साथ साथ बदलते संगीत को भी खुले दिल से स्वीकारें, इसी में शायद सब की भलाई है। हाँ, यह ज़रूर है कि गीतों का स्तर नहीं गि

बस प्यार का नाम न लेना, आइ हेट लव स्टोरीज़, यही गुनगुनाते आ पहुँचे हैं विशाल, शेखर, कुमार और अन्विता

ताज़ा सुर ताल २०/२०१० सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' के आज के अंक में आप सब का स्वागत है। विश्व दीपक जी, पिछले हफ़्ते फ़िल्म 'काईट्स' प्रदर्शित हुई, लेकिन आश्चर्य की बात रही कि फ़िल्म को वो लोकप्रियता हासिल नहीं हो सकी जिसकी उम्मीदें की गईं थी। ऐसा सुनने में आया है कि जिन लोगों को अंग्रेज़ी फ़िल्में देखने का शौक है, उन्हे यह फ़िल्म पसंद आई, लेकिन बॊलीवुड मसाला फ़िल्मों के दर्शकों को यह फ़िल्म ज़्यादा हज़म नहीं हुई। आपके क्या विचार हैं 'काइट्स' को लेकर? विश्व दीपक - सुजॊय जी, मैंने अभी तक काईट्स देखी नहीं है, इसलिए कुछ भी कहने की हालत में नहीं हूँ। इस शनिवार देखने का विचार है, उसी के बाद अपने विचार जाहिर करूँगा। हाँ, लेकिन यह तो है कि ज्यादातर दर्शकों को फिल्म की कहानी में कुछ भी नया नज़र नहीं आया है, उन सब का कहना है कि ऋतिक रोशन का इस फिल्म के लिए ढाई साल का ब्रेक लेना हजम नहीं होता। वहीं मुझे एकाध ऐसे भी लोग मिले हैं जिन्हें यह फिल्म "फिल्मांकन" (सिनेमाटोग्राफी) के कारण पसंद आई है तो दो-चार ऐसे भी हैं जिन्हें बारबारा मोरी के अभिनय ने प्रभावित किया है। कुल म