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कोई जुगनू न आया......"सुरेश" की दिल्लगी और महफ़िल-ए-ताजगी

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #२९ ली जिए देखते-देखते हम अपनी महफ़िल को उस मुकाम तक ले आएँ, जहाँ पहला पड़ाव खत्म होता है और दूसरे पड़ाव की तैयारी जोर-शोर से शुरू की जाती है। आज महफ़िल-ए-गज़ल की २९वीं कड़ी है और २५वीं कड़ी में सवालों का जो दौर हमने शुरू किया था, उस दौर उस मुहिम का आज अंत होने वाला है। अब तक बीती चार कड़ियों में हमने बहुत कुछ पाया हीं है और खुशी की बात यह है कि हमने कुछ भी नहीं खोया। बहुत सारे नए हमसफ़र मिले जो आज तक बस "ओल्ड इज गोल्ड" के सुहाने सफ़र तक हीं अपने आप को सीमित रखे हुए थे। हमने हर बार हीं यह प्रयास किया कि सवाल ऐसे पूछे जाएँ जो थोड़े रोचक हों तो थोड़े मुश्किल भी, जिनके जवाब अगर आसानी से मिल जाएँ तो भी पढने वाले को पिछली कड़ियों का एक चक्कर तो ज़रूर लगाना पड़े। शायद हम अपने इस प्रयास में सफ़ल हुए। वैसे अभी तक तो सवालों का बस तीन हीं लोगों ने जवाब दिया है, जिनमें से दो हीं लोगों ने अपनी सक्रियता दिखाई है। अब चूँकि आज इस मुहिम का अंतिम सोपान है, इसलिए यकीनन नहीं कह सकता कि गुजारिश का कितना असर होगा, फिर भी लोगों से यही दरख्वास्त है कि कम से कम आज की कड़ी के प्रश्नों