Skip to main content

Posts

Showing posts with the label dattaram

राग मारू बिहाग और यमन कल्याण : SWARGOSHTHI – 493 : RAG MARU BIHAG & YAMN KALYAN

स्वरगोष्ठी – 493 में आज   राज कपूर के विस्मृत संगीतकार – 9 : संगीतकार – दत्ताराम   जब राज कपूर की निर्मित फिल्म में दत्ताराम ने रचा मारू बिहाग पर आधारित गीत  विदुषी डॉ. प्रभा अत्रे  आशा भोसले  “रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ "स्वरगोष्ठी" के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राज कपूर के फिल्मी जीवन के पहले दशक के कुछ विस्मृत संगीतकारों की और उनकी कृतियों पर चर्चा कर रहे हैं। इन फिल्मों में से राज कपूर ने कुछ फिल्मों का निर्माण, कुछ का निर्देशन और कुछ फिल्मों में केवल अभिनय किया था। आरम्भ के पहले दशक अर्थात 1948 में प्रदर्शित फिल्म "आग" से लेकर 1958 में प्रदर्शित फिल्म "फिर सुबह होगी" तक की चर्चा इस श्रृंखला में की जाएगी। आमतौर पर राज कपूर की फिल्मों के अधिकतर संगीतकार शंकर जयकिशन ही रहे हैं। उन्होने राज कपूर की कुल 20 फिल्मों का संगीत निर्देशन किया है। इसके अलावा बाद की कुछ फ

ये चमन हमारा अपना है....राज कपूर की जयंती पर सुनें शैलेन्द्र -दत्ताराम रचित ये गीत

इस कथानक पर फिल्म बनवाने के पीछे नेहरू जी के दो उद्देश्य थे। मात्र एक दशक पहले स्वतंत्र देश के सरकार की न्याय व्यवस्था पर विश्वास जगाना और नेहरू जी का बच्चों के प्रति अनुराग को अभव्यक्ति देना। फिल्म के अन्तिम दृश्यों में नेहरू जी ने स्वयं काम करने की सहमति भी राज कपूर को दी थी। पूरी फिल्म बन जाने के बाद जब नेहरू जी की बारी आई तो मोरार जी देसाई ने उन्हें फिल्म में काम करने से रोका। नेहरू जी की राजनैतिक छवि के कारण अन्य लोगों ने भी उन्हें मना किया।

नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है...मुट्ठी में है तकदीर हमारी...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 111 हिं दी फ़िल्मों के ख़ज़ाने में ऐसे बहुत सारी फ़िल्में हैं जिनमें मुख्य किरदार बच्चों ने निभाये हैं। अर्थात, इन फ़िल्मों में बाल कलाकार ही कहानी के केन्द्र मे रहे हैं। ऐसी ही एक फ़िल्म थी 'बूट पालिश', जिसका शुमार बेहतरीन और कामयाब सामाजिक संदेश देनेवाली बाल-फ़िल्मों में होता है। 'बूट पालिश' निर्देशक प्रकाश अरोड़ा की पहली फ़िल्म थी। प्रकाश अरोड़ा और राजा नवाथे राज कपूर के सहायक हुआ करते थे। 'आग', 'बरसात' और 'आवारा' जैसी फ़िल्मों में इन दोनों ने राज कपूर को ऐसिस्ट किया था। आगे चलकर राज साहब ने इन दोनों को स्वतन्त्र निर्देशक बनने का अवसर दिया। राजा नवाथे को 'आह' मिली तो प्रकाश अरोड़ा को मिला 'बूट पालिश'। अपनी पहली निर्देशित फ़िल्म के हिसाब से प्रकाश साहब का काम बेहद सराहनीय रहा। यूँ तो १९५४ के इस फ़िल्म मे राज कपूर ने भी अभिनय किया था, लेकिन फ़िल्म के मुख्य चरित्रों में थे दो बहुत ही प्यारे प्यारे से बच्चे, बेबी नाज़ और रतन कुमार। बेबी नाज़ की एक और महत्वपूर्ण फ़िल्म 'लाजवंती' का एक गीत हम आप को क