Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Rag - Jhinjhoti

वर्ष के महाविजेता – 1 : SWARGOSHTHI – 450 : MAHAVIJETA OF THE YEAR – 1

स्वरगोष्ठी – 450 में आज सभी पाठकों और श्रोताओं का नववर्ष 2020 के पहले अंक में अभिनन्दन महाविजेताओं की प्रस्तुतियाँ – 1 महाविजेता मुकेश लाडिया और डी. हरिणा माधवी के सम्मान में उनकी प्रस्तुतियाँ डी. हरिणा माधवी मुकेश लाडिया ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का नववर्ष के पहले अंक में हार्दिक अभिनन्दन है। इसी अंक से आपका प्रिय स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ दसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। विगत नौ वर्षों से असंख्य पाठकों, श्रोताओं, संगीत शिक्षकों और वरिष्ठ संगीतज्ञों का प्यार, दुलार और मार्गदर्शन इस स्तम्भ को मिलता रहा है। इन्टरनेट पर शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक, सुगम और फिल्म संगीत विषयक चर्चा का सम्भवतः यह एकमात्र नियमित साप्ताहिक स्तम्भ है, जो विगत नौ वर्षों से निरन्तरता बनाए हुए है। इस पुनीत अवसर पर मैं कृष्णमोहन मिश्र, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सम्पादक और संचालक मण्डल के सभी सदस्यों; सजीव सारथी, सुजॉय चटर्जी, अमित तिवारी, अनुराग शर्मा, विश्वदीपक, संज्ञा टण्डन, पूजा अनिल और रीतेश खरे के साथ

राग झिंझोटी : SWARGOSHTHI – 425 : RAG JHINJHOTI

स्वरगोष्ठी – 425 में आज खमाज थाट के राग – 6 : राग झिंझोटी उस्ताद अब्दुल करीम खाँ से राग झिंझोटी में एक ठुमरी और मुकेश से फिल्मी गीत सुनिए उस्ताद अब्दुल करीम खाँ मुकेश “रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “खमाज थाट के राग” की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट-व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट, रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था।