भूली-बिसरी यादें भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में आयोजित विशेष श्रृंखला ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में प्रत्येक मास के पहले और तीसरे गुरुवार को हम आपके लिए लेकर आते हैं, मूक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर के कुछ रोचक तथ्य और आलेख के दूसरे हिस्से में सवाक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर की कोई उल्लेखनीय संगीत रचना और रचनाकार का परिचय। आज के अंक में हम आपसे इस युग के कुछ रोचक तथ्य साझा करेंगे। ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से पहले : मंच-नाटक का फिल्मांकन- ‘पुण्डलीक’ भा रत में सिनेमा-निर्माण और प्रदर्शन के प्रयास 1896 से ही आरम्भ हुए थे। शुरुआती दौर में भारतीय और विदेशी फिल्मों में मात्र किसी घटना का फिल्मांकन कर कर दिया जाता था। 1899 में सावे दादा के नाम से विख्यात हरिश्चन्द्र सखाराम भटवाडेकर ने इंग्लैंड से सिने-कैमरा मँगवा कर दो पहलवानों के बीच कुश्ती का फिल्मांकन किया था। उस दौर में परदे पर चलती-फिरती देखना एक चमत्कार से कम नहीं था। चमत्कार के आगे कथ्य की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता था। परन्तु यह सि