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स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 13

         भूली-बिसरी यादें भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में आयोजित विशेष श्रृंखला ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में प्रत्येक मास के पहले और तीसरे गुरुवार को हम आपके लिए लेकर आते हैं, मूक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर के कुछ रोचक तथ्य और आलेख के दूसरे हिस्से में सवाक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर की कोई उल्लेखनीय संगीत रचना और रचनाकार का परिचय। आज के अंक में हम आपसे इस युग के कुछ रोचक तथ्य साझा करेंगे। ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से पहले : मंच-नाटक का फिल्मांकन- ‘पुण्डलीक’ भा रत में सिनेमा-निर्माण और प्रदर्शन के प्रयास 1896 से ही आरम्भ हुए थे। शुरुआती दौर में भारतीय और विदेशी फिल्मों में मात्र किसी घटना का फिल्मांकन कर कर दिया जाता था। 1899 में सावे दादा के नाम से विख्यात हरिश्चन्द्र सखाराम भटवाडेकर ने इंग्लैंड से सिने-कैमरा मँगवा कर दो पहलवानों के बीच कुश्ती का फिल्मांकन किया था। उस दौर में परदे पर चलती-फिरती देखना एक चमत्कार से कम नहीं था। चमत्कार के आगे कथ्य की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता था। परन्तु यह सि

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट -वर्षा कालीन राग (पहला भाग)

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट के इस ग्यारहवें एपिसोड के साथ आज हम अपने बोर्ड में शामिल कर रहे हैं हमसे जुडी नयी हमसफ़र संज्ञा टंडन जी को. संज्ञा जी १९७७ में रायपुर आकाशवाणी केंद्र की पहली भुगतान प्राप्त बाल कलाकार हैं. १९८६ से १९८८ तक आप युववाणी उद्गोषिका रही,  तत्पश्चात १९९१ से बिलासपुर आकाशवाणी की निमेत्तिक उद्गोषिका हैं. संज्ञा जी ने छत्तीसगढ़ के लगभग सभी आकशवाणी केन्द्रों के लिए प्रायोजित कार्यक्रमों का निर्माण किया है. हर प्रकार के कार्यक्रमों के मंच संचालन में माहिर संज्ञा जी एक सफल ऑनलाईन वोईस ओवर आर्टिस्ट भी हैं. आईये सुनें उनकी आवाज़ में आज वर्षा कालीन राग कार्यक्रम का ये पहला भाग. स्क्रिप्ट है स्वर गोष्टी के संचालक कृष्णमोहन मिश्र जी की.

वो लोग ही कुछ और होते हैं - अभिषेक ओझा

'बोलती कहानियां' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछली बार आपने उषा महाजन की कहानी " बचपन " का पॉडकास्ट शेफाली गुप्ता की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अभिषेक ओझा की कहानी " वो लोग ही कुछ और होते हैं ", आवाज़ अनुराग शर्मा की। कहानी "वो लोग ही कुछ और होते हैं" का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 59 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट ओझा-उवाच पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। वास्तविकता तो ये है कि किसे फुर्सत है मेरे बारे में सोचने की, लेकिन ये मानव मन भी न! ~ अभिषेक ओझा हर मंगलवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "उस दुपहरी की लू में लोगों को काम करते देख थोड़ी शर्मिन्दगी तो जरुर हुई और शायद यही कारण था कि मैंने उस आदमी पर ध्यान दिया।"