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मैहर घराने का रंग : अली अकबर के संग

स्वरगोष्ठी – ६६ में आज उस्ताद अली अकबर खाँ के सरोद में गूँजता राग मारवा नौ वर्ष की आयु में उन्होने सरोद वाद्य को अपना मुख्य लक्ष्य बनाया और साधनारत हो गए। एक दिन अली अकबर बिना किसी को कुछ बताए मुम्बई (तत्कालीन बम्बई) चले गए। बाबा से सरोद-वादन की ऐसी उच्चकोटि की सिक्षा उन्हें मिली थी कि एक दिन रेडियो से उनके सरोद-वादन का कार्यक्रम प्रसारित हुआ, जिसे मैहर के महाराजा ने सुना और उन्हें वापस मैहर बुलवा लिया। ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नये अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के घरानों की जब भी चर्चा होगी, मैहर घराना और उसके संस्थापक बाबा अलाउद्दीन खाँ का नाम आदर और सम्मान से लिया जाएगा। उनके अनेक शिष्यों में से एक, उनके पुत्र उस्ताद अली अकबर खाँ ने और दूसरे, उनके दामाद पण्डित रविशंकर ने भारतीय संगीत की पताका को पूरे विश्व में फहराया है। कल १४ अप्रैल का दिन था और इसी दिन वर्ष १९२२ में पूर्वोत्तर भारत के त्रिपुरा ज़िले के साहिबपुर ग्राम में बाबा के घर अली अकबर खाँ का जन्म हुआ था। ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक में हम सुविख्यात सरोद वादक उस्

१५ अप्रेल- आज का गाना

गाना: तुम जो मिले आरज़ू को दिल की राह मिल गयी चित्रपट: लाल कुंवर संगीतकार: सचिन देव बर्मन गीतकार: साहिर स्वर: सुरैया तुम जो मिले, तुम जो मिले आरज़ू को दिल्ल की राह मिल गयी एक आस मिल गयी, रे, इक सलाह मिल गयी तुम जो मिले ... भोली\-भाली धड़कनों का आज ढंग और है ज़िंदगी वही है ज़िंदगी का रंग और है आज ढंग और है अंग अंग झूम उठा जब निगाह मिल गयी तुम जो मिले ... आज मेरी चूड़ियों के साज़ गुन्गुना उठे जाने कितने ख़्वाब एक साथ मुस्कुरा उठे आज मुस्कुरा उठे बचपन से जिस की चाह थी वो चाह मिल गयी तुम जो मिले ...

आज छुपा है चाँद - नया ओरिजिनल - वरिष्ठ कवि पिता और युवा संगीतकार पुत्र की संगीतमयी बैठक

कवि महेंद्र भटनागर  दोस्तों लीजिए पेश है वर्ष २०१२ का एक और प्लेबैक ओरिजिनल. ये गीत है वरिष्ठ कवि मेहन्द्र भटनागर का लिखा जिसे स्वरबद्ध किया और गाया है उन्हीं के गुणी सुपुत्र कुमार आदित्य ने, जो कि एक उभरते हुए गायक संगीतकार हैं. सुनें और टिप्पणियों के माध्यम से सम्न्बधित फनकारों तक पहुंचाएं. गीत के बोल - नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ? मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ नीरव जलने वाले तारो ! मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ अविरल बहने वाली धारो ! सागर की किस गहराई में आज छिपा है चाँद ? नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ? ॰ मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ मन्थर मुक्त हवा के झोंको ! जिसने चाँद चुराया मेरा उसको सत्वर भगकर रोको ! नयनों से दूर बहुत जाकर आज छिपा है चाँद ? नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ? ॰ मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ तरुओ ! पहरेदार हज़ारों, चुपचाप खड़े हो क्यों ? अपने पूरे स्वर से नाम पुकारो ! दूर कहीं मेरी दुनिया से आज छिपा है चाँद ! नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ? संगीतकार गायक कुमार आदित्य