ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 736/2011/176 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के एक और नई सप्ताह में आप सभी का मैं, सुजॉय चटर्जी, स्वागत करता हूँ। इन दिनों इस स्तंभ में जारी है फ़िल्म जगत की सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका शमशाद बेगम के गाये गीतों से सुसज्जित लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे'। पाँच गीत आपनें सुनें, पाँच गीत अभी और सुनने वाले हैं। पिछले हफ़्ते यह शृंखला आकर रुकी थी नय्यर साहब की धुन पर फ़िल्म 'सी.आइ.डी' के गीत पर। नय्यर साहब के साथ शमशाद जी की पारी इतनी सफल रही है कि केवल एक गीत सुनवाकर हम आगे नहीं बढ़ सकते। इसलिए आज के अंक में भी है धूम नय्यर-शमशाद के जोड़ी की। 'दास्तान-ए-नय्यर' सीरीज़ में जब नय्यर सहाब से शमशाद बेगम के बारे में ये पूछा गया था - कमल शर्मा: शमशाद जी से आप किस तरह से मिले? ओ.पी. नय्यर: शमशाद जी को क्योंकि मैं लाहौर से ही जानता हूँ, रेडियो से। वो मेरे से ४-५ साल बड़ी हैं, तो बच्चा था मैं उनके आगे, और मैं उनको बहुत पहले से, पेशावर में, पश्तो गाने गाया करती थीं। फिर रेडियो लाहौर में आ गईं। बड़ी ख़ुलूस, बहुत प्यार करने वाली ईमोशनल औरत है। कमल शर्मा: क्या ख